हमारी स्कीन पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरती है जिसमें स्कैल्प (सिर की सतह), हथेलियां, तलवे, कोहनी, घुटने व पीठ आदि अंग प्रभावित होने से सोरायसिस होती है.
सबसे ऊपरी परत एपिडर्मिस
त्वचा की सबसे ऊपरी परत एपिडर्मिस पर होती है. यह बीमारी आनुवांशिकता, एलर्जी या किसी प्रकार के संक्रमण से यह कठिनाई हो सकती है. इसके अतिरिक्त मौसम में होने वाले परिवर्तन भी इसका कारण बनते हैं. त्वचा रूखी होती है, मोटाई बढ़ जाती है लक्षण : इस रोग से प्रभावित हिस्से की चमक कम होने से स्कीन रूखी, फटी व मोटी दिखाई देती है और उसमें खुजली भी होती है. सोरायसिस के क्रॉनिक और गंभीर होने पर करीब 40 फीसदी रोगियों में जोड़ों में दर्द और सूजन जैसे लक्षण भी पाए जाते हैं. इस अवस्था को सोराइटिस आर्थराइटिस कहते हैं. यह बीमारी सर्दियों में ज्यादा परेशान करती है. होम्योपैथी में भी है अच्छा उपचार होम्योपैथी एक्सपर्ट का बोलना है कि सोरायसिस के इलाज में बाह्य इस्तेमाल के लिए एंटिसोरियेटिक क्रीम/ लोशन/ ऑइंटमेंट की महत्त्वपूर्ण किरदार होती है. लेकिन जब बाह्योपचार से फायदा न हो तो एंटीसोरिक व सिमटोमेटिक होम्योपैथिक औषधियों का इस्तेमाल महत्वपूर्ण होता है. लक्षणानुसार कुछ होम्योपैथिक औषधियां जैसे मरक्यूरस सौल, लाईकोपोडियम, सल्फर, सोराइन्म, आर्सेनिक अल्ब्म, ग्रफाइट्स आदि दी जाती हैं. होम्योपैथी में शारीरिक और मानसिक लक्षणों को देखने के बाद ही इलाज किया जाता है इसलिए इन दवाओं का इस्तेमाल विशेषज्ञ की सलाह से ही करें.