शिकागो विश्वविद्यालय में एक महामारीविद सारा कोबे का बोलना है कि इस वायरस से कैसे हम खुद को सुरक्षित रख जी सकते हैं. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के पूर्व निदेशक टॉम फ्रीडेन ने बोला कि हमें एक व्यापक लड़ाई की रणनीति की आवश्यकता है. इसके लिए सावधानी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.
संभव है कि कुछ समय बाद इसकी संक्रामकता दर कम हो सकती है. तक अधिकतर लोगों के शरीर में इस वायरस के प्रति शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो जाएगी. वैक्सीन रिसर्च सेंटर की उप निदेशक बार्नी ग्राहम ने बोला कि वैक्सीन बनने के बाद टीके की आपूर्ति और टीकाकरण में कई वर्ष लग जाएंगे.
100 वैक्सीनों पर चल रहा है कार्य नई दिल्ली। कोरोना वायरस को लेकर देश में करीब 30 समूह कोविड-19 का टीका विकसित करने में जुटे हैं. इसमें मेडिकल सेवा से जुड़ी कंपनियां, स्टार्टअप व अपने स्तर पर चिकित्सा वैज्ञानिक शामिल हैं. हिंदुस्तान सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के। विजय राघवन ने बोला कि सामान्यत: वैक्सीन विकसित करने में 10 से 15 वर्ष का समय व 200 मिलियन डॉलर (15.13 अरब रुपए) के करीब लागत आती है. लेकिन प्रयास है कि इसे एक वर्ष में बनाने के लिए एक ही समय में 100 से अधिक वैक्सीन पर कार्य कर रहे हैं. टीके की गुणवत्ता व सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि इसका ठीक ढंग से परीक्षण किया जाए.
पंचगव्य की दवा क्लीनिकल ट्रायल अहमदाबाद। कोरोना से बचाने के लिए गुजरात पंचगव्य के आधार पर बनी दवा का क्लीनिकल परीक्षण करेगा. राष्ट्रीय कामधेनू आयोग के अध्यक्ष डाक्टर वल्लभ कथीरिया ने बोला कि इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल जल्द शुरुआत होगा. एलोपैथिक दवाओं के प्रोटोकॉल का उपयोग कर इसका ट्रायल देश के दस अस्पतालों में किया जाएगा. इसकी शुरूआत गुजरात के शहर राजकोट से शुुरु होगी जो सीएम विजय रूपाणी का गृह नगर है. डाक्टर कथीरिया ने बोला कि पंचगव्य से बनी दवा में गौ माता का दूध, मक्खन, घी, गोबर और मूत्र शामिल है. यह दवा गोली जैसी होगी जिसे दूध या पानी के साथ लिया जा सकेगा. इससे इलाज की ख़्वाहिश रखने वाले मरीज को दवा दी जाएगी व इसका परिणाम के परीक्षण वैज्ञानिक आधार व क्लीनिकल ट्रायल के आधुनिक दिशानिर्देशों के साथ होगा.
नोवासैक्स हिंदुस्तान में खरीद रही वैक्सीन प्लांट अमरीका के मुख्य महामारी रोग विशेषज्ञ एंथनी फाउसी ने बोला है कि नवंबर के आरंभ में कोरोना की वैक्सीन के विकसित होने की उम्मीद है. अमरीका की जैव प्रौद्योगिकी कंपनी नोवावैक्स ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से एक विनिर्माण संयंत्र खरीद रही है. इससे पहले नोवावैक्स ने ऑस्ट्रेलिया में टीके का मानव परीक्षण प्रारम्भ कर दिया है. यूएस बायोटेक्नोलॉजी फर्म की जुलाई में मेलबर्न और ब्रिस्बेन में क्लीनिकल ट्रायल के पहले चरण के परिणाम आने की उम्मीद है.