रिसर्च / वैज्ञानिकों ने किया दावा - जुकाम आपको कोरोना संक्रमण से बचाता है

कोरोना संक्रमण आज पूरी दुनिया में लगातार फैलता जा रहा है ऐसे में वैक्सीन की खोज कर रही वैज्ञानिकों की एक टीम ने दावा किया है कि जुकाम कोरोना संक्रमण से आपको बचाता है। रिसर्च में कहा गया है कि जिन भी लोगों को जुकाम हुआ है उनके कोरोना संक्रमण की चपेट में आने की आशंका न के बराबर होती है। दरअसल, जुकाम के बाद शरीर में जो इम्युनिटी पैदा होती है वो कोरोना वायरस से बचाने या फिर उसके असर को बेहद कम करने में सक्षम है।यह दावा सिंगापुर के Duke-NUS मेडिकल स्कूल में इम्युनोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रोफ़ेसर अंतोनियो ब्रेतोलेती की टीम ने किया है। रिसर्च में कहा गया है कि जुकाम लगने पर शरीर में बनने वाले टी-सेल्स कोरोना से आपको बचाने में कारगर होते है।


टी-सेल्स देती है सुरक्षा कोरोना परिवार के वायरस ही जुकाम देने में 30% योगदान देते हैं हालांकि ये सिर्फ सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियां देने के अलावा काफी घातक होते हैं। वैज्ञानिकों की इस टीम ने पता लगाया है कि इन वायरस ने पैदा होने वाले सर्दी-जुकाम के खिलाफ सदियों से शरीर में मौजूद टी-सेल्स सुरक्षा देती आई हैं। कोरोना संक्रमण की जेनेटिक संरचना भी इन वायरस के जैसी होने के चलते इस संक्रमण के शरीर में प्रवेश करने पर टी-सेस एक्टिव होती हैं और इसके प्रभाव को या तो ख़त्म कर देती हैं या फिर इसे बेहद कम कर देती हैं। कोविड-19 और सार्स के खिलाफ टी-सेल्स एक्टिव होती हैं। अंतोनियो के मुताबिक इससे यह साबित होता है कि धीरे-धीरे जुकाम की ही तरह मानव शरीर कोरोना संक्रमण के भी खिलाफ टी-सेल्स बना लेगा और काफी हद तक इम्यून हो जाएगा। एक बार इस तरह की टी-सेल्स विकसित होने के बाद संक्रमण के खिलाफ इम्युनिटी हासिल हो जाएगी। इस टीम ने कोविड-19 से संक्रमित 24 से ज्यादा मरीज और सार्स की चपेट में आए 23 मरीजों पर ये रिसर्च की है। इनमें से कॉमन कोल्ड वाले लोग इन वायरस की चपेट में कम आए थे।
क्या होता है टी-सेल्स? बता दें कि टी-सेल्स व्हाइट ब्लड सेल्स का ही एक टाइप होती हैं जी कि इम्यून सिस्टम में सेकेंड लाइन ऑफ़ डिफेन्स का काम करती हैं। ये इस तरह के वायरस का हफ़्तों तक मुकाबला कर उसका असर ख़त्म कर देती हैं। इस टीम के मुताबिक बीटा-कोरोना वायरस जैसे OC43 और HKU1 इंसानों में जुकाम और चेस्ट इन्फेक्शन पैदा करते हैं। इन सभी वायरस और कोरोना वायरस, मेरस और सार्स की जेनेटिक संरचना काफी हद तक एक जैसी ही होती है। ये सभी जानवरों के जरिए इंसानों में फैलते हैं।

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