कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के उपचार में पहली बार हिंदुस्तान ने दुनिया स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सुझावों को ठुकरा दिया है। कोरोना वायरस फैलने में WHO की लापरवाही पर दुनियाभर में किरकिरी होने के बावजूद हिंदुस्तान इस मुद्दे में चुप रहा है।
लेकिन कोरोना वायरस के उपचार में WHO के नए सुझावों को इस बार देश के वैज्ञानिकों ने सिरे से नकार दिया है।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पर WHO की सलाह को मानने से किया इंकार कोरोना वायरस के उपचार में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) की दवा के प्रयोग को लेकर WHO ने शंका जताई है। साथ ही बोला है कि ये दवा कोरोना वायरस के उपचार लिए सुरक्षित नहीं है। लेकिन इस बार हिंदुस्तान ने अपना कड़ा रुख अपना लिया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने बोला कि हिंदुस्तान में हुए अध्ययनों में मलेरिया-रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) का कोई प्रमुख दुष्प्रभाव सामने नहीं आया है व इसका इस्तेमाल कोविड-19 के एहतियाती उपचार में कठोर चिकित्सा पर्यवेक्षण में जारी रखा जा सकता है।
अभी व बढ़ सकता है विरोध मुद्दे से जुड़े केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक ऑफिसर का बोलना है कि पिछले पांच महीनों से WHO के दिशा-निर्देश कई मामलों में गलत साबित हुए हैं। इसी वजह से अब हिंदुस्तान ने किसी भी अन्य संगठन की सलाह या आदेश पर कार्य करने की बजाए खुद उपचार का रास्ता ढूंढने का निर्णय किया है। हिंदुस्तान सरकार अब कोरोना वायरस से निबटने के लिए अपनी जाँच व शोध पर ही भरोसा करना चाहती है। वैसे मंत्रालय ने सिर्फ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मुद्दे में ही WHO की सिफारिश सिरे से खारिज किया है। लेकिन आने वाले समय में WHO के साथ कई मामलों में मतभेद सामने आ सकते हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के महानिदेशक बलराम भार्गव ने कहा, 'कोविड-19 एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में जानकारी धीरे धीरे सामने आ रही है व हमें नहीं पता कि कौन सी दवा कार्य कर रही है व कौन सी दवा कार्य नहीं कर रही है। कई दवाएं कोविड-19 के लिए प्रयोग के लिए निर्धारित की जा रही हैं, चाहे वह इससे बचाव के लिए हों या उपचार के लिए हों। '
उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने हिंदुस्तान में तैयार होने वाले मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को कोरोना वायरस के विरूद्ध सबसे प्रभावी माना है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी बोला था कि कई अमेरिकी इस दवा के सेवन से पूरी तरह अच्छा हो गए हैं। ऐसे में WHO के नए दिशा-निर्देश पर सवाल उठना जायज है। (