क्या अलग अलग फेज में पाए जाते है डिप्रेशन के लक्षण, आप भी जानिए इसकी जानकारी बारीकी से..

इसके अलग-अलग फेज होते हैं जो कई लक्षणों को दर्शाते हैं. अगर किसी व्यक्ति में कुछ लक्षणों के आधार पर शुरुआती स्तर पर ही इसकी पहचान हो जाए तो व्यक्ति को गंभीर डिप्रेशन में जाने से बचाया जा सकता है.

डिप्रेशन के पहले स्टेज में इंसान को स्ट्रेस यानी तनाव होने लगता है. इसकी बहुत सारी वजह हो सकती है, जैसी सामाजिक, आर्थिक या भावनात्मक कुछ भी जिसकी वजह से हमें मानसिक तनाव होने लगता है. अगर हम इस स्ट्रेस को कम कर लें तो ठीक वरना यह स्ट्रेस धीरे-धीरे एंग्जाइटी में बदल जाता है, और यदि एंग्जाइटी लंबे समय तक बनी रहे और उसका ट्रीटमेंट ना हो तो वह डिप्रेशन का रूप ले लेती है.
ज्यादातर डिप्रेशन की असल वजह हमारे ब्रेन में सेरोटॉनिन हॉर्मोन की कमी होती है. जब इस हॉर्मोन का बनना हमारे ब्रेन में कम हो जाता है तो हम नेगेटिविटी की तरफ बढ़ने लगते हैं. इसलिए डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है, जिसे मनोचिकित्सक यानी सायकाइट्रिस्ट से इलाज के द्वारा ठीक किया जा सकता है.
डिप्रेशन की शुरुआत हर समय नकारात्मक विचारों से घिरे रहने के कारण होती है. ना चाहते हुए भी व्यक्ति के दिमाग में नकारात्मक बातें आती रहती हैं. उसके ये विचार उसके ब्रेन पर हावी होने लगते हैं और फिर उस व्यक्ति का व्यवहार भी इन विचारों की तरह नकारात्मक होने लगता है. अगर हमारे आस पास डिप्रेशन से रिलेटेड चीजें होने लगती हैं, जैसे नेगेटिव लोगों से मिलना, नेगेटिव किताबें पढ़ना, नेगेटिव गाने सुनना, नेगेटिव खाना हर चीज डिप्रेशन को बढ़ावा देने लगता है.
वहीँ दूसरे चरण को हम क्रॉनिक डिप्रेशन कहते हैं. ऐसी स्तिथि में पेशेंट को काफी अकेलापन महसूस होने लगता है, निराशा और घबराहट इस हद तक घेर लेते हैं कि उसे अकेले हो जाने से डर लगता है और किसी की सलाह पर वह आराम से भरोसा कर नहीं पाता है. उसे लगता है कि उसे कोई नहीं समझता, वह दुनिया में बहुत अकेला है और किसी को उसकी जरूरत नहीं है. ये सभी विचार हॉर्मोनल डिसबैलंस के चलते आते हैं.

अन्य समाचार