टैटू जिसे हिंदुस्तान में गोदना के रूप में भी जाना जाता है आज एक उभरता हुआ फैशन व आर्ट है. लेकिन क्या हम कभी कल्पना कर सकते हैं कि यह टैटू केवल हमारी अंदरूनी शख्सियत को ही नहीं बल्कि हमारी स्वास्थ्य को भी दर्शाने का कार्य भी कर सकते हैं.
आप में से ज्यादातर इस पर विश्वास नहीं करेंगे लेकिन तकनीकी प्रगति ने यह संभव बना दिया है. अब टैटू को भी 'डायग्नोस्टिक टूल' या उपचार के उपकरण की तरह उपयोग किया जा सकता है. हाल ही जर्मनी में वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक एेसी अंगूठी विकसित की है जो हमारे स्वास्थ्य पर निगरानी रखती है.
दरअसल, म्यूनिख तकनीकी विश्वविद्यालय की शोधकर्ता अली के। येटिसेन व उनके सहयोगियों ने ऐसे त्वचीय सेंसर (डर्मल सेंसर) बनाए हैं जिन्हें सरलता से टैटू स्याही के जगह पर स्कीन में इंजेक्ट किया जा सकता है. यानि इन डर्मल सेंस को स्याही की तरह स्कीन पर उकेरा जा सकता है. ये देखने में सामान्य टैटू जैसे ही सुन्दर लगते हैं, साथ ही इनके जरिए टैटू गुदवाए आदमी की स्वास्थ्य संबंधी तमाम जानकारियों का भी पता लगाया जा सकता है.
बदलाव होने पर रंग बदल जाता है- शरीर में स्वास्थ्य संबंधी हल्का सा भी बदलाव होने पर टैटू के जरिए स्कीन में लगाए गए सेंसर बायोमार्कर स्वास्थ्य में बदलाव के जैविक संकेतों के अनुरूप अपना रंग बदल लेते हैं. शरीर में किसी भी तरह के केमिकल बदलाव होने पर भी इनके रंगों में परिवर्तन आ जाता है. इनमें ब्लड पीएच के साथ ग्लूकोज व एल्ब्यूमिन का स्तर भी शामिल है. उदाहरण के लिए, जिन लोगों को मधुमेह है वे इन टैटू के रंग बदलने के आधार पर केवल शुगर बढ़ने पर ही डॉक्टर के पास जा सकेंगे इससे बार-बार रक्त की जाँच नहीं करानी पड़ेगी. वैसे जानवरों की स्कीन पर इसका परीक्षण कर के देखा है व परिणाम आशाजनक हैं. अगर इंसानों की स्कीन पर इसका परीक्षण पास रहता है तो मरीज के स्वास्थ्य की निगरानी व इमरजेंसी परिस्थितियों में उसकी जान बचाने में यह तकनीक महत्त्वपूर्ण किरदार निभा सकती है.