कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। इस खतरनाक वायरस से दुनियाभर में अब तक 6,485,563 लोग संक्रमित हो चुके हैं जबकि 382,412 लोगों की जान चली गई। भारत में यह आंकड़ा 207,191 पर जा पहुंचा है और यहां मरने वालों की संख्या 5,829 हो गई है। कोरोना वायरस का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं मिला है।
फिलहाल कोरोना वायरस से निपटने के लिए दुनियाभर के तमाम वैज्ञानिक दिन-रात दवा खोजने में जुटे हैं। कोरोना के इलाज के लिए अभी तक मलेरिया का दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को प्रभावी माना जा रहा था लेकिन इसके बारे में अभी पर्याप्त रिजल्ट नहीं मिले हैं।
इस बीच कई देशों ने अन्य बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली कई दवाओं पर प्रयोग कर इन्हें कोरोना के लिए भी प्रभावी बताया है। हम आपको इन दवाओं के बारे में बता रहे हैं। इनमें से एक दवा को भारत सरकार ने इमरजेंसी में मरीजों को दिए जाने की मंजरी दे दी है।
1) रेमेडीसिविर (Remdesivir)
रेमेडीसिविर एक एंटीवायरल दवा है जिसका इस्तेमाल वायरल संबंधी रोगों में किया जाता है। अमेरिका के कैलिफोर्निया की एक बायोटेक कंपनी का कहना है कि इसकी प्रायोगिक दवा रेमेडीसिविर को कोविड-19 से मामूली रूप से बीमार, अस्पताल में भर्ती मरीजों को पांच दिन तक देने पर लक्षणों में सुधार देखा गया है। गिलेड साइंसेज ने कहा कि इस दवा के पूर्ण नतीजे मेडिकल जर्नल में जल्द प्रकाशित किए जाएंगे।
भारत में मिली मंजूरी
भारत में भी सरकार ने इमरजेंसी में मरीजों को इसे दिए जाने की मंजरी दे दी है। यह पहली दवा है, जिसका कोरोना के मरीजों पर पॉजिटिव असर दिखा। इसे जापानीज हेल्थ रेगुलेटर्स की भी मंजूरी मिल गई है।
ठीक होने के दिनों को करती है कम
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की अगुवाई में एक बड़ा अध्ययन किया गया था जिसमें पाया गया कि यह दवा गंभीर रुप से बीमार अस्पताल में भर्ती मरीजों के ठीक होने की औसत अवधि को कम करती है। यह दवाई ठीक होने के दिनों को 15 से घटाकर 11 दिन करती है। यह दवा इंजेक्शन के जरिए नस में डाली जाती है।
रेमेडीसिविर दवा के साइड इफेक्ट्स
जिन मरीजों को पांच दिन दवा दी गई उनमें से किसी की मौत नहीं हुई, जबकि 10 दिन दवा देने वालों में से दो की और सिर्फ मानक देखभाल पाने वालों में चार की मौत हुई। इस दवा को लेने वालों में हालांकि जी मिचलाने और सिरदर्द की शिकायत थोड़ा ज्यादा थी।
यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा मेडिकल सेंटर में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ राधा राजासिंघम ने बताया कि अध्ययन की कुछ सीमाएं होती हैं लेकिन एक नियंत्रित समूह होता है जो यह सत्यापित करने में मदद करता है कि रेमेडीसिविर के कुछ फायदे हैं।
2) एवीफेविर (Avifavir)
एवीफेविर भी एक एंटीवायरल दवा है। कोविड-19 के इलाज के लिये इसे रूस से मंजूरी मिल गई है। यह इंफ्लुएंजा दवा पर आधारित है जो यहां उन्नत नैदानिक परीक्षण के चरण में है। रूस में एवीफेविर के निर्माता इसे संभवत: कोविड-19 के खिलाफ दुनिया की सबसे विश्वसनीय दवा के तौर पर देख रहे हैं।
मुंबई स्थित ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि फेवीपिराविर नैदानिक परीक्षण के तीसरे चरण में हैं जो भारत में औषधि परीक्षण का आखिरी चरण है। एवीफेविर दुनिया की पहली फेवीपिराविर आधारित दवा बन गई है जिसे कोविड-19 के इलाज के लिये स्वीकृति दी गई है।
फेवीपिराविर से तैयार होती है एवीफेविर
एवीफेविर को फेवीपिराविर से तैयार किया जाता है। सिलिगुड़ी के नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के अरूप कुमार बनर्जी ने कहा कि फेवीपिराविर चर्चा में थी और हाल में उसमें रुचि देखी गई है। उन्होंने कहा कि फेवीपिराविर इंफ्लुएंजा के लिये एवीगन नाम से उपलब्ध है और अक्सर इसे वायरल संक्रमण के दौरान दिया जाता है।
एवीफेविर के इस्तेमाल और फायदे
बनर्जी ने बताया कि इसे बेहद उच्च बुखार में तब दिया जाता है जब उसके साथ थ्रांबोसाइटोपीनिया सिंड्रोम (एसएफटीएस), एक तरह का संक्रामक रक्तस्रावी बुखार, हो जिसमें मृत्युदर ज्यादा रहती है और यह सभी तरह के इंफ्लुएंजा विषाणुओं पर प्रभावी है।
उन्होंने कहा, 'दवा महत्वपूर्ण है और एंटी वायरल भी। हमें दोनों को साथ-साथ विकसित करने की जरूरत है। आज कोई कोविड-19 के इलाज के लिये दवा लेकर आता है तो भले ही वह किसी देश या मूल का हो, यह अच्छी खबर है, बशर्ते बड़े पैमाने पर उसका प्रमाणीकरण हो चुका हो।'
एवीफेविर को आरडीआईएफ और केमरार समूह के संयुक्त उपक्रम के तहत बनाया जा रहा है। आरडीआईएफ के सीईओ किरिल दमित्रेव ने एक बयान में कहा, 'एवीफेविर कोरोना वायरस के खिलाफ रूस में पंजीकृत सिर्फ पहली एंटीवायरल औषधि ही नहीं है बल्कि यह संभवत: दुनिया में सबसे ज्यादा आशाजनक कोविड-19 दवा भी है।
3) कोरोनावैक (CoronaVac)
स्काई न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार चीन की एक कंपनी Sinovac बायोटेक का दावा है कि उसकी वैक्सीन कोरोना वायरस के इलाज में कारगर है और अभी ट्रॉयल में यह 99 फीसदी असरदार साबित हुई है। रिपोर्ट के अनुसार कंपनी के एक रिसर्चर ने यह दावा किया है। कंपनी अपनी वैक्सीन के ट्रॉयल में फेज 2 में पहुंच चुकी है।
वहीं कुछ दिन बाद इसका फेज 3 में ट्रॉयल किया जाएगा। पिछले दिनों कंपनी ने दावा किया था इस वैक्सीन का परीक्षण बंदरों में किया गया और उन्हें कोरोना वायरस से बचाने में सफलता मिली। कंपनी को इस वेक्सीन के लिए 1.5 करोड़ डॉलर की फंउिंग भी हुई है। कंपनी ने अभी 10 करोड़ डोज बनाने का लक्ष्य तय किया है।
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)