दुनियाभर में कोरोना की आरंभ लोगों में सांस लेने की दिक्कतों से प्रारम्भ हुई थी. संक्रमण रोकने के लिए हमें तब तक मास्क पहनना होगा, जब तक वैक्सीन नहीं बन जाता.
लेकिन अब मास्क की वजह से भी सामान्य रूप से सांस लेने में परेशानी हो रही है. लेकिन इससे चिंतित होने की कोई वजह नहीं है. इसका हल यह है कि हमें अपने स्वास्थ्य को भी बेहतर करना है व क्षमता भी बढ़ानी है.
मैं ब्रुकलिन में साइकिल चलाते हुए देखता हूं कि कई लोग मास्क तो लगाते हैं, लेकिन गले में. वे उसे तभी मुंह व नाक पर लगाते हैं, जबकि किसी दूसरे आदमी के पास से गुजरते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हम अपनी मांसपेशियों, दिमाग व अन्य अंगों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचा पा रहे हैं. कहीं मास्क इसमें रुकावट तो नहीं बन रहे. ऐसे में यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि सांस लेने की प्रक्रिया कितनी प्रभावी है.
सांसों के विशेषज्ञ कहते हैं कि ज्यादातर लोग गलत ढंग से सांस लेते हैं या पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं खींचते. वहीं एक नयी किताब- ब्रेथ: द न्यू साइंस ऑफ ए लॉस्ट आर्ट के लेखक डाक्टर जेम्स नेस्टर कहते हैं,"आप सांस कैसे लेते हैं यह अर्थ रखता है. ज्यादातर लोग मुंह से सांस लेते हैं, जिससे शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती. जबकि नाक से सांस लेना चाहिए. इससे हार्मोन व नाइट्रिक एसिड ज्यादा निकलते हैं, जो हमें स्वस्थ बनाते हैं.'
हम दिन में करीब 25 हजारसांस लेते हैं, पर ज्यादातर लोग ठीक हम एक दिन में औसतन 25 हजारसांस लेते हैं, पर ज्यादातर लोग गलती करते हैं. ठीक ढंग से श्वास शरीर में एसिड संतुलित रखती है व पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंचाती है. सांसों में तेज उतार-चढ़ाव से ऑक्सीजन सप्लाई रुकती है. इससे चिंता, चिड़चिड़ापन, थकान, एकाग्रता में कमी आ सकती हैं.