अक्सर गुमसुम रहना, दूसरे लोगों से घुलने-मिलने से बचना, अपने मन की बात दूसरों को को सरलता से न समझा पाना जैसे लक्षण तीन वर्ष की आयु से लेकर जीवनभर दिख सकते हैं. ये लक्षण एस्पर्जर सिंड्रोम के हो सकते हैं. जो ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिस्ऑर्डर का एक प्रकार है.
लक्षण - इनके मरीज किसी भी काम को करने का अपना उपाय बनाते हैं, इसमें कोई परिवर्तन इन्हें पसंद नहीं आता. रोग से पीड़ित आदमी अलग और अकेला रहना पसंद करते हैं. इससे ग्रसित बच्चों की सीखने की क्षमता धीमी होती है. ये बोलने व नयी भाषा सीखने में देरी करते हैं.
इससे पीडि़त कई मरीज बहुत प्रतिभावान भी होते हैं, वे किसी एक फील्ड जैसे म्यूजिक, एक्टिंग जैसा कोई एक कार्य बहुत अच्छी तरह से कर दिखाते हैं. ये बहुत कम चीजों को एंजॉय करते है जैसे उन्हें डांस करना पसंद है तो महत्वपूर्ण नहीं कि म्यूजिक भी उन्हें अच्छा लगे. ये दूसरों की आंखों में देखकर बात करने से कतराते हैं.
कारण : रोग की मुख्य वजह वैसे अज्ञात है. एक्सपट्र्स का मानना है कि ये एक जेनेटिक बीमारी है. यानी परिवार में किसी को यह समस्या होगी तो उसके आगे की पीढ़ी में भी ये हो सकती है.
उपचार - इस बीमारी का पूरी तरह से निदान संभव नहीं है लेकिन कुछ थैरेपी व काउंसलिंग से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. जैसे स्पेशल एजुकेशन, स्पीच थैरेपी, अभिभावकों की काउंसलिंग, सामाजिक मेल-मिलाप और व्यवहार में परिवर्तन व दवाएं. साइकोलॉजिस्ट, स्पीच थैरेपिस्ट व डॉक्टर एक टीम वर्क के रूप में इसका उपचार करते हैं. इलाज से बच्चे सामाजिक व्यवहार और संवाद में आने वाली समस्याओं को नियंत्रित करना सीखते हैं.