Mahabharata story: महाभारत के युद्ध के पीछे कोई एक वजह नहीं थी. इसके पीछे कई वजह थी. लेकिन इनमें महत्वाकांक्षा, पुत्रमोह और अपमान का बदला लेना प्रमुख था. सभी जानते हैं कि राजा धृतराष्ट्र अपने पुत्र दुर्योधन के मोह में इस कदर लिप्त हो गए कि वे उसे हस्तिनापुर का राजा बनाने के लिए उचित और अनुचित में भेद नहीं कर पाए. दुर्योधन महत्वाकांक्षा के सागर में इस कदर डूब गया कि उसे दूसरों के अधिकारों का हनन करने में आनंद आने लगा था. उसने मर्यादा को ताक पर रख दिया. भरे दरबार में चीर हरण जैसा कृत्य उसकी महत्वाकाक्षाओं की पराकाष्ठा का प्रर्दशित करता है. महाभारत के युद्ध में महिलाओं की भूमिका भी अहम रही.
गांधारी गांधारी गांधारराज सुबल की पुत्री थी. भीष्म को जब ये बात पता चली कि गांधार देश की राजकुमारी सब लक्षणों से संपन्न और पूर्ण हैं तो भीष्म ने धृतराष्ट्र के विवाह का प्रस्ताव सुबल को भेजा. पहले तो सुबल ने एक नेत्रहीन राजा के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने से इंकार कर दिया लेकिन बाद में बहुत सोच-विचार करने के बाद हां कर दी. गांधारी को जब पता चला कि उनका होने वाला पति जन्म से अंधा है तो उसने भी आजीवन आंखों पर पट्टी बांधने का निर्णय लिया. गंधारी भगवान शिव की उपासना करती थीं. भगवान शिव के आर्शीवाद से ही उन्हें सौ पुत्रों का वरदान प्राप्त हुआ था. लेकिन महाभारत के युद्ध में सभी की मौत हो गई. गंधारी दुर्योधन को भी समझाने में असफल रहीं.
कुंती कुंती वसुदेव जी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं. महाराज कुन्तिभोज ने कुन्ती को गोद लिया था. ये हस्तिनापुर के नरेश महाराज पांडु की पहली पत्नी थीं. कुंती का एक नाम पृथा भी था. कुंती को महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था. इस वरदान के कारण वे किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थीं. कुंती ने विवाह से पूर्व सूर्य देव का आवाहन किया था. जिससे उन्हें कर्ण प्राप्त हुआ था. बाद में पाण्डु और कुंती ने इस वरदान का प्रयोग किया और धर्मराज, वायु और इंद्र देवता का आवाहन किया. अर्जुन तीसरे पुत्र थे जो देवताओं के राजा इंद्र से हुए. युधिष्ठर यमराज और कुंती के पुत्र थे. भीम वायु और कुंती के पुत्र थे. अर्जुन इन्द्र और कुंती के पुत्र थे.
द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद ने याज नामक तपस्वी से यज्ञ कराया था. जिससे एक दिव्य कुमार उत्पन्न हुआ. उसके सिर पर मुकुट और शरीर पर कवच था. लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि यह कुमार द्रोणाचार्य को मारने के लिए ही उत्पन्न हुआ है. इसके बाद उस यज्ञवेदी से एक सुंदर कन्या उत्पन्न हुई. फिर आकाशवाणी हुई कि इस कन्या का जन्म क्षत्रियों के संहार के लिए हुआ है. इसके कारण कौरवों को बहुत भय होगा. द्रुपद ने बालक का नाम धृष्टद्युम्न रखा और कन्या का नाम द्रौपदी. द्रौपदी के विवाह के लिए द्रुपद ने स्वयंवर का आयोजन किया. अर्जुन ने स्वयंवर की शर्त पूरी कर द्रौपदी से विवाह कर लिया. जब पांडव द्रौपदी को लेकर अपनी माता कुंती के पास पहुंचे तो उन्होंने बिना देखे ही कह दिया कि पांचों भाई आपस में बांट लो. तब द्रौपदी ने पांचों भाइयों से विधिपूर्वक विवाह किया.
Mahabharat: 18 दिन तक चला महाभारत का युद्ध, जानें किस दिन क्या हुआ