जेके लोन अस्पताल में 'लिसा' तकनीक के इस्तेमाल से नवजात के नाजुक फेफड़ों को किया जायेगा विकसित

जयपुर . राजधानी केजेकेलोन अस्पताल में प्री-मेच्योर नवजात बच्चों के नाजुक फेफड़ों को विकसित करने और श्वांस में तकलीफ होने पर फेफड़ों को क्षति होने से बचने के लिए लेस इनवेजिव सर्फेक्टेंट एडमिनिस्ट्रेशन (लिसा) तकनीक इस्तेमाल किया जा सकेगा.

अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि ज्यादातर प्रीमेच्योर बच्चे श्वांस की बीमारी रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं. जिस कारण जन्म के समय इन बच्चों को श्वास लेने में तकलीफ होती है. इसलिए इन्हे वेंटीलेटर पर लेकर श्वास नली में एंडोट्रेकियल ट्यूब से सर्फेक्टेंट डाला जाता है. सुधार के बाद वेंटीलेटर से निकालकर सी-पैप मशीन का सपोर्ट दिया जाता है. इस प्रक्रिया से जहां नवजात को एक तरफ श्वास लेने में फायदा मिलता है, वहीं दूसरी तरफ इनके फेफड़े नाजुक होने की वजह से ट्यूब एवं वेंटिलेटर के साइड इफेक्ट की सम्भावना रहती है.
इन साइड इफेक्ट को कम से कम करने के लिए अस्पताल में अब लिसा तकनीक का प्रयोग किया जाएगा. नवजात गहन चिकित्सा इकाई के सह प्रभारी डॉ. विष्णु पंसारी ने कहा कि इस तकनीक में नवजात को पहले सी-पैप मशीन पर रखते हैं फिर उसके वेंटीलेटर सपोर्ट और ट्यूब के बजाय सर्फेक्टेंट दवा को बारीक़ कैथेटर से डालकर फेफड़ों को विकसित करके,बाद में कैथिटर को निकाल लिया जाता है. जिससे उसे वेंटिलेटर पर लेने की सम्भावना कम हो जाती है.
अस्पताल में कार्यरत रेजिडेंट डॉक्टर विजय झाझड़िया ने इस तकनीक में सहयोग दिया है. डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि इस तकनीक का मुख्य उद्देश्य नवजात के नाजुक फेफड़ों को क्षति होने से बचाना है. नवजात शिशु इकाई टीम ने 1500 ग्राम से कम वजन वाले बच्चों पर इस तकनीक का उपयोग किया है. जिसके प्रारंभिक परिणाम काफी अच्छे मिले है.

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