प्रातः काल उठना, कार्यालय की आपाधापी व फिर शाम को घर वापसी, सालों के इस रूटीन को लॉकडाउन ने एकदम बिगाड़ दिया है व अब घर में बैठे-बैठे हम न सिर्फ तमाम तरह की बातें सोच रहें हैं, बल्कि देर रात तक अपने मोबाइल, लैपटॉप व टीवी पर कुछ ना कुछ देख रहे हैं। इन सभी ने मिलकर हमारी नींद बेकार कर दी है।
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देश में लागू लॉकडाउन का नौवां हफ्ते है व अपने घरों में बंद लोग तनाव व बेचैनी जैसी परेशानियों के शिकार हो रहे हैं जिसके शुरुआती लक्षण के तौर पर निद्रा चक्र से जुड़ी दिक्कतें सामने आ रही हैं।
कुछ ही हालत ऐसी है कि तमाम चिंताओं के कारण उनकी नींद उड़ गई है तो, कुछ ऐसे भी जो हद से ज्यादा सो रहे हैं। कुछ लोग दोनों ही समस्याओं से एक साथ जूझ रहे हैं।
मेडिकल विशेषज्ञों का बोलना है कि निद्रा चक्र में गड़बड़ी होने से जुड़े मामलों पर सलाह के लिए आने वाली फोन कॉल 25 मार्च से लागू लॉकडाउन के दौरान बढ़ी हैं।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य व स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहंस) के न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट गुलशन कुमार का बोलना है, ‘‘लोग तमाम अनिश्चितताओं व असुरक्षा की भावना के साथ जी रहे हैं। स्वास्थ्य, रोजगार व वित्तीय सुरक्षा की चिंता करने के साथ-साथ घर के कार्य व कार्यालय की जिम्मेदारियां भी उठा रहे हैं व चूंकि यह सब कुछ घर पर रहते हुए कर रहे हैं जिससे नींद की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
उन्होंने बताया कि बेंगलुरु स्थित निमहांस को लॉकडाउन प्रारम्भ होने के बाद से निद्रा संबंधी दिक्कतों जैसे अनिद्रा या इन्सोम्निया (नींद कम आना या नहीं आने की दिक्कत) को लेकर बहुत ज्यादा कॉल आ रही हैं।
वेकफिट डॉट को द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के दौरान यह बात सामने आई है कि इसमें शामिल हुए 1,500 लोग में से 44 फीसदी लॉकडाउन के दौरान विभिन्न कारणों से छह घंटे से कम की नींद ले रहे हैं।
बेंगलुरु की इस कंपनी का बोलना है कि 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने से पहले महज 26 फीसदी लोगों को निद्रा संबंधी परेशानी थी। कंपनी का बोलना है कि इस दौरान कई लोगों ने अनिद्रा, नींद की कमी की शिकायत की है जबकि कई लोग आवश्यकता से ज्यादा सोने का उपचार करा रहे हैं।
वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय में फिलॉसफी की प्रोफेसर गगनजोत कौर जैसे लोग भी हैं जो कई-कई रात सो नहीं पाते हैं। लेकिन कई बार उनकी नींद 10 घंटे से पहले नहीं खुलती है, लेकिन इतना सोने के बावजूद थकान नहीं जाती।
33 वर्षीय प्रोफेसर का बोलना है कि उन्हें याद नहीं आ रहा है कि पिछले दो महीने में कब वह चैन की नींद सोई थीं।
वह कहती हैं, ‘‘ऐसा नहीं है कि मैं जान-बूझ कर जागती रहती हूं। मैं सोती हूं लेकिन रात तीन बजे अकारण ही नींद खुल जाती है। ऐसा लगता है जैसे मेरे दिमाग को एहसास ही नहीं है कि शरीर को कितनी नींद चाहिए। ’’
कौर कहती हैं कि कुछ वर्ष पहले उन्हें ‘जनरल ऐंक्जाइटी डिसऑर्डर’ होने का पता चला था। वह उपचार करा रही थीं, लेकिन पिछले दो महीने में उनकी परेशानी बढ़ी है।
वहीं अगर प्रियंका दास की बात करें तो एकदम अच्छा रात 11 बजे सोकर प्रातः काल पांच बजे उठने वाली महिला को अब शाम सात बजते ही आंखें खुली रखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।
उनका बोलना है, ‘‘शाम को मैं सो जाती, करीब दो तीन घंटे के लिए, सात से नौ बजे तक व बाद में पूरी रात जागती रहती हूं। ’’
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रकृति पोद्दार का बोलना है कि लोगों का सालों से सोच-समझ कर बनाया गया रोज का रूटीन इस लॉकडाउन में गड़बड़ हो गया है।
वह कहती हैं, ‘‘ऐसे में जब सभी घर में हैं, रुटीन बदल गया है। लोगों को थोड़ा अवसादग्रस्त होना, तनाव होगा व नींद में परेशानी आना संभव है। ’’
इस विषय में दोनों ही डॉक्टरों की सलाह है कि आप अपना रूटीन बनाए रखें। देर रात तक न जगें। अपनी नींद का समय न बदलें। व्यायाम करें, योग, आसन व प्राणायाम करें, संगीत सुनें व अपने पसंद का कार्य करें ताकि आपके दिमाग को शांति मिले।