Oxygen Enrichment Unit developed by CSIR-NCL and Genrich Membranes and manufactured by Bharat Electronics Ltd. has received the certification from TUV, Banglore.
नई दिल्ली, 26 जून (उमाशंकर मिश्र): कोविड-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए नेशनल केमिकल लैबोरेटरी (एनसीएल) पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ऑक्सीजन संवर्धन यूनिट (ओईयू) का महत्व बढ़ रहा है। इसे विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह एक पोर्टबल उपकरण है, जिसका उपयोग घरों, अस्पतालों और ग्रामीण तथा दूरदराज क्षेत्रों में आवश्यकता पड़ने पर किया जा सकता है।
शुरुआत में पूरक ऑक्सीजन मिल जाए तो मरीजों के स्वस्थ होने की दर बढ़ायी जा सकती है। ऐसे में, उन मरीजों की संख्या में भी कमी लायी सकती है, जिन्हें आगे चलकर वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है।
वेंटिलेटर पर रखे जाने के बाद भी मरीजों को इस ऑक्सीजन संवर्धन यूनिट की मदद से उपचार दिया जा सकता है। इसकी एक खूबी यह है कि इसमें ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत नहीं पड़ती।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस यूनिट के उपयोग से वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडरों की मांग को कम करने में मदद मिल सकती है।
ओईयू से जुड़ी प्रौद्योगिकी एनसीएल के पॉलिमर साइंस ऐंड इंजीनियरिंग डिविजन के वैज्ञानिकों और उनके द्वारा समर्थित स्टार्टअप कंपनी जेनरिच मेम्ब्रेन द्वारा मिलकर विकसित की गई है।
एनसीएल के पॉलिमर साइंस ऐंड इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख उल्हास खारुल के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने ऑक्सीजन को संवर्धित करने के लिए हॉलो फाइबर झिल्ली का उपयोग किया है।
हॉलो फाइबर झिल्ली ; खोखले फाइबर के रूप में आंशिक अवरोध से युक्त एक प्रकार की कृत्रिम झिल्ली होती है। यह झिल्ली ऐसे अवरोधक की तरह काम करती है, जो कुछ चीजों को तो अपने भीतर से होकर गुजरने देती है, लेकिन अन्य चीजों को रोक लेती है। इनमें अणु, आयन या अन्य छोटे कण शामिल हो सकते हैं।
अस्पताल में रोगों के उपचार में काफी मात्रा में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इन्टेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) और ऑपरेशन थियेटर में उपचार के दौरान मरीजों को सांस लेते समय 90 प्रतिशत तक ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है। इसी तरह, फेफड़ों से संबंधित बीमारियों के उपचार के समय 27-35 प्रतिशत ऑक्सीजन युक्त श्वसन वायु की आवश्यकता होती है। आमतौर पर, वातावरण में करीब 21 प्रतिशत ऑक्सीजन पायी जाती है। वातावरण में मौजूद हवा से ऑक्सीजन संवर्धन के लिए कुछ अन्य तकनीकों का भी उपयोग हो सकता है। शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस कम तापमान पर हवा में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाने के लिए उपयोग होने वाली क्राइअजेनिक (निम्नतापीय) तकनीक और गैसों के मिश्रण से कुछ गैसों को अलग करने के लिए उपयोग होने वाली प्रेशर स्विंग अवशोषण ऐसी ही कुछ तकनीकें हैं। लेकिन, ये दोनों काफी महंगी प्रौद्योगिकी हैं।
डॉ खारुल और उनकी टीम द्वारा विकसित ओईयू 0.5-15 लीटर प्रति मिनट की दर से 35-40 प्रतिशत ऑक्सीजन प्रवाहित कर सकती है। इसमें एक निश्चित दबाव पर वातावरण में मौजूद हवा को हॉलो फाइबर में प्रवाहित किया जाता है, जो अपने विशेष गुणों के कारण ऑक्सीजन को सोखने की क्षमता रखती है।
एनसीएल की विज्ञप्ति में बताया गया है कि विभिन्न मंचों, अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऐसी लगभग 50 इकाइयों को असेंबल करके प्रदर्शित किया गया है।
एनसीएल ने ओईयू के प्रोटोटाइप की वैधता के परीक्षण के लिए बंगलुरु स्थित टीयूवी इंडिया में आवेदन किया था, जिसमें इस प्रौद्योगिकी को सही पाया गया है।
डॉ खारुल ने बताया कि
'सामग्री की आपूर्ति और श्रम की उपलब्धता से जुड़ी बाधाओं के बावजूद एनसीएल और जेनरिच मेम्ब्रेन्स मिलकर लॉकडाउन के दौरान ऐसी तीन यूनिट बना चुके हैं। इन यूनिटों का पुणे के नायडू अस्पताल में कोविड-19 के उन मरीजों पर परीक्षण किया जा रहा है, जिनको शारीरिक क्रियाकलाप बनाए रखने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन की कमी से जूझना पड़ता है।
एनसील ने ओईयू के उत्पादन के लिए जेनरिच मेम्ब्रेन्स के अलावा भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (बीईएल), पुणे के साथ भी करार किया है।
ऑक्सीजन संवर्धन यूनिट का उत्पादन जेनरिच मेम्ब्रेन के साथ-साथ भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। बीईएल के महाप्रबंधक के. राजेंद्र ने कहा है कि 'मौजूदा मेडिकल चुनौती को देखते हुए बीईएल इस परियोजना पर युद्ध स्तर पर काम कर रही है। हम अब तक 10 यूनिट बेहद कम समय में बना चुके हैं। बीईएल की योजना जल्दी ही 100 अन्य यूनिट बनाने की है।' (इंडिया साइंस वायर)