पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैंसर अस्पताल द्वारा उठाया गया ये कदम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देशों का उल्लंघन है जिसके तहत किसी भी मरीज को उसके धर्म या बीमारी के आधार पर इलाज से इनकार नहीं किया जा सकता है.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मेरठ के एक कैंसर अस्पताल ने दैनिक जागरण अखबार में एक विज्ञापन प्रकाशित किया है कि वह अब नए मुस्लिम मरीजों को स्वीकार नहीं करेगा, जब तक कि मरीज और उसका केयरटेकर कोविड-19 की निगेटिव टेस्ट रिजल्ट नहीं लाते हैं. यह 50 बेड का कैंसर का अस्पताल है और यहां पर मेरठ, सरधना और मुज़फ्फरनगर सहित मेरठ के आस पास के लोग यहां इलाज कराने आते हैं.
अस्पताल ने 17 मार्च को दिए अपने विज्ञापन में कहा, 'हमारे यहां भी कई मुस्लिम रोगी नियमों व निर्देशों (जैसे मास्क लगाना, एक रोगी के साथ एक तिमारदार, स्वच्छता का ध्यान रखना आदि) का पालन नहीं कर रहे हैं व स्टाफ से अभद्रता कर रहे हैं. अस्पताल के कर्मचारियों एवं रोगियों की सुरक्षा के लिए अस्पताल प्रबंधन चिकित्सा लाभ प्राप्त करने हेतु आने वाले नए मुस्लिम रोगियों से अनुरोध करता है कि स्वयं व एक तिमारदार की कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड-19) की जांच कराकर एवं रिपोर्ट निगेटिव आने पर ही आएं. कोरोना महामारी के जारी रहने तक यह नियम प्रभावी रहेगा.'
विज्ञापन में आगे लिखा गया, 'अस्पताल प्रबंधन समझता है कि केवल कुछ मुस्लिम भाईयों की अज्ञानता एवं दुर्भावना के कारण हमारे समस्त मुस्लिम भाईयों को कुछ समय के लिए कष्ट सहना पड़ रहा है. परन्तु जनहित एवं स्वयं मुस्लिम भाईयों के हित में यह आवश्यक है. हमारे हजारों मुस्लिम भाई-बहन जिनका हमने उपचार किया है व कैंसर से निजात पा चुके हैं, वे जानते हैं कि प्रारंभ से ही हमारी चिकित्सा सेवा और समपर्ण में कोई भेदभाव नहीं रहा है व हमारे उनके साथ पारिवारिक संबंध भी बन गए हैं.'
अस्पताल द्वारा इस तरह का विज्ञापन देना राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के रोगी अधिकारों के चार्टर का उल्लंघन है जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अपनाया गया था और मार्च 2019 में संबंधित विभागों में भेजा गया था. चार्टर के बिंदु 8 के अनुसार, किसी भी मरीज को उसके धर्म या बीमारी के आधार पर इलाज से इनकार नहीं किया जा सकता है.
चार्टर के अनुसार, 'प्रत्येक मरीज को अपनी बीमारियों या स्थिति के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना इलाज प्राप्त करने का अधिकार है, जिसमें एचआईवी या अन्य स्वास्थ्य स्थिति, धर्म, जाति, लिंग, आयु, भाषाई या भौगोलिक/ सामाजिक मूल शामिल हैं. अस्पताल प्रबंधन का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि अस्पताल की देखरेख में किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार न हो. अस्पताल प्रबंधन को नियमित रूप से अपने सभी डॉक्टरों और कर्मचारियों को इसके बारे में निर्देश देना चाहिए.'
अस्पताल प्रशासन का दावा है कि तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों की वजह से कोरोना संक्रमण की अप्रत्याशित वृद्धि हुआ है एवं मरने वालों की संख्या लगभग बढ़ती जा रही है.
अस्पताल के प्रबंधन टीम के सदस्य और रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. अमित जैन ने कहा, 'मेरठ में तब्लीगी जमात से जुड़े दो मामले सामने आए हैं.'
हालांकि यह दावा सही नहीं है. स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशालय, लखनऊ द्वारा 18 अप्रैल की शाम को जारी सूचना के अनुसार, मेरठ में कोविड-19 के 70 मरीज हैं और इनमें से 46 लोग तब्लीगी जमात से जुड़े थे.
वैलेंटिस कैंसर अस्पताल ने अपने विज्ञापन में कहा है कि तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों की जानकारी एवं जांच करने गए स्वास्थ्यकर्मियों व पुलिस से मेरठ में भी असहयोग एवं अमर्यादित व्यवहार किया जा रहा है व पत्थर फेंककर भगाया जा रहा है. इन कारणों से सभी अस्पताल के चिकित्सक, नर्स एवं स्टाफ भी भयभीत हैं और उनका मनोबल गिरा है.
हालांकि अस्पताल ने यह भी कहा कि जिन रोगियों को अस्पताल में तुरंत भर्ती की आवश्यकता है, उनका तुरंत उपचार किया जाएगा. लेकिन उनका व एक तिमारदार की कोरोना संक्रमण जांच की राशि का भुगतान उन्हें करना होगा.
जैन ने कहा, 'ये स्पष्ट है कि मेरठ में सभी कोरोना के मामले मुस्लिम बहुल इलाकों से आ रहे हैं. इसलिए इनकी पहचान करना आसान है. अगर यहां के लोग बिना टेस्ट कराए अस्पताल में आते हैं तो इससे अन्य डाक्टरों और मरीजों को खतरा होगा.'
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोरोना टेस्ट कराने की बाध्यता मुस्लिम बहुत क्षेत्रों में रह रहे अन्य समुदाय के लोगों पर नहीं है. जैन ने कहा, 'इन इलाकों में अन्य समुदाय के लोग बहुत कम हैं. मैं ये नहीं कह रहा है कि अन्य धर्म के लोगों को बीमारी नहीं हो सकती है. लेकिन हकीकत ये है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अधिकतर मरीज मुस्लिम हैं.'