कोरोना संकट से निपटने के लिए ज़मीनी स्तर पर आशा कार्यकर्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, लेकिन महामारी के चुनौतीपूर्ण दौर में ज़िम्मेदारी के साथ उनकी मुश्किलें भी बढ़ गई हैं. बिहार के पूर्वी चंपारण क्षेत्र की कई आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें अपने भुगतान की राशि पाने के लिए कमीशन देना पड़ रहा है.
बिहार में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 80 पार कर चुकी है. राज्य में कोरोना से अभी तक 1 शख़्स की मौत की पुष्टि हुई है. जांच की प्रक्रिया धीमी होने के बावजूद भी राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय का दावा है कि उनकी सरकार कोरोना से निपटने में पूरी तरह तैयार है.
इन सबके बीच राज्य में जमीनी स्तर पर काम कर रहे आशा कार्यकर्ताओं को इस महामारी के वक्त भी अधिकारियों के भ्रष्टाचार का शिकार होना पड़ रहा है.
आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनको किए जा रहे भुगतान के बदले अधिकारी भारी कमीशन वसूल रहे हैं. इससे इन ग़रीब परिवारों पर लॉकडाउन के समय दोहरी मार पड़ी है.
पूर्वी चंपारण जिले के कल्पाणपुर प्रखंड के गणेशपुर में 40 वर्षीय रामरती देवी 2017 से आशा कार्यकर्ता के तौर पर काम कर रही हैं. पति असम में दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं. उनकी तीन बेटियां हैं, जिनमें दो की शादी हो चुकी है और एक अभी पढ़ाई कर रही है.
लॉकडाउन की वजह से रामरती देवी के पति असम में फंसे हुए हैं और उनका काम ठप है. पिछले एक महीने से वो घर पर एक पैसा भी नहीं भेज पाए हैं.
रामरती देवी बताती हैं कि इस बंदी में परिवार चलाना मुश्किल हो गया है. आशा की नौकरी से इतना पैसा नहीं आ पाता कि घर चल सके.
रामरती देवी आगे कहती हैं, 'पिछले 5-6 महीने से मेरे काम का पैसा बकाया था. बंदी होने के बाद पैसा मिलना शुरू हुआ. जब ऑफिस से फोन आया कि आपका पेमेंट जा रहा है तो आशा फैसिलिटेटर ने कहा कि आपके खाते में 9,500 रुपये भेजा जाएगा. इसके बदले आपको 2,500 रुपये देना होगा. इतना रुपये नहीं देने पर आपका पेमेंट रोक दिया जाएगा. फिर किसी तरह पैसे का जुगाड़ करके हमने आशा फैसिलिटेटर को पैसे दिए उसके बाद मेरे खाते में पैसा आया.'
रामरती देवी का कहना है कि हर बार उन्हें पेमेंट से पहले आशा फैसिलिटेटर की धमकी का सामना करना पड़ता है. पेमेंट कितने भी रुपए का हो उनसे 20 से 25 प्रतिशत पैसे हमेशा ही लिए जाते हैं.
रामरती देवी कहती हैं कि पैसा देने से इनकार करने पर नौकरी से निकाल देने और पेमेंट रोक देने की धमकी दी जाती है.
वे आगे बताती हैं, 'पैसे देने में तो तकलीफ हमेशा होती है, लेकिन इस बंदी में मेरे लिए इतना पैसा देना बहुत मुश्किल था. हमारे पास उतना खेती-बाड़ी भी नहीं है कि घर चलाने में सहूलियत हो. मुश्किल से 3-4 कट्ठा खेत है जिसमें कभी-कभार ही कोई फसल उग पाती है.'
रामरती देवी की शिकायत पर जब आशा फैसिलिटेटर पुष्पा देवी से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन संपर्क नहीं हो सका. उनका बयान आने पर उसे रिपोर्ट में जोड़ा जायेगा.
दरअसल आशा कार्यकर्ताओं को काम के आधार पर प्रोत्साहन राशि दी जाती है. उन्हें टीकाकरण, गृह-भ्रमण, मातृ-शिशु की देखभाल के लिए एक निश्चित राशि मिलती है. हर मद के लिए अलग-अलग पेमेंट होने के कारण इन्हें यह भी जानकारी नहीं होता कि किस काम के लिए कितना पैसा मिल रहा है, इसी का फायदा उठाकर उनसे कमीशन लिया जाता है.
