कोविड-19 महामारी के कारण दुनियाभर में लागू किए गए लॉकडाउन ने मोटापे से ग्रस्त बच्चों के लिए आहार, नींद व शारीरिक गतिविधि को निगेटिव रूप से प्रभावित किया है. यह दावा एक अध्ययन में किया गया है. इस अध्ययन में बच्चों व किशोरों की गर्मी में लगे लॉकडाउन जीवनशैली की तुलना पिछले वर्ष से की गई.
अमेरिका में बफेलो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक कोविड -19 महामारी का सीधे वायरल इन्फेक्शन के परे व भी कई दुष्प्रभाव हुए हैं. मोटापे से जूझ रहे बच्चों व किशोरों पर इसका बुरा प्रभाव हुआ है जो स्वस्थ ज़िंदगी शैली को बनाए रखने के लिए प्रतिकूल वातावरण पैदा करता है.www.myupchar.com से जुड़े डाक्टर प्रदीप जैन का बोलना है कि मनोवैज्ञानिक कारण की वजह से भी कुछ बच्चों व किशोरों में फैट की चर्बी बढ़ने लगता है. जो बच्चे तनाव, बोरियत व निगेटिव भावना को कम करने के लिए अधिक खाना खाते हैं, उनको मोटापे की समस्या हो जाती है.स्कूली साल की तुलना में बच्चों व किशोरों ने गर्मी की छुट्टी के दौरान ज्यादा वजन बढ़ा है, जिससे शोधकर्ताओं को आश्चर्य हुआ कि घर में बंद होने के कारण बच्चों के जीवनशैली व्यवहार पर समान असर पड़ा. ओबेसिटी जर्नल में प्रकाशित निष्कर्षों के लिए, शोधकर्ताओं ने 41 बच्चों व किशोरों को मोटापे के साथ मार्च व अप्रैल में इटली के वरोना में सर्वेक्षण किया.आहार, उनकी एक्टिविटी व नींद के बारे में जीवनशैली की जानकारी इटली में जरूरी हुए लॉकडाउन के तीन हफ्ते बाद एकत्र की गई थी व 2019 में इकट्ठा किए गए बच्चों के आंकड़ों से इसकी तुलना की गई. शारीरिक गतिविधि, स्क्रीन टाइम, नींद, खाने की आदतों व रेड मीट, पास्ता, स्नैक्स, फलों व सब्जियों के सेवन पर केंद्रित प्रश्न थे.नतीजे सामने आए तो उनके व्यवहार में निगेटिव परिवर्तन देखे गए. यह दर्शाता है कि मोटापे से ग्रस्त बच्चे स्कूल की करिकुलम में व्यस्त रहने की तुलना में वेट कंट्रोल लाइफस्टाइल के कार्यक्रम पर अच्छा नतीजा नहीं दे पाए.एक वर्ष पहले उनका जो व्यवहार था, उसकी तुलना में बच्चों ने प्रति दिन अलावा भोजन खाया. वे प्रतिदिन अलावा आधा घंटा सोये. फोन, कंप्यूटर व टेलीविजन स्क्रीन के सामने प्रति दिन लगभग पांच घंटे बिताए व रेड मीट, शुगरी ड्रिंक व जंक फूड की खपत में बढ़ोतरी हुई.अध्ययन में बोला गया है कि दूसरी ओर शारीरिक गतिविधि में हर हफ्ते दो घंटे से अधिक की कमी हुई व खपत की गई सब्जियों की संख्या में परिवर्तन नहीं हुआ.शोधकर्ताओं के मुताबिक लॉकडाउन की अवधि के दौरान पर बढ़ाया गया अलावा वजन सरलता से कम नहीं होने कि सम्भावना है व अगर स्वस्थ जीवनशैली में नहीं लौटे तो वयस्कता में मोटापे की बड़ी कठिनाई खड़ी हो सकती है. यह इसलिए है, क्योंकि बचपन व किशोरावस्था का फैट की चर्बी समय के साथ ट्रैक किया जाता है व वयस्कों के रूप में वजन की स्थिति भी सामने आती है.www.myupchar.com से जुड़े एम्स के डाक्टर अजय मोहन का बोलना है कि प्रतिदिन सोने, खाने, व्यायाम, पढ़ाई व खेलने के समय को तय कर दिया जाए तो बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर इस रूटीन का अच्छा प्रभाव पड़ता है.