बच्चों से नहीं छीने उनका अधिकार, खूब करें प्यार- अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस

लखनऊ, 01 जून - समाज में बच्चों के लिए भी अधिकार बना है। किसी को भी यह हक नहीं है कि बच्चों से उनका अधिकार छीनें। बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित करना सबसे बड़ा अपराध माना गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए 01 जून को 'अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस' मनाया जाता है।

गौरतलब है कि रूस में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस सन 1949 में मनाया गया था। इसका निर्णय मॉस्को में अंतर्राष्ट्रीय महिला लोकतांत्रिक संघ की एक विशेष बैठक में हुआ था। इसके बाद एक जून वर्ष 1950 को भारत समेत 51 देशों में 'अंतर्राष्ट्रीय बाल रक्षा दिवस' मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने के पीछे का उद्देश्य बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है।
40 प्रतिशत बच्चे करते हैं मजदूरी भारत में आज भी 14 साल की कम उम्र के 40 प्रतिशत बच्चें चाय के होटल, ढाबा, दुकान और मोटर मैकैनिक के अलावा अनौपचारिक क्षेत्र में न्यूनतम वेतन पर काम करते हैं। कुछ तो बेहद मजबूरी में काम करते हैं या कुछ बच्चों के माता-पिता हाथ में हुनर का हवाला देने की बात कहकर उन्हें किसी न किसी काम में लगा देते हैं। इससे उनकी शिक्षा पर गहरा असर पड़ता है। खेलने-कूदने और शिक्षा से लेकर उनके भरण−पोषण तक हर जगह बच्चों के अधिकारों को अनदेखा किया जाता है। बच्चों के अधिकार क्या हैं और कैसे हो इनकी सुरक्षा, इस पर गंभीरता से मंथन की जरूरत है।
छह माह से दो साल तक की सजा कानून के जानकारों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति अगर 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम करवाता है। साथ ही 14 से 18 वर्ष के बच्चें को किसी खतरनाक कारोबार या व्यवसाय में काम देता है तो उसे छह माह से दो साल तक जेल की सजा हो सकती है। इसके अलावा 20 हजार से 50 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। काम करवाने की समय-सीमा न तय करना और स्वास्थ्य व सुरक्षा सम्बन्धी अन्य उल्लंघनों के लिए भी इस कानून के तहत एक माह तक की जेल और दस हजार रुपये तक का जुर्माना है। अगर व्यक्ति ने पहली बार अपराध किया है तो वह सिर्फ जुर्माना दे सकता है।
पारिवारिक व्यवसाय में काम करना कानूनी बच्चे पारिवारिक व्यवसाय में सहयोग दे सकते हैं, यह सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि इससे उनकी पढ़ाई पर कोई असर न पड़े। इसलिए स्कूल से आने के बाद या छुट्टियों में ही काम करना चाहिए। सामान्यतः बच्चों के माता-पिता को अपने बच्चों को इस कानून के विरुद्ध काम करने की अनुमति देने के लिए सजा नहीं दी जा सकती है। यदि किसी 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को व्यावसायिक उद्देश्य से काम करवाया जाता है या फिर किसी 14-18 वर्ष की आयु के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रिया में काम करवाया जाता है तो यह प्रतिरक्षा लागू नहीं होती और उन्हें सजा दी जा सकती है
डांट, मार से नहीं प्यार से सुधरेंगे बच्चे जिला अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ बालचन्द्र पाल का कहना है कि बच्चों को डांटने और मारने से वह आपकी बात कभी नहीं मानेंगे वह ढीठ हो जायेंगे। लेकिन उन्हीं बच्चों को उनके माता-पिता अगर बच्चें बनकर उन्हें समझायेंगे तो वह जल्द ही समझ पायेंगे। बच्चों को एक सख्त माता-पिता नहीं बल्कि एक दोस्त और प्यार की आवश्यकता होती हैं। इसलिए डांट, मार से नहीं प्यार से बच्चे सुधरेंगे।

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