देश में कोरोनावायरस का कहर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. हर दिन कोविड -19 से संक्रमित मामलों में वृद्धि हो रही है. ऐसे में सोशल मीडिया पर कई तरह के गलत फैक्ट भी वायरल हो रहे हैं.
अगर आप भी इन फैक्ट को ठीक मान बैठें हो तो एक बार दुनिया स्वास्थ्य संगठन के इन फैक्ट चैक को पढ़ें लें. यहां जानें दुनिया स्वास्थ्य संगठन ने फैक्ट पर क्या कहा:
क्या आप कोविड-19 से अच्छा हो सकते हैं?
WHO ने बताया है कि हमसभी कोरोना वायरस से अच्छा हो सकते हैं. कोरोना वायरस हो जाने का मतलब नहीं है कि ये आपको जिंदगी भर रहेगा. दुनिया स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि अधिकांश लोगो कोरोना वायरस से अच्छा हो गए हैं व उनके शरीर से यह वायरस निकल गया है. अगर किसी को कोरोना वायरस हो गया है तो उसके लक्षणों को सबसे पहले सही किया जाता है. अगर किसी को खांसी, बुखार व सांस लेने में तकलीफ है तो जल्दी से जल्दी मेडिकल केयर मांगे. इसके लिए अगर संभव हो सके तो फोन पर ही हेल्थ सुविधा के लिए कॉल करें. अधिकांश मरीज कोरोना वायरस से सपोर्टिव केयर से अच्छा हुए हैं.
क्या सूर्य की लाइट में खड़े होकर व 25 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान में कोविड-19से बचा जा सकता है?
इस फैक्ट पर दुनिया स्वास्थ्य संगठन ने बोला है कि सूर्य की लाइट में खड़े होकर व 25 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान में रहकर आप कोविड-19 से बच नहीं ,कते हैं. दुनिया स्वास्थ्य संगठन का बोलना है कि अगर आप कोरोना वायरस से संक्रमित हैं तो सूर्य की लाइट व गर्म तापमान से कुछ नहीं होता. ऐसे भी देश हैं जहां तापमान ज्यादा हैं, फिर भी वहां कोरोना वायरस के अधिक से अधिक मुद्दे आ रहे हैं. इसलिए कोरोना वायरस से बचना है तो अफने हाथ धोते रहें व अपनी आंख, नाक व मूंह को हाथ लगाने से बचें.
क्या कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए दो लोगों के बीच एक से दो मीटर की दूरी पर्याप्त है?
‘जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, ड्रॉपलेट के जरिये होने वाले कोविड-19 संक्रमण को रोकने के लिए कम से कम दूरी 8 मीटर या 27 मीटर होनी चाहिए. अध्ययन में यह भी संकेत किया गया है कि सिर्फ दूरी को ही ध्यान में रखना बहुत ज्यादा नहीं है. जब कोई आदमी छींकता या खांसता है, तो छींक या खांसी के दौरान बाहर आईं ड्रॉपलेट का आकार भिन्न-भिन्न होने कि सम्भावना है, तो उनके नष्ट होने में समय भिन्न-भिन्न होने कि सम्भावना है. इसलिए कुछ ड्रॉपलेट के हवा में घंटों तक बने रहने का खतरा होने कि सम्भावना है. हालांकि इस अध्ययन को ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शस डिजीज’ ने भ्रामक करार दिया है.