पूर्वी चंपारण जिले के ही चिरैया प्रखंड में बेला गांव की आशा उषा देवी अधिकारियों की इस मनमानी उगाही से परेशान हैं.
वे बताती हैं, 'अगस्त 2019 से मैं आशा के तौर पर काम कर रही हूं, लेकिन अभी तक एक ही बार पेमेंट मिला है. 2-4 दिन पहले आशा फैसिलिटेटर का फोन आया था कि मेरे खाते में लाइन लिस्टिंग और एचबीएनसी मद का 14,000 रुपये भेजा जाना है. इससे पहले 2100 रुपये देना होगा.'
उषा देवी आगे बताती हैं, 'आज जब चारों ओर बंदी है और घर में पैसे का सारा साधन ख़त्म हो गया है तब हम यह 2100 रुपये कहां से लाएं?'
उनका कहना है कि पैसा नहीं देने पर किसी-किसी बहाने पेमेंट को टाला जा सकता है. घर में पैसे की जरूरत है इसलिए कहीं से भी जुगाड़ करके आशा फैसिलिटेटर को पैसा देना ही होगा.
इस बाबत सवाल पूछने पर आशा फैसिलिटेटर गीता देवी का कहना है कि यह बात झूठ है और उन्होंने कभी भी किसी आशा से पैसे नहीं लिए.
भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक बिहार में कुल 89,437 आशा कार्यरत हैं.
सामान्यतया ये आशा कार्यकर्ता निम्न आय वर्ग परिवारों से आती हैं और अमूमन इनका परिवार मजदूरी या खेती-किसानी के बल पर चल रहा होता है.
कोरोना संक्रमण के मद्देनजर करीब 1 महीने से जारी यह लॉकडाउन इन ग़रीब परिवारों पर बहुत भारी पड़ रहा है. आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि एक तो सरकार उन्हें काम के बराबर पैसे नहीं देती और इस बंदी के समय भी उल्टे कमीशन मांगा जा रहा है.
पीआईबी की वेबसाइट के मुताबिक 13 मार्च 2020 को स्वास्थ्य मामले के राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने संसद में लिखित जवाब में बताया था कि उनकी सरकार आशा कार्यकर्ताओं का विशेष ध्यान रख रही है और आशा कार्यकर्ताओं तथा आशा फैसिलिटेटर को जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा जैसी कई सुविधाएं दी जा रही है.
सरकार के इस दावे पर केसरिया नगर पंचायत के वार्ड नं. 5 में कार्यरत आशा चुन्नी कुमारी बताती हैं, ' सरकार का काम बस झूठ बोलना है. हर बार कहा जाता है कि 1000 रुपये बढ़ा दिया गया, 2000 रुपये बढ़ा दिया गया. जबकि हमें कुछ पता ही नहीं चलता. दर्जनों फंड का पैसा हमारे लिए आता है, लेकिन सब गोलमाल हो जाता है.'
चुन्नी कुमारी आगे बताती हैं, 'हमारी बात कौन सुनेगा? 2006 से आशा का काम कर रही हूं. कभी भी ढंग से पैसा नहीं मिला. 3-4 महीने में जब कभी भी पैसा आता है तो उसके बदले 15 से 20 पर्सेन्ट कमीशन देना पड़ता है. सरकार को भी यह बात मालूम है फिर भी कोई कार्रवाई नहीं करती.'
चुन्नी कुमारी का कहना है, 'हर बार आशा फैसिलिटेटर रीता कुमारी को कमीशन देने के 2-3 दिन बाद ही हमारे खाते में पैसा भेजा जाता है. इस बंदी में अभी तक पैसा नहीं दी हूं, इसलिए पैसा रूका है. आज अगर पैसे लेकर ब्लॉक में पहुंच जाऊं तो कल पैसा भेज देगा लोग.'
'जो आशा खुद काम नहीं करती, वही दूसरों पर आरोप लगाती है'
अधिकारियों से शिकायत करने की बात पर चुन्नी कुमारी कहती हैं, 'किससे शिकायत किया जाए? केसरिया पीएचसी के प्रभारी श्रवण कुमार पासवान मोतिहारी में रहते हैं. उनकी ड्यूटी दो जगह लगती है. कई बार हम लोगों ने मीटिंग में उनसे शिकायत की तो उनका कहना था कि आप लोग अच्छे से काम नहीं करती हैं और आपके काम का भार आशा फैसिलिटेटर पर आ जाता है इसलिए आपसे पैसा लिया जाता है.'
