मानव मस्तिष्क में इंसान की हर बीमारी व कमी का राज छुपा हुआ है. लेकिन मस्तिष्क की गहराइयां अंतरिक्ष की तरह अथाह है व वैज्ञानिक जितना ढूंढते हैं यह उतना ही व गहरी होती जाती है. दिमाग से जुड़े इंसान के मानसिक विकारों को समझने व उसके जैविक जवाब जानने के लिए अब वैज्ञानिक उसके भीतर झांकने का कोशिश कर रहे हैं.
बीमारी की बजाय लक्ष्णों का इलाज- न्यूरोसाइकियाट्रिक विकारों के लिए वर्तमान इलाज बीमारी के अंतर्निहित कारण की बजाय उसके लक्षणों का उपचार करते हैं. उपचार पास भी हो जाए तो कई बार यह रोगी के अवचेतन पर गंभीर दुष्प्रभाव भी डालता है. जबकि कुछ मामलों में ये इलाज किसी कार्य नहीं आते. लाइबर इंस्टीट्यूट की टीम दरअसल इन बीमारियों के होने के कारण का पता लगाने के लिए मस्तिष्क कीर गहराइयों में उतरने का कोशिश कर रही है. ताकि वे मूल कारणों का उपचार करने के लिए नवीन इलाज एवं औषधियों का विकास करें. साथ ही उनकी प्रयास इन मनोविकारों को इसकी आरंभ में ही रोकने का है. संस्थान के निदेशक व मुख्य कार्यकारी ऑफिसर डैनियल वेनबर्गर कहते हैं कि हम में से अधिकतर के पास मानव जीनोम में कुछ न कुछ अंतर होता है जो मनोरोग संबंधी समस्याओं से जुड़ी होती हैं.
100 से ज्यादा लक्ष्णों को खोजा- संस्थान की टीम अब तक सिज़ोफ्रेनिया से जुड़े 100 से अधिक आनुवंशिक विभिन्नताओं की पहचान कर चुकी है. इसके अतिरिक्त टीम ने बाइपोलर विकार से जुड़े 30 वेरिएंट के बारे में भी खोज की है. लेकिन जो अभी तक शोधकर्ता नहीं जान वह यह है कि इन आनुवंशिक वेरिएंट्स में से एक या उनका समूह मस्तिष्क की संरचना व कार्यविधी को कैसे बदल देता है. साथ ही वैज्ञानिक यह भी पता लगाना चाहते हैं कि जो लोग इन वेरिएंट के प्रति प्रतिरोधी होते हैं उनमें कोई मानसिक बीमारी विकसित क्यों नहीं होती. शोधकर्ताओं को लगता है कि आनुवांशिक लक्ष्णों, वर्तमान जीवनशैली व पर्यावरणीय कारकों का समूह विभिन्न न्यूरोपैसाइट्रिक विकारों वाले लोगों में मस्तिष्क के रसायन विज्ञान को बदल देता है जिससे न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन पैदा होता है. यह वह जरूरी रसायन है जो मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं को संदेश भेजने का कार्य करते हैं.
ऐसे करते हैं मस्तिष्क पर शोध- शोधकर्ता पहले दिमाग की शारीरिक जाँच करते हैं. फिर उन्हें उन टुकड़ों में काटते हैं जिनका अध्ययन सरलता से किया जा सकता है. आनुवांशिक उत्परिवर्तन की पहचान करने व विभिन्न कोशिकाओं में जीन कैसे खुद को जाहीर करते हैं यह पता लगाने के लिए डीएनए, आरएनए व प्रोटीन निकालकर उनका विश्लेषण किया जाता है. लेजऱ कैप्चर माइक्रोडिसेक्शन तकनीक का उपयोग करके वे मस्तिष्क की कोई भी विशिष्ट कोशिका को अलग कर सकते हैं. वैज्ञानिक यह पता लगाना चाहते हैं कि क्या न्यूरोसाइकिएट्रिक विकारों वाले मस्तिष्क के न्यूरॉन्स स्वस्थ दिमाग वाले लोगों की तुलना में अलग तरह से काम करते हैं या नहीं?
दो वर्षों में कई गंभीर विकारों के लिए दवा- अपने शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि आने वाले दो वर्षों में वे एक्सीडेंट के दौरान मस्तिष्क में लगने वाली चोट, एक दुर्लभ प्रकार के ऑटिज्म की बीमारी व एक तंत्रिका तंत्र के विकास से जुड़े विकार के लिए प्रयोगात्मक औषधियों पर परीक्षण करने में सक्षम होंगे. संस्थन को परीक्षण के लिए अधिकतर दिमाग ऐसे लोगों से प्राप्त होते हैं जिनकी असमय मृत्यु हो जाती है. लाइबर इंस्टीट्यूट का दावा है कि उनके पास संसार के किसी भी संस्थान की तुलना में दिमाग का सबसे बड़ा संग्रह है. इसमें अफ्रीकी-अमरीकी लोगों के लगभग 600 दिमागों का संग्रह है.
बेथेस्डा के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ में मानव मस्तिष्क संग्रह कोर की निदेशक बारबरा लिप्सका का बोलना है कि विविध पृष्ठभूमि के लोगों के दिमाग का अध्ययन जरूरी है. क्योंकि अब तक एकत्र की गई अधिकतर आनुवंशिक जानकारी यूरोपीय पृष्ठभूमि के लोगों की है. हम जानते हैं कि विभिन्न राष्ट्रों के लोगों में आनुवंशिक उत्परिवर्तन की आवृत्तियों में थोड़ा बहुत अंतर हैं. शोध बताते हैं कि यूरोपीय मूल के लोगों की तुलना में अफ्रीकी-अमरीकिया में न्यूरोपैसाइट्रिक रोग होने