वर्षभर में चौबीस एकादशी आती है, जिसमे निर्जला एकादशी को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से ही साल में आने वाली समस्त एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है। हर व्यक्ति को इस व्रत को अवश्य रखना चाहिए। इस व्रत को करने से जिंदगी के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। घर के अंदर सुख शांति समृद्ध का निवास होने लगता है और भाग्य उदय हो जाता है। मान्यता अनुसार केवल एकादशी का ही व्रत ऐसा है जो व्रत रखने वाले को तत्काल लाभ पहुंचाता है।
व्रत के नियम
निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है। इस व्रत में सूर्योदय से द्वादशी के सूर्योदय तक जल भी न पीने का विधान होने के कारण इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। एकादशी के दिन व्रती को अन्न-जल के साथ ही पान, तंबाकू, जर्दा, सुपारी, शराब, आदि नशीली चीजों का सवेन भूल कर भी नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रश या दातून नहीं करना चाहिए। उंगली से ही दातों की सफाई करनी चाहिए।
निर्जला एकादशी के दिन किसी भी पेड़ से फल, पत्ते या डाली नहीं तोड़नी चाहिए। रात को सोना भी नहीं चाहिए। इस रात को जागते हुए श्री हरी भगवान की तस्वीर के आगे बैठकर भजन-कीर्तन करना चाहिए। अगर सारी रात ना जाग सके तो कम से कम आधी रात जागने की कोशिश करनी चाहिए।
व्रती को क्रोध नहीं करना चाहिए। क्रोध करने से मन अशांत हो जाता है जिससे मन में नकारात्मका विचार आता है और मन स्थिर नहीं हो पाता है। क्रोध करने से मन भटक जाता है इसलिए एकादशी के दिन अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें। इस दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना का विधान है। इस व्रत से दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान के बाद सर्वप्रथम भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करें। इसके पश्चात भगवान का ध्यान करते हुए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। व्रत के दिन भक्ति भाव से कथा सुनना और भगवान का कीर्तन करना चाहिए। इस दिन व्रती को चाहिए कि वह जल से कलश भरे व सफ़ेद वस्त्र को उस पर ढककर रखें। निर्जला एकादशी व्रत धारण कर यथाशक्ति अन्न, जल, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखी तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन जल कलश का दान करने वालों श्रद्धालुओं को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है।
इस एकादशी का व्रत करने से भक्त अन्य एकादशियों पर अन्न खाने के दोष से मुक्त जाता है तथा सम्पूर्ण एकादशियों के पुण्य का लाभ भी मिलता है। इस तरह दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। धार्मिक महत्त्व की दृष्टि से इस व्रत का फल लंबी उम्र, स्वास्थ्य देने के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है। जो श्रद्धापूर्वक इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अविनाशी पद प्राप्त करता है।