चीन की सन्य आक्रामकता न पहली है, न आखिरी : लोबसांग सांगय (आईएएनएस साक्षात्कार)

विशाल गुलाटीधर्मशाला, 27 जून (आईएएनएस)। हिमालय में चीन द्वारा जारी सैन्य आक्रामकता न तो पहली है और न यह आखिरी होगी। भारत ने चीन के साथ सीमा कभी नहीं सझा किया -यह भारत-तिब्बत सीमा है। भारत को इसके रणनीतिक महत्व को समझते हुए तिब्बत के भूराजनीतिक महत्व को अपना एक प्रमुख मुद्दा बनाने के बारे में विचार करना चाहिए।

ये विचार हैं केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के अध्यक्ष लोबसांग सांगय के, जिसे उन्होंने भारत और चीन के बीच हिमालयी सीमा पर हुए एक संघर्ष के बारे में व्यक्त किया। इस संघर्ष में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे। सांगय को वैश्विक स्तर पर, निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में जाना जाता है।
निर्वासित सरकार के सबसे युवा नेतृत्वकर्ता सांगय ने शनिवार को आईएएनएस के साथ खास बातचीत में कहा, चीन 2008 से ही तिब्बत को चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास के संदर्भ में एक प्रमुख मुद्दा मानता है। उदाहरण के लिए आपको पता होना चाहिए कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ऑन रिकॉर्ड कहा है कि चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता तिब्बत की सुरक्षा और स्थिरता पर निर्भर है।
उन्होंने कहा, इस तरह तिब्बत चीन के लिए भूराजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। तिब्बत के रणनीतिक महत्व को समझते हुए भारत को चाहिए कि वह तिब्बत के भूराजनीतिक महत्व को अपना एक प्रमुख मुद्दा बनाए।
हार्वर्ड शिक्षित 51 वर्षीय लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सीटीए के प्रमुख ने कहा कि चीन की ताजा सैन्य आक्रामकता तो सिर्फ शुरुआत है। उन्होंने कहा, हिमालय में चीन की मौजूदा सैन्य आक्रामकता न तो चीन की पहली सैन्य आक्रामकता है और न तो यह अंतिम होने वाली है।
उन्होंने कहा, तथ्य यह है कि भारत ने चीन के साथ कभी कोई सीमा साझा नहीं की, यह भारत-तिब्बत सीमा है। तिब्बत ने एक हजार साल से अधिक अवधि तक भारत और चीन के बीच एक बफर के रूप में एक शांति क्षेत्र का काम किया है। लेकिन 1950 में तिब्बत पर चीन आक्रमण के बाद से यह स्थिति नहीं रही।
सांगय ने कहा, तिब्बत पर आक्रमण करने के बाद चीन ने पूरे तिब्बत पठार का सैन्यीकरण कर दिया, जो तिब्बत के पड़ोसी देशों के लिए सुरक्षा खतरा पेश करता है। उदाहरण के लिए डोकलाम में 2017 में चीनी सेना का अतिक्रमण, और लद्दाख व सिक्किम में उसके अतिक्रमण सिर्फ शुरुआत भर हैं।
चीन के साथ तिब्बत के मसले को एक मध्यमार्गी दृष्टिकोण के जरिए सुलझाने के तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के रास्ते का जिक्र करते हुए सांगय ने सैन्य संघर्ष और भारत के 20 सैनिकों की शहादत को अनावश्यक बताया।
उन्होंने कहा, पिछले 70 सालों से हम कह रहे हैं कि हमने तिब्बत के अनुभव से एक सबक लिया है। जब तिब्बत पर कब्जा किया गया, तब माओ जेदोंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने रणनीति बनाई कि तिब्बत हथेली है और लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश पांच अंगुलिया हैं।
