विज्ञान के जगत में चंद्रग्रहण एक खगोलीय घटना मानी जाती है, जबकि हिन्दू धर्मशास्त्रों में इसकी अलग ही वजह बताई गयी है | पुराणों में राहु केतु को इसकी वजह बताया गया है | आज हम आपको इससे जुडी पैराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे है |
कथा में बताया गया है कि देवताओ और असुरो ने साथ मिलकर समुद्र मंथन किया और मंथन से निकली वस्तुओ को आपस में बाटने का निर्णय हुआ | मंथन से कूल 14 रत्न निकले, जिनमे से अमृत भी एक था | अमृत के निकलने पर देवो और असुरो में इसके लिए विवाद आरम्भ हो गया की कौन इसका सेवन करेगा |
ऐसे में भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया | विष्णु जी के मोहिनी अवतार पर देव और असुर दोनों ही मोहित हो गए | फिर मोहिनी अवतार में विष्णु जी ने देवो और असुरो को अलग अलग बैठाया और स्वयं अमृत बांटने लगे | परन्तु विष्णु जी ने छल से केवल देवो को अमृत दिया, लेकिन इस बात को एक असुर जान गया और वह रूप बदलकर देवो की पंक्ति में बैठ गया |
देवो की पंक्ति में बैठ उसने भी अमृत का सेवन किया ही था कि सूर्य और चन्द्रमा ने उसे पहचान और विष्णु जी को कह दिया | तब विष्णु जी ने उसी समय सुदर्शन चक्र से उसके शरीर के दो हिस्से कर दिए | लेकिन अमृत के सेवन से वह मृत्यु को प्राप्त नहीं हुआ |
अमृत के सेवन से उसके शरीर के दोनों हिस्से जीवित रहे, सिर वाला हिस्सा राहु कहलाया और धड़ वाला हिस्सा केतु कहलाया | बताया जाता है कि इसी वजह से राहु-केतु सूर्य और चन्द्रमा को अपना शत्रु मानते है | पूर्णिमा और अमावस्या के दिन वे वे चंद्र और सूर्य को शापित करते है |