प्राचीन कल से ही पर्यावरण को लेकर जागरूक रहा भा। आज पर्यावरणीय मुद्दों का प्रबन्धन करने में पीछे रह गया है। ईंधन और कृषि भूमि के विस्तार के लिए हो रही वनों की कटाई के कारण आज भारत में वन क्षेत्र सिकुद गया है। हालांकि भारत सरकार और राज्य सरकारें पर्यावरणीय गुणवत्ता को बेहतर करने के प्रयास कर रही हैं। तमाम संस्थाएं भी इस कार्य में लगी हैं। लेकिन आज जरूरत है की देश का हर नागरिक पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बने।
आजादी के बाद भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए तमाम उपाय किये हैं। जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए 1963 में गठित एक कमेटी ने जल प्रदूषण और निवारण हेतु कानून बनाने की सलाह दी थी। तत्पश्चात वर्ष 1969 में एक विधेयक तैयार किया गया। 30 नबम्बर, 1972 को संसद में प्रस्तुत विधेयक दोनों सदनों से पारित होकर 23 मार्च, 1974 को राष्ट्रपति से स्वीकृत हुआ, जो जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण ) अधिनियम, 1974 कहलाया।
इसी तरह जल प्रदूषण को रोकने में एक अन्य कानून जल (प्रदूषण और नियंत्रण ) अधिनियम, 1977 बना। इस कानून के अंतर्गत जल प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्र तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को व्यापक अधिकार मिलता है। जल प्रदूषित करने पर दंड का प्रावधान भी सुनिश्चित किया गया है। जल प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम 1974 तथा 1977, जल प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम हैं। यह सरकार को अधिकार प्रदान करता है कि जल श्रोतों को नुक्सान पहुंचाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करे।
इसी तरह बढ़ते औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण में निरंतर हो रहे वायु प्रदूषण और पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु वायु की गुणवत्ता और वायु प्रदूषण के नियंत्रण को ध्यान में रखने के लिए 29 मार्च, 1981 को एक अधिनियम परित हुआ और 16 मई, 1981 से लागू किया गया। इस अधिनियम में मुख्यत: मोटर-गाड़ियों और अन्य कारखानों से निकलने वाले धुएं और गंदगी का स्तर निर्धारित करने तथा उसे नियंत्रित करने का प्रावधान है। 1987 में इस अधिनियम में शोर प्रदूषण को भी शामिल किया गया।
इसी तरह लुप्त होती वन्यजीवों की प्रजातियों को बचाने के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं, जैसे सन 1952 में भारतीय वन्यजीवन बोर्ड का गठन किया। इसी बोर्ड के अंतर्गत वन्य-जीवन पार्क और अभयारणय बनाए गए और 1972 में भारतीय वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। वन्यजीवन संरक्षण अधिनियम, (1972) को अधिक व्यावहारिक व प्रभावी बनाने के लिए इसमें वर्ष 1986 तथा 1991 में संशोधन भी किए गये।
इसी तरह वनों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर पुन: पेड़-पौधे उगाने को समय देने के लिए भारत सरकार द्वारा 1980 में पारित अधिनियम वन संरक्षण अधिनियम का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस अधिनियम को अधिक प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने के लिए इसमें वर्ष 1988 में संशोधन किया गया। इसी तरह भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया, जिसके अंतर्गत मानव, प्राणियों, जीवों, पादपों को संकट से बचाना तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु सामान्य एवं व्यापक कानून का निर्माण करना साथ ही लागू कानूनों के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण सस्थानों का गठन कर तथा उनकी क्रियाविधि के मध्य समन्वय स्थापित करना सम्भव हुआ।
इन अधिनियमों के अलावा देश में पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए लगभग 200 से भी अधिक कानून हैं। यह बात दीगर है कि लगभग सभी कानूनों का खुलेआम उल्लंघन होता है। इसलिए भारत सर्वाधिक प्रदूषित देशों की सूची में आता है और पर्यावरण संरक्षण के लिए कोई कदम अभी तक प्रभावी सिद्ध नहीं हो पाए हैं। वास्तव में तो यह कोई कानूनी मुद्दा नही होना चाहिए। इसके लिए समाज को आपसी सहयोग के जरिये पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास करना चाहिए।