वर्क फ्रॉम होम ये पांच स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ सकते, पढ़े

लॉकडाउन व अब अनलॉक होने के बाद भी जिन लोगों को घर में बैठकर कार्यालय का कार्य करना पड़ रहा है, उन्हें भले ही आरंभ में यह सब परिवर्तन अच्छा लगा हो. उन्हें लगा हो

कि अब घर से कार्यालय तक जाने का ट्रैफिक का झंझट कुछ दिन के लिए खत्म, रोज की मीटिंग्स का अब सिरदर्द नहीं, आराम से घर के बिस्तर पर लेटकर भी कार्य किया जा सकता है. लेकिन उनका यह सोचना भले ही दिलचस्प हो, लेकिन स्वास्थ्य के अर्थ से परेशान करने वाला है. वर्क फ्रॉम होम ये पांच स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ सकते हैं.मोटापा जब कार्यालय में कार्य करते हैं तो सीटिंग पोजिशन, पोश्चर का खासा ख्याल रहता है. वहीं अपने सहकर्मी से किसी कार्य से मिलने के लिए स्थान से उठना व इधर-उधर जाना भी होता है. समय पर लंच व शॉर्टब्रेक्स होते हैं. लेकिन घर में कार्य करते हुए एक रूटीन या शेड्यूल बनाना इतना सरल नहीं है. ना तो कार्य करने का कोई तयशुदा रूटीन, ना बीच-बीच में तयशुदा ब्रेक व साथ ही ऐसा कोई उद्देश्य भी नहीं बचता कि अपनी स्थान से उठकर या हिलकर कहीं जाया जाए. ऐसे में असमय खाने की आदत भी ज्यादा कैलोरी का कारण बन रही है. इससे वजन बढ़ सकता है जो कि पता भी नहीं चलेगा व मोटापे में बदल जाएगा.तनाव यानी स्ट्रेस लॉकडाउन में स्कूल व ऑफिसेस सभी बंद हैं, इसका मतलब यही है कि घर पर सारे दिन बच्चे हैं. ऐसे में उनकी अपेक्षाएं व मांगें भी सारे दिन चलती हैं व ऊंची होती हैं. दूसरी तरफ घर से कार्य करते हुए पूरी प्रयास में लगे रहते हैं कि क्रिएटिव व इफेक्टिव रहें. इससे कठिन से ब्रेक मिल पाता है व मिलता भी है तो दिमाग में कार्य ही कार्य चलता रहता है. ये सब साथ होना तनाव पैदा करता है व मानसिक रूप से स्वस्थ रहना एक चुनौती बन जाता है. www.myupchar.com से जुड़े एम्स के डाक्टर उमर अफरोज का बोलना है कि एकाग्र ना हो पाना, निर्बल स्मरणशक्ति, भोजन संबंधी आदतों में परिवर्तन इसके मुख्य लक्षणों में से एक है. यह अवसाद, बायपोलर डिसऑर्डर जैसे मानसिक विकारों को जन्म देता है.चिंता यानी एंग्जाइटी कोरोना वायरस के माहौल में जब सारे दिन घर पर होते हैं तो मीडिया में चल रही निगेटिव खबरों पर खूब ध्यान जाता है. यहीं नहीं किसी पड़ोसी या सम्बन्धी के यहां कोई कोरोना का मुद्दा पता चल जाए तो व भी चिंता बढ़ जाती है. ऐसे में सोचने में ज्यादा समय जा रहा है व चारों तरफ की नकारात्मता ही ले रहे हैं. इससे भावनात्मक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहना कठिन हो जाता है, नींद का चक्र भी गड़बड़ा जाता है. नींद का गड़बड़ाना अकल्पनीय स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं दे सकता है. चूंकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना महत्वपूर्ण है तो ऐसे में सूर्य की लाइट व प्रकृति के सम्पर्क में बहुत कम आ पाते हैं. इससे स्ट्रेस हार्मोन्स से छुटकारा पाना कठिन होता है व एंग्जायटी का जोखिम बढ़ जाता है.बर्नआउट कई लोग घर से कार्य करते हुए बर्नआउट का अनुभव कर रहे हैं. यह देखा गया है कि कर्मचारी तुलनात्मक रूप से घर से ज्यादा घंटे कार्य कर रहे हैं. घर में होने पर छोटी सी भी वस्तु से ध्यान भटकने लगता है, जिससे कार्य में देरी होने लगती है. कंपनी सोचती है कि चूंकि कर्मचारी को घर जाने के लिए ट्रेवल करने की आवश्यकता नहीं है व कार्य करने के लिए सहज माहौल में है तो कार्य के घंटे ज्यादा होना सामान्य व स्वीकारयोग्य है.डायबिटीज डायबिटीज केवल इस बात पर निर्भर नहीं करता कि कितना शक्कर खाते हैं. यह खाने की पसंद, नींद के चक्र, तनाव के स्तर, गतिविधि के स्तर व शारीरिक स्वास्थ्य पर भी संयुक्त रूप से निर्भर करता है. यह जीवनशैली के कारण होने वाली बीमारी है व फैट की चर्बी डायबिटीज का जोखिम 80 से 85 फीसदी बढ़ा देता है. www.myupchar.com से जुड़े एम्स के डाक्टर अनुराग शाही का बोलना है कि वजन भी टाइप 2 डायबिटीज का जोखिम बढ़ाता है, क्योंकि टिशू जितने मोटे होंगे, कोशिकाएं इंसुलिन के काम में उतनी ही बाधा डालेंगी. टाइप 1 व टाइप 2 डायबिटीज दोनों के प्रबंधन के लिए अनुशासन चाहिए जो कि घर से कार्य करते हुए कठिन होता है. होने कि सम्भावना है आदमी आधी रात के समय कुछ खाने-पीने लगता हो, सोने का समय गड़बड़ाता हो व कोई शारीरिक व्यायाम नहीं हो रहा हो. इससे भी सबसे महत्वपूर्ण है कि खानपान क्या है. अगर यह अस्वास्थ्यकर है तो तनाव व चिंता बढ़ेंगे.

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