कोरोना संकट के बाद छोटी-मोटी बीमारियों में इजाफा

आजकल लोग बीमार होने पर चिकित्सक के पास जाने के बजाए गूगल की शरण में जा रहे हैं. यहां वे अपने लक्षणों के आधार पर बीमारी के बारे में सर्च कर रहे हैं

व उसका निदान जानने की प्रयास कर रहे हैं. लेकिन एक शोध में खुलासा किया गया है कि तीन में से दो लोगों को गूगल पर गलत जानकारी मिलती है.
यह ट्रेंड उनकी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित होने कि सम्भावना है. यह शोध ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में स्थित एडिथ कोवान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया. इसके लिए उन्होंने 36 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय वेब-आधारित लक्षण की जाँच करने वाली वेबसाइट्स का विश्लेषण किया. उन्होंने पाया कि लक्षण के आधार पर रोग की पहचान वाले मुद्दे केवल 36 प्रतिशत ही ठीक पाए गए. यही नहीं सिर्फ 52 प्रतिशत मामलों में ही बीमारी की ठीक जानकारी को सर्च रिजल्ट में शीर्ष तीन में दर्शाया गया.
गूगल द्वारा चिकित्सकों के पास जाने की चेतावनी भी आधे से ज्यादा मामलों में गलत पाई गई. केवल 49 प्रतिशत मामलों में ही चिकित्सक के पास जाने की सलाह दी गई.49 % लोगों को ही चिकित्सक के पास जाने की सलाह दी गई 36 % लक्षण के आधार पर रोग की पहचान वाले मुद्दे ठीक मिलेकई बीमारी पता नहीं होती- शोध बताता है कि ऐसी वेबसाइटों के पास लोकल बीमारियों का डाटा नहीं होता. ऑस्ट्रेलिया में वे रॉस रिवर फीवर व हेंड्रा वायरस को नहीं पहचान पाते. डाटा के आधार पर शोधकर्ताओं ने बोला कि इमरजेंसी के दौरान चिकित्सकों से मिलने की सलाह सिर्फ 60 प्रतिशत मामलों में ही ठीक पाई गई.यह एक सिंड्रोम है- अधिकतर लोग साइबरक्रॉ्ड्रिरयाक सिंड्रोम के शिकार होते हैं. इसके तहत सिरदर्द या बीमारी का पहला लक्षण दिखते ही गूगल पर सर्च करना प्रारम्भ कर देते हैं. लेकिन, सच यह है कि इन वेबसाइट या एप को बहुत सावधानी से देखना चाहिए, क्योंकि आपकी मेडिकल हिस्ट्री इन्हें नहीं पता होती.कोरोना के बाद इजाफा- कोरोना संकट के बाद छोटी-मोटी बीमारियों जैसे पेट दर्द या हल्के जुकाम से पीड़ित लोग भी डॉक्टरों के पास जाने से बच रहे हैं. वे गूगल पर ही लक्षणों की पहचान करवाने वाले लोगों से बीमारी का पता लगाने की प्रयास कर रहे हैं. इनकी संख्या में आकस्मित इजाफा हुआ है.डॉक्टर का कोई विकल्प नहीं-
आजकल लोग बीमार होने पर चिकित्सक के पास जाने के बजाए गूगल की शरण में जा रहे हैं. यहां वे अपने लक्षणों के आधार पर बीमारी के बारे में सर्च कर रहे हैं व उसका निदान जानने की प्रयास कर रहे हैं. लेकिन एक शोध में खुलासा किया गया है कि तीन में से दो लोगों को गूगल पर गलत जानकारी मिलती है.
गूगल द्वारा चिकित्सकों के पास जाने की चेतावनी भी आधे से ज्यादा मामलों में गलत पाई गई. केवल 49 प्रतिशत मामलों में ही चिकित्सक के पास जाने की सलाह दी गई.49 % लोगों को ही चिकित्सक के पास जाने की सलाह दी गई 36 % लक्षण के आधार पर रोग की पहचान वाले मुद्दे ठीक मिलेकई बीमारी पता नहीं होती- शोध बताता है कि ऐसी वेबसाइटों के पास लोकल बीमारियों का डाटा नहीं होता. ऑस्ट्रेलिया में वे रॉस रिवर फीवर व हेंड्रा वायरस को नहीं पहचान पाते. डाटा के आधार पर शोधकर्ताओं ने बोला कि इमरजेंसी के दौरान चिकित्सकों से मिलने की सलाह सिर्फ 60 प्रतिशत मामलों में ही ठीक पाई गई.यह एक सिंड्रोम है- अधिकतर लोग साइबरक्रॉ्ड्रिरयाक सिंड्रोम के शिकार होते हैं. इसके तहत सिरदर्द या बीमारी का पहला लक्षण दिखते ही गूगल पर सर्च करना प्रारम्भ कर देते हैं. लेकिन, सच यह है कि इन वेबसाइट या एप को बहुत सावधानी से देखना चाहिए, क्योंकि आपकी मेडिकल हिस्ट्री इन्हें नहीं पता होती.कोरोना के बाद इजाफा- कोरोना संकट के बाद छोटी-मोटी बीमारियों जैसे पेट दर्द या हल्के जुकाम से पीड़ित लोग भी डॉक्टरों के पास जाने से बच रहे हैं. वे गूगल पर ही लक्षणों की पहचान करवाने वाले लोगों से बीमारी का पता लगाने की प्रयास कर रहे हैं. इनकी संख्या में आकस्मित इजाफा हुआ है.डॉक्टर का कोई विकल्प नहीं- शोधकर्ता मिशेला हिल ने कहा, ये प्लेटफॉर्म चिकित्सक का विकल्प नहीं हो सकते. ये सिर्फ सुरक्षा की झूठी भावना प्रदान कर सकते हैं.इन्हें सबसे ज्यादा खोजा गया- -लगातार खांसी व बुखार -डायबिटीज के लक्षण -उच्च रक्तचाप के लक्षण -पेट दर्द
शोधकर्ता मिशेला हिल ने कहा, ये प्लेटफॉर्म चिकित्सक का विकल्प नहीं हो सकते. ये सिर्फ सुरक्षा की झूठी भावना प्रदान कर सकते हैं.इन्हें सबसे ज्यादा खोजा गया- -लगातार खांसी व बुखार -डायबिटीज के लक्षण -उच्च रक्तचाप के लक्षण -पेट दर्द

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