तिब्बती नेता ने कहा, अपनी विस्तारवादी नीति को दक्षिण एशिया तक फैलाने की यह चीन की रणनीतिक डिजाइन है। तिब्बत यानी हथेली पर कब्जा करने के बाद अब चीनी सैनिक इन पांच अंगुलियों पर आ रहे हैं।
सांगय ने कहा, ठीक यहीं पर चीन भारत के पड़ोसियों नेपाल और मालदीव पर दबाव बना रहा है ताकि एशिया में भारत के अस्तित्व को रोकने के लिए उसे घेरा जा सके।
चीन से आर्थिक रूप से निपटने के लिए चीनी सामानों के बहिष्कार के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि बीजिंग दुनिया का विनिर्माण हब है और कई देशों का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है।
उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि देशों को संयुक्त रूप से चीन पर अपनी व्यापारिक निर्भरत हर हाल में खत्म कर देनी चाहिए। सरकारी स्तर पर कई सारी चीजें की जा सकती हैं। मैं समझता हूं कि उपभोक्तावाद के मामले में सेलेब्रिटीज का एक बड़ा प्रभाव है और इसलिए उन्हें चीन निर्मित सामानों को प्रमोट नहीं करना चाहिए।
सांगय ने कहा, जैसा कि मैं कहता रहा हूं कि तिब्बत को एक शांति क्षेत्र बनाने के लिए तिब्बत के मुद्दे का समाधान निकाला जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, एशिया का भावी सहयोग और विकास भारत-चीन संबंधों की प्रकृति पर निर्भर करता है। चीन-भारत के बीच मजबूत संबंधों के लिए तिब्बत का मसला हर हाल में सुलझना चाहिए। क्योंकि तिब्बत का मसला चीन-भारत संबंधों के केंद्र में है।
सांगय ने स्पष्ट किया, तिब्बत को एशिया में एक शांति क्षेत्र बनाना सबके लिए एक लाभकारी दृष्टिकोण है। मैं मानता हूं कि एशिया का भविष्य तिब्बत के मुद्दे पर निर्भर है।
चीन के साथ सीटीए द्वारा तिब्बत के मुद्दे को सुलझाने के सवाल पर सांगय ने कहा कि वह संवाद में विश्वास करते हैं।
उन्होंने कहा, हमारी रणनीति के अनुसार, बुरी स्थिति के लिए तैयार रहिए और सर्वश्रेष्ठ की आशा रखिए। हम अपने मुद्दे को यथासंभव जल्द से जल्द सुलझाने की आशा रखते हैं, ठीक यहीं पर यदि ऐसा नहीं होता है तो हम बुरी स्थिति के लिए भी तैयार हैं।
भारत-चीन के मौजूदा विवाद के अनुसार यह सीमा विवाद से लेकर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तक फैला हुआ है। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि हमारा मध्यमार्गी दृष्टिकोण हमारे मुद्दे को सुलझाने के साथ ही भारत-चीन के विवाद को भी सुलझाने के लिए सर्वश्रेष्ठ समाधान है।
उन्होंने कहा कि चीन के साथ संवाद का मध्यमार्गी दृष्टिकोण परम पावन दलाई लामा द्वारा निर्धारित किया गया और सीटीए उसका अनुसरण करता है।
सीटीए 1970 के दशक से ही चीनी सरकार के साथ मध्यमार्गी दृष्टिकोण पर आधारित संवाद को आगे बढ़ा रहा है।
मध्यमार्गी दृष्टिकोण न तो पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से अलगाव चाहता है, न तो एक उच्च दर्जे की स्वायत्ता, बल्कि तिब्बत में एक एकल प्रशासन के तहत सभी तिब्बती लोगों के लिए उचित स्वायत्तता चाहता है।
आशावादी सांगय ने कहा, मुझे आशा है कि चीन के लिए अंतर्राष्ट्रीय वैधता हासिल करने के लिए चीनी नेतृत्व जल्द ही महसूस करेगा कि यह (मध्यमार्गी दृष्टिकोण) कितना महत्वपूर्ण है।
-आईएएनएस

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