दुनिया भर के देश कोविड-19 के मरीजों के लिए वेंटिलेटर का इंतजाम करने में लगे हैं।
डी डब्ल्यू हिन्दी पर छपी खबर के अनुसार, कई कंपनियां जल्द से जल्द काम चलाऊ वेंटिलेटर बनाने में भी लग गई हैं। लेकिन इनकी इतनी जरूरत है ही क्यों?
कोरोना वायरस शरीर की श्वसन प्रणाली पर हमला करता है. कोरोना के शिकार कम से कम 20 फीसदी मामलों में देखा गया है कि वायरस फेफड़ों के इतनी अंदर बैठा होता है कि मरीज के लिए सांस लेना ही मुश्किल हो जाता है।
ऐसे में जल्द से जल्द वेंटिलेटर लगाने की जरूरत पड़ती है. समस्या तब शुरू होती है जब मरीजों की संख्या वेंटिलेटर से ज्यादा हो जाए। दुनिया के विकसित देश भी इस वक्त इस समस्या से जूझ रहे हैं।
इटली और स्पेन में डॉक्टरों को तय करना पड़ रहा है कि किसे वेंटिलेटर लगाएं और किसे नहीं।
फेफड़े जब काम करना बंद कर दें तब शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और ना ही शरीर के अंदर मौजूद कार्बन डायऑक्साइड बाहर निकल पाती है। साथ ही फेफड़ों में तरल भर जाता है।
ऐसे में कुछ ही देर में दिल भी काम करना बंद कर देता है और मरीज की मिनटों में ही मौत हो जाती है।
वेंटिलेटर के जरिए शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है। यह ऑक्सीजन फेफड़ों में वहां पहुंचती है जहां बीमारी के कारण तरल भर चुका होता है।
सुनने में यह आसान लग सकता है लेकिन यह एक बेहद पेचीदा काम है। आधुनिक वेंटिलेटर मरीज की जरूरतों के हिसाब से शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाते हैं।
पीसीवी यानी प्रेशर कंट्रोल्ड वेंटिलेटर सांस की नली और फेफड़ों की कोशिकाओं के बीच कुछ इस तरह से दबाव बनाते हैं कि शरीर में ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन पहुंच सके।
जैसे ही सही प्रेशर बनता है शरीर से कार्बन डायऑक्साइड निकलने लगती इस। तरह से वेंटिलेटर की मदद से इंसान सांस लेने लगता है।
साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी