“कोरोना काल में अब तक मेरे पोस्टमॉर्टम हाउस में 36-37 संदिग्ध कोरोना संक्रमित शव पहुंचे हैं। इनमें पुरुष, महिलाएं, बच्चों सहित हर वर्ग और उम्र के कोरोना सस्पेक्टेड शामिल रहे हैं। सभी शव का कोरोना टेस्ट कराया गया। मोच्यूरीर् में कोरोनो संदिग्धों के इतनी बड़ी संख्या में पहुंचे शवों में से, महज एक शव (किसी कोरोना संदिग्ध की मौत के बाद) की ही रिपोर्ट 'पॉजिटिव' आई है।” “ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि क्या, इंसान की मौत के साथ या फिर, कोरोना पीड़ित इंसान की मौत के कुछ घंटों के बाद ही क्या 'कोरोना-वायरस' खुद ही मर जाता है? अगर ऐसा है तो यह रिसर्च का विषय है।”
कोरोना संबंधी यह तमाम सनसनीखेज सवाल, राष्ट्रीय राजधानी के एक वरिष्ठ फॉरेसिंक साइंस एक्सपर्ट (विधि विज्ञान विशेषज्ञ) डॉ. बी.एन. मिश्रा की मुंहजुबानी हैं। डॉ. मिश्रा राजधानी में पहले-दूसरे पायदान के समझे जाने वाले दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के विधि विज्ञान केंद्र (फॉरेंसिक साइंस सेंटर यानि पोस्टमॉर्टम हाउस) के प्रभारी हैं। यह तमाम सनसनीखेज खुलासे और सवाल डॉ. बी.एन. मिश्रा ने आईएएनएस से विशेष बातचीत के दौरान सामने रखे।
बकौल डॉ. बी.एन. मिश्रा, “लॉकडाउन शुरू होने से लेकर अब तक हमारे पोस्टमॉर्टम हाउस में हर आयु और जेंडर वर्ग के करीब 37-38 शव पोस्टमॉर्टम के लिए आ चुके हैं। यह सभी लोग जीवित रहते हुए कोरोना संक्रमण के शिकार हुए थे। इसलिए इन सभी के शव का पोस्टमॉर्टम कराया गया। इनमें सबसे ज्यादा संख्या पुरुषों की थी। उसके बाद महिलाएं-लड़कियां और बच्चे शामिल थे। जहां तक मुझे याद आ रहा है, बच्चों के शवों की संख्या 6 या 7 रही होगी। इन सभी को मेरे पोस्टमॉर्टम हाउस में शव-विच्छेदन किया गया। बच्चों की उम्र 6 महीने से लेकर 13 साल तक रही होगी।”
राष्ट्रीय राजधानी के मशहूर विधि विज्ञान विशेषज्ञ और दीन दयाल उपाध्याय हॉस्पिटल पोस्टमॉर्टम हाउस प्रभारी मिश्रा के मुताबिक, “सभी 36-37 शवों के सैंपल पोस्टमॉर्टम हाउस ने बजरिये विशेषज्ञों के सील करके जांच के लिए प्रयोगशाल भिजवाये। इनमें से दो महीने की लंबी अवधि में सिर्फ एक शख्स की मौत के बाद की रिपोर्ट 'कोरोना पॉजिटिव' आयी। बाकी सभी शव की रिपोर्ट कोरोना निगेटिव निकली, जबकि बाकी मरने वाले लोगों को अस्पताल में संदिग्ध कोरोना संक्रमित के रुप में ही इलाज के लिए दाखिल किया गया था। हैरत की बात है कि जब यह सब मरीज कोरोना संक्रमित थे तो फिर, मौत के बाद प्रयोगशाला की जांच रिपोर्ट आखिर इन सभी शव की 'कोरोना-निगेटिव' क्यों और कैसे आई?”
आईएएनएस ने इस सवाल का जबाब भी जब डॉ. बी.एन. मिश्रा से ही मांगा तो वे बोले, “मैं फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट हूं। कोरोना जांच विशेषज्ञ नहीं। इसका जबाब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयलॉजिकल के विशेषज्ञ ज्यादा सटीक दे सकते हैं। जहां तक मेरी सोच है तो मुझे लगता है कि, किसी इंसान की मौत के वक्त उसके शव का तापमान 34 सेंटीग्रेट तक रहता है। मोच्यूरीर् के फ्रीजर में हम शव को 2-3 सेंटीग्रेड तापमान में शव को सुरक्षित रखते हैं। आशंका है कि शव के तापमान के गिरते ही कोरोना-वायरस दम तोड़ दे रहा हो। यह सिर्फ और सिर्फ मेरी सोच है। ठोस कुछ नहीं। ठोस जबाब के लिए बॉयलॉजीकल अनुसंधानकतार् ही कुछ बता सकते हैं।”
फॉरेसिक साइंस विभागाध्यक्ष डॉ. मिश्रा ने आगे कहा, “हालांकि इंसान का मृत शरीर (शव) बेजान होने के बाद बाहरी वातावरण के तापमान के हिसाब से भी अपना तापमान ग्रहण (बदलता) करता है। मसलन भले ही निष्प्राण होने के वक्त शव का तापमान 34 डिग्री सेंटीग्रेट रहता हो। इंसान के बदन के निष्प्राण होने के अगर कुछ घंटे बाद तक शव को 45 डिग्री या फिर 2० डिग्री बाहरी तापमान में रख दें, तो शव भी बाहरी तापमान को ग्रहण कर लेगा। यह भी एक अलग मगर महत्वपूर्ण तथ्य है। इस सबके बाद भी, क्या इंसान की मौत के साथ ही कोरोना वायरस खुद भी अपने आप मर जाता है? इस सवाल का जबाब कम से कम फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट होने के चलते मेरे पास तो नहीं है। इसके लिए बाकायदा बॉयलॉजीकल रिसर्च के परिणाम सामने लाना परमावश्यक है।”
अमूमन दिल्ली के दो सबसे बड़े और पुराने समझे जाने वाले पोस्टमॉर्टम हाउस में (सब्जी मंडी और दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल) सालाना 2 से 25०० हजार शवों का पोस्टमॉर्टम होता रहा है। जबसे कोरोना ने दस्तक दी है? तब से आपके (डीडीयू अस्पताल) पोस्टमॉर्टम हाउस में प्रतिदिन शवों की संख्या पर भी प्रभाव पड़ा है? पूछे जाने पर डॉ. मिश्रा बोले, “रेल से कटकर मरने वाले, सड़क हादसों में मरने वाले, फांसी लगाकर आत्महत्या करने वालों की संख्या नगण्य हो गयी है। कभी-कभार कोई सुसाइड केस (आत्महत्या करने वाले का शव) आ जाता है। वरना रोजाना जो शव आ रहे हैं उनमें अधिकांश शव कोरोना-संक्रमितों के ही हैं। यह अलग बात है कि 36-37 कोरोना संक्रमित होकर मरने वालों में, मरने के बाद सिर्फ एक ही शव में कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट आयी।”
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