चुन्नी कुमारी कहती हैं, 'खुद पढ़ी-लिखी हूं और कभी ऐसा नहीं हुआ कि मेरे काम में फैसिलिटेटर को मेहनत करना पड़े. फिर भी ये लोग हमसे पैसा मांगते हैं.'
चुन्नी कुमारी की शिकायत पर जब आशा फैसिलिटेटर रीता पाठक को कॉल किया गया तो उन्होंने बताया कि उनके पंचायत की कोई आशा पैसे नहीं देती और उन्होंने लॉकडाउन बीत जाने के बाद फोन करने को कहा.
इसी शिकायत पर प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी श्रवण कुमार पासवान का कहना है, 'मैं अभी तक 12 प्रखंड में काम कर चुका हूं और हमेशा से भ्रष्टाचार के ख़िलाफ रहा हूं. मैंने कभी आशा से नहीं कहा कि आशा फैसिलिटेटर को पैसे दीजिए. जो आशा खुद काम नहीं करती, वही दूसरों पर आरोप लगाती है.'
शिकायत करने पर टाल देते हैं जिला स्तर के अधिकारी
कोटवा प्रखंड के पोखरा गांव की आशा रानी देवी (बदला हुआ नाम) ने बताया, 'जिला स्तर पर बैठक में भी हमने डीसीएम (डिस्ट्रिक्ट कम्युनिटी मॉबिलाइजर) नंदन झा से शिकायत की थी. हमारे शिकायत पर उन्होंने कहा कि जब आशा फैसिलिटेटर आपसे पैसे मांगे तो उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग कीजिए और हमको दिखाइए उसके बाद हम कार्रवाई करेंगे.'
आगे वे बताती हैं, 'हमारे पास तो एक सादा फोन है और वो भी चलाने नहीं आता तो हम इसमें वीडियो रिकॉर्डिंग कहां से करेंगे! परिवार में पैसे की जरूरत होती है इसलिए हमें मजबूरन कहीं न कहीं से इंतजाम करके पैसा देना ही पड़ता है.'
इस शिकायत पर कोटवा प्रखंड की प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. नाजिया सुल्ताना का कहना है कि उनके सामने कभी इस तरह का मामला नहीं आया. वे अब अपने स्तर से इसकी जांच करके कार्रवाई करेंगी.
इस मामले पर सवाल पूछने पर पूर्वी चंपारण के डीसीएम नंदन झा का कहना है, 'हमें अभी तक कोई लिखित शिकायत नहीं मिली है. शिकायत मिलने पर ही कार्रवाई करेंगे. आशा झूठी जानकारी दे रही है.'
पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक के पास जब इस बाबत फोन किया गया तो जवाब मिला कि इस नंबर पर बात नहीं हो पाएगी. एक दूसरा नंबर दिया गया जो जिला कंट्रोल रूम का था. उनका बयान आने के बाद रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
पूरे बिहार में यही है आशा के पेमेंट का सिस्टम
बेगूसराय जिले के मटिहानी पंचायत की आशा रानी देवी की भी कहानी ऐसी ही है. वे बताती हैं, 'मेरे पंचायत की आशा लोगों का पेमेंट ऑनलाइन चला गया है, लेकिन आशा फैसिलिटेटर हमसे पैसे मांग रही है. इसकी शिकायत हम लोग प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी से भी कर चुके हैं, लेकिन आशा फैसिलिटेटर कहती हैं कि प्रभारी सर ही पैसे मांग रहे हैं.'
पटना जिले के फतुहा प्रखंड की आशा शांति देवी की भी यही शिकायत है. कमीशनखोरी के इस मामले पर बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ संबद्ध गोपगुट की अध्यक्ष शशि यादव बताती हैं कि पूरे प्रदेश में आशा कार्यकर्ताओं के भुगतान का यही सिस्टम है. आशा फैसिलिटेटर के माध्यम से आशा कार्यकर्ताओं से पैसे लूटे जाते हैं. कई बार इसकी शिकायत की गई है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है.
वह कहती हैं, 'आज कोरोना के समय आशा कार्यकर्ताओं को घर-घर जाकर लोगों की जांच करनी पड़ रही है. उन्हें पट्टीनुमा एक मास्क देकर सुरक्षा की बस खानापूर्ति की गई है. जान जोखिम में डालकर काम करने के बावजूद भी आशा लोगों से कमीशन में पैसे लेना मानवता के ख़िलाफ है.'
