जानिए ऐसा क्या खाते हैं आदिवासी लोग व इम्यूनिट कैसे बनाते मजबूत

दुनियाभर में लाखों लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं. तमाम वैज्ञानिक, चिकित्सक सिर्फ यही कह रहे हैं कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत होना बेहद महत्वपूर्ण है तभी इस महामारी से बच पाएंगे.

लेकिन आपको जानकर भी ताज्जुब होगा कि जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि उनकी इम्यूनिटी पहले से ही मजबूत है, इसका कारण है उनका खानपान. आइए जानते हैं कि आदिवासी लोग ऐसा क्या खाते हैं, जिससे उनकी इम्यूनिट बहुत ज्यादा मजबूत रहती है-
आदिवासी पीते हैं मडिया पेज
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में मडियापेज पीने की परंपरा है, यह एक प्रकार का कोसरा अन्न होता है, जिसके सत्व में बहुत ज्यादा मात्रा में पोषक तत्व होते हैं, जो इम्यूनिटी को बढ़ाते हैं. आदिवासियों का यही मुख्य आहार होता है. जंगलों में रहने के कारण आदिवासी भौतिक सुखों से बहुत ज्यादा दूर हैं व वे पूरी तरह से प्रकृति से जुड़े हुए हैं. प्रकृति से जुड़े होने के कारण ही उन्हें किसी भी प्रकार की बीमारी घेर नहीं पाती है. यदि वे कोई बीमारी से ग्रसित होते भी हैं तो उनकी इम्यूनिटी मजबूत होने के कारण वे जल्दी अच्छा भी हो जाते हैं. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक आदिवासियों के खानपान के बारे में लोगों को भी जागरुक होना चाहिए. भले ही मानव सभ्यता विकास की ओर अग्रसर है, लेकिन हम जितना विकास की ओर बढ़ते जा रहे हैं, हमारे खानपान में पोषण वाली चीजें भी कम होती जा रही हैं.
शतावर भी देती है शरीर को मजबूती
www.myupchar.com से जड़े डाक्टर लक्ष्मीदत्ता शुक्ला के अनुसार, जंगल में कई तरह की जड़ी-बूटियां होती है, जो कई बीमारियों को जड़ से समाप्त कर सकती है. ऐसे ही शतावर नाम की एक जड़ी बूटी है, जिसका आदिवासी नियमित सेवन करते हैं. इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है. आदिवासी लोग शतावर के कंद को पकाकर उसके छिलके निकालकर खाते हैं क्योंकि पेट भरने के लिए उनके पास यही विकल्प होता है.
चापड़ा चटनी है चमत्कारिक औषधी
आदिवासियों में चींटियों की चटनी बनाकर भी खाई जाती हैं, इसे चापड़ा चटनी बोला जाता है व इसे चमत्कारिक औषधि भी माना जाता है. इसके अतिरिक्त सफेद मूसली भी इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद करती है. सफेद मूसली के फूल को आदिवासी सब्जी की तरह बनाकर खाते हैं, लेकिन शहरी समाज में इसका चलन नहीं है. इसी प्रकार काली मूसली भी इम्यूनिटी को बढ़ाती है आदिवासी लोग इसके कंद को पेट भरने के लिए खाते हैं. यह भी चमत्कारिक औषधी मानी जाती है.
आदिवासी खूब खाते हैं गिलोय व समरकंद
www.myupchar.com से जड़े डाक्टर लक्ष्मीदत्ता शुक्ला के अनुसार, गिलोय के पत्ते आयुर्वेद में औषधि के रूप में उपयोग में लाए जाते हैं. आदिवासियों के बच्चे गिलोय के कच्चे टुकड़े चलते फिरते यूं ही खा जाते हैं. इसके अतिरिक्त वे समरकंद भी खाते हैं. सिमर एक औषधीय पौधा है, जिससे कंद निकाल कर खाया जाता है. इसे बाल कन्द भी बोला जाता है. इसका स्वाद मीठा होता है व बीमारियों के लिए यह अच्छी औषधि के रूप में उपयोग में लाया जाता है.
तेंदू पत्ता फल और बकुल सोडा
आदिवासी जंगल में मिलने वाले तेंदूपत्ता व बकुल सोडा का भी भरपूर सेवन करते है. बकुल सोडा पेट साफ करने में उपयोग में लाया जाता है. इसके अतिरिक्त आदिवासी अपने खेत की मेड़ पर हल्दी जरूर लगाते हैं. हल्दी आयुर्वेद में भी एक रामवाण औषधि है, जो घावों को जल्द भरने में सहायक होती है. आदिवासी देशी हल्दी को उबालकर खाते हैं, हल्दी कैंसर से भी बचाती है.

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