कहानी- नानी की चतुराई

हमारे गांव में एक वृद्धा रहती थी। प्रत्येक व्यक्ति उन्हें नानी कहता था। वह हर किसी से झगड़ा मोल लेती थी। नानी से सभी डरते थे।

एक दिन की बात है नानी ने अपनी पड़ोसन को गीत गाते सुना। नानी उसके पास पहुंची और बोली, 'यह गीत कैसे गाया जाता है?'
पड़ोसन नानी को अच्छी तरह जानती थी। वह बोली, 'गीत गाना तो बहुत सरल है। ये तो बाजार में बिकते हैं।'
नानी यह सुन कर घर आ कर अपने पति से बोली, 'तुम बाजार जा कर मेरे लिए गीत खरीद लाओ।'
नानाजी परेशान हो कर कुछ नहीं बोले। बाजार जा कर एक दुकानदार से बोले, 'क्यों भाई, तुम्हारे यहां गीत मिलते हैं?'
दुकानदार समझा कि कोई गंवार है। सो बोला, 'आगे चले जाओ। वहां गीत मिलते हैं पर बिकते नहीं।'
शाम हो गई, घर जाना नानाजी के लिए मुश्किल हो गया। चलते समय उन्होंने एक चूहे को बिल में घुसते देखा, उन्होंने आवाज सुनी खर्र-खर्र-खर्र। नानाजी ने इसे गीत की पंक्ति बना ली 'खोदे खर्र-खर्र।'
आगे चल कर नानाजी ने सांप को सरकते देखा। उसकी आवाज सुन कर दूसरी पंक्ति बना ली 'सरके सर्र-सर्र।'
आगे चल कर उन्हें खरगोश मिला। उसे देखा। देख कर उन्होंने एक पंक्ति बना ली 'देखे डगर मगर।'
आगे चल कर उन्होंने छलांग लगाते, भागते हुए हिरण को देखा। उन्होंने चौथी पंक्ति बना ली 'कूदे अलंग फलंग।' फिर घर आ कर नानी को गीत सुनाया-
खोदे खर्र-खर्र, सरके सर्र-सर्र
देखे डगर मगर, कूदे अलंग फलंग।
नानी दिन-रात गाने लगी। संयोग की बात है, इसके दो-तीन दिन बाद नानी के घर में चोरी करने के लिए चोरों ने सेंध लगाई।
चोरों ने खोदना शुरू किया। नानी गा रही थी, 'खोदे खर्र-खर्र।' चोर समझे उन्हें देख कर गा रही है। चुपचाप सरकने लगे। अगली पंक्ति थी, 'सरके सर्र-सर्र।' चोर अब डर के मारे दरवाजे की तरफ देखने लगे। नानी ने आगे गाया, 'देखे डगर मगर।' चोर बाहर कूद गए। नानी ने गाया, 'कूदे अलंग फलंग।'
चोर भाग गए। जब नानीजी को मालूम हुआ कि चोर गीत सुन कर भाग गए तो नानाजी ने अपनी छाती फुला कर कहा, 'देखो, कितना बढिय़ा गीत खरीद कर लाया हूं।'
और नानीजी जीवन में पहली बार प्रसन्न हुईं।
- नरेन्द्र देवांगन

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