वे जोड़ती हैं, 'आज जब जरूरत है कि आशा को लोगों को अग्रिम भुगतान किया जाए, सरकार के अधिकारी उल्टे इनसे पैसे वसूलने में लगे हैं. बिहार के स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है. कुछ ही महीने पहले सीतामढ़ी जिले के सिविल सर्जन को भी घुस लेते पकड़ा गया था.'
क्या है 'कमीशन की प्रक्रिया'
नाम न छापने की शर्त पर मुजफ्फरपुर जिले की एक आशा फैसिलिटेटर ने बताया, 'ऊपर से लेकर नीचे तक के अधिकारी इस कमीशनखोरी में शामिल हैं. हमें आशा कार्यकर्ताओं से पैसे लेकर बीसीएम (ब्लॉक कम्युनिटी मॉबलाइजर) के पास पहुंचाना होता है. बीसीएम इस पैसे को प्रखंड चिकित्सा पदाधिकारी यानी प्रभारी को देती हैं और प्रभारी के रास्ते यह पैसा जिला स्तर तक पहुंचता है.'
बता दें कि आशा फैसिलिटेटर यानी आशा सहयोगियों की बहाली आशा कार्यकर्ताओं के कामों में सहयोग करने के लिए हुई है. एक आशा सहयोगी को लगभग 20 आशा कार्यकर्ताओं की मदद करनी होती है.
इनकी जिम्मेदारी आशा के चयन से ही शुरू हो जाती है. आशा फैसिलिटेटर का मुख्य काम बैठकें आयोजित करना, अपने क्षेत्र में टीकाकरण सुचारू रूप से चलाना और आशा कार्यकर्ताओं को जरूरत पड़ने पर काग़जी मदद करना है. आशा सहयोगियों को हर महीने 6000 रुपए का मानदेय सरकार द्वारा दिया जाता है.
केसरिया के कढ़ान पंचायत की आशा फैसिलिटेटर विभा मिश्रा बताती हैं कि वे 2011 से काम कर रही हैं. उनका कहना है कि अमूमन आशा कम पढ़ी-लिखी होती हैं और उन्हें बहुत सारा काग़ज मेंटेन करना पड़ता है इसलिए आशा फैसिलिटेटर पर भी लोड बढ़ जाता है.
वे बताती हैं, 'मैं अपनी सभी आशा का काम खुद ही करती हूं, लेकिन इसके लिए कभी पैसे नहीं लिए. कई जगह की आशा फैसिलिटेटर द्वारा पैसे लेने की बात सामने आती है.
नाम न छापने की शर्त पर पूर्वी चंपारण जिले की एक आशा फैसिलिटेटर ने बताया, 'हमें ऑफिस से आदेश मिलता है कि आशा लोगों का पेमेंट जाना है, सभी फैसिलिटेटर अपनी आशा से एक निश्चित पैसे लाकर पहले दे दें. तब हम लोग पैसे लेते हैं. बाद में अधिकारी पैसे लेने की बात से इनकार न कर जाएं इसलिए कई आशा फैसिलिटेटर अपनी डायरी में इसका रिकॉर्ड भी रखती हैं.'
उन्होंने बताया, 'हमें इस पैसे में से कुछ नहीं मिलता. इसमें बीसीएम से लेकर ऊपर सिविल सर्जन तक के लोगों की मिलीभगत रहती है. जब आशा इसकी शिकायत करती हैं तो कहा जाता है कि लिखित शिकायत दें. अधिकारी बाद में सारी जिम्मेदारी आशा फैसिलिटेटर पर थोप कर कार्रवाई की बात करते हैं.'
वे आगे कहती हैं, 'हमने कई बार अपने प्रखंड में पैसा लेने से इनकार किया, लेकिन तब प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी और बीसीएम की तरफ से दबाव बनाया गया. हम तो धर्मसंकट में पड़ जाते हैं, पैसे लें तो आशा के साथ ग़लत होता है और ना लें तो अधिकारी अपना भय दिखाते हैं.'
आशा संघर्ष समिति की बिहार प्रदेश अध्यक्ष मीरा सिन्हा कहती हैं, 'आशा कार्यकर्ताओं से हो रही यह उगाही चाहे जिस भी अधिकारी तक पहुंच रही हो, लॉकडाउन में जान दांव पर लगाकर काम कर रहीं आशा के साथ यह नाइंसाफी है.'
(लेखक कारवां-ए-मोहब्बत की मीडिया टीम से जुड़े कार्यकर्ता हैं.)