लॉकडाउन में फेसबुक पर अवधी कहानियां सुनाकर नागेन्द्र बटोर रहे वाहवाही

लखनऊ। बीकेटी इलाके के समाजसेवी नागेन्द्र बहादुर सिंह चौहान कोरोना महामारी और लॉकडाउन के इस संकट काल में अप्रैल से फेसबुक पर बच्चों को अवधी कहानियां सुना रहे हैं। इन कहानियों को भारत में ही नहीं, बल्कि फ्रांस, कनाडा, नेपाल, थाईलैंड व मॉरीशस सहित अन्य देशों में भी देखा-सुना जा रहा है। साथ ही, वह लोगों को कोरोना के प्रति ग्रामीण जनता को जागरूक कर रहे हैं। वह लोगों को शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए योग भी सिखा रहे हैं।

फेसबुक पर लाइव कहानी सुनाने वाले नागेन्द्र ने बताया कि अवधी बोली-भाषा और दादी-दादी, नाना-नानी की कहानियों के असंख्य प्रेमी देश में ही नहीं हैं, बल्कि विदेशों में भी हैं। उन्हें इसका अंदाजा अवधी कहानियां सुनाने से हुआ। इससे उन्हें अत्यंत आंनद की अनुभूति हो रही है। वह अब तक 30 अवधी कहानियां सुना चुके हैं। समाजसेवी नागेन्द्र शुरुआत में रोज शाम 6 बजे एक अवधी कहानी सुनाते थे। फिर रमजान महीने में रोजा इफ्तार के कारण समय बदल दिया। मुस्लिम बंधुओं की सुविधा के लिए समय शाम साढ़े 5 बजे किया। वह विगत 22 अप्रैल से फेसबुक पर लाइव होकर अवधी कहानियों को सुना रहे हैं। इधर, वह हफ्ते में एक कहानी रविवार को सुनाते हैं। नागेन्द्र ने इन कहानियों को अब से तकरीबन 40-42 साल पहले अपने नानी, नाना व दादा सहित अन्य पुरखों से सुनी थी।
उनका कहना है कि अभिभावकों में जिंदगी की भागदौड़, बच्चों पर पढ़ाई का बोझ और स्मार्ट मोबाइल फोन आदि ने कहानी कहने-सुनने का दौर हड़प लिया है। अब तो परिवार के सभी सदस्य एक साथ भोजन तक नहीं करते हैं। पूरे परिवार का एक जगह बैठना, बातें करना, हंसी-ठिठौली करना और कहानी कहना-सुनना इत्यादि गुजरे जमाने की बातें हो गई हैं। शायद इसी वजह से लोग तनावग्रस्त हो रहे हैं। परिवारिक स्नेह कम हो रहा है। लोग एकाकी होकर चिड़चिड़े हो रहे हैं। संयुक्त परिवार बिखरते ही जा रहे हैं। नागेन्द्र का मानना है कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने परिवार को एक साथ घर में ही रहने का अवसर दिया है। परंतु, इस मौके पर भी मियां-बीवी में झगड़े हो रहे हैं। स्मार्ट फोन और टीवी होने के बावजूद बच्चे, बड़े, बूढ़े सब बोर रहे हैं। ऐसे में कहानियों की संजीवनी बड़ी कारगर हो सकती है। घरों में ज्ञानवर्धक, मनोरंजक, साहसिक कहानियों का दौर एक बार फिर शुरू होना चाहिए। तब पूरा परिवार कहानी कहने-सुनने के बहाने कम से कम घन्टे-डेढ़ घण्टे प्रतिदिन एक साथ बैठेगा। सबका विशुद्ध मनोरंजन ही नहीं होगा, बल्कि परिवारीजन आपस में ढेर सारी बातें भी कर सकेंगे।
उन्होंने इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर लॉकडाउन पीरियड में पुरानी अवधी कहानियों को सुनाने का सिलसिला शुरू किया है। देश-विदेश के सैकड़ों लोग रोज मेरी कहानी सुनते हैं। इन कहानियों में लोगों को खूब आनन्द आ रहा है। उनके पास रोज तमाम फोन और मैसेज भी आते हैं। उनसे कई लोगों ने बताया कि वे लोग सपरिवार एक जगह बैठकर मेरी लाइव अवधी कहानी देखते-सुनते हैं। उन्हें भारत ही नहीं, अपितु नेपाल, थाईलैंड व कनाडा व फ्रांस से अवध क्षेत्र के मूल निवासियों ने फोन करके धन्यवाद देते हुए उत्साहित किया। फ्रांस के भारतीय दूतावास (पेरिस) में कार्यरत एक अधिकारी की पत्नी अज़रा अहमद ने फोन पर बताया कि 'मैं उन्नाव (उत्तर प्रदेश, भारत) की मूल निवासी हूँ। मैं आपकी अवधी कहानियों को रोज अपने दोनों बच्चों व पति के साथ सुनती हूँ। मेरा परिवार आपकी कहानी सुनते-सुनते हम अपने घर-गांव-पहुंच जाता है। इसी से मिलती-जुलती बात कनाडा के जगदीश गुप्ता व अमेरिका से अलका सहाय ने भी बताई है।
वह अब तक रामसुख केरि खिचरी, बकरेऊ कय भूख, शेरऊ कय बाप, मामा अउ दुई भांजे, सिरकिया पहलवान, ढोलक तौ चलि ठुममुक-ठुममुक, सियार कय दोस्ती, लड़हिया लयगै चील, पंडितजी लीपेन-लीपेन, राजा केरे मुड़ेम दुई सींघै, लंगड़ी घोड़िया, मूंछें फ़र्फ़रानी, टका सेर भाजी-टका सेर खाझा, मक्खी चूस सेठ, बनुवा ज्योतिषी, काज करेली, बग्घराज-बच्छराज, बड़ी अम्मा रहयं डाईन, हम आन बजरंगबली, हनुमान केर घमण्डु, खीर खाओ नईतौ गदा, नकटा बाबा, ग्यानु सूत्र, डाईन केरि अम्मा, नरदु, जामुनि केरि बागिया व सौतेल बिटिया इत्यादि 30 अवधी कहानियां सुना चुके हैं।
नागेन्द्र लोगों को कोरोना से लड़ने के लिए निःशुल्क योग भी सिखाते हैं। आम जन को शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। दैनिक योगाभ्यास से शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि होती है। उन्होंने खुद योग से अपनी हेपेटाइटिस-बी बीमारी पर नियंत्रण हासिल किया है। उनके योग अभियान पर दूरदर्शन, लखनऊ ने पहले विश्व योग दिवस पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म 'योग की कहानी-बीकेटी की जुबानी' प्रसारित की थी। उन्हें योग के प्रचार-प्रसार के लिए उप्र के तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने सम्मानित भी किया था।

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