भारत और चीन के लोगों का कहना है कि इस कीड़े से बनी जड़ी-बूटी से नपुंसकता दूर हो जाती है. इसे चाय या फिर सूप बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
ये जड़ी-बूटी भारत, नेपाल और चीन के कुछ इलाकों में पाई जाती है.जो कि बड़ी मुश्किल से मिलने वाला एक फफूंद यार्चागुम्बा है।
लेकिन विज्ञान इस दावे का सही नहीं मानता है. ये भी कहा जाता है. इसी के साथ ये जड़ी बूटी गुर्दे और सांस की बीमारी के लिए भी दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.स हालांकि नेपाल में वर्ष 2001 में इस पर प्रतिबंध लगा हुआ था लेकिन अब इसे खत्म कर दिया गया है।
इसकी उम्र छह महीने तक होती है. ये कीड़े मरने के बाद पहाड़ियों में घास और पौधों के बीच में बिखर जाते हैं. इसकी मांग चीन में सबसे ज्यादा है।
हिमालय क्षेत्र में एक विशेष तरह की जड़ी-बूटी पाई जाती है. अंतराराष्ट्रीय मार्केट में इसकी बिक्री 60 लाख रुपए प्रति किलो की दर पर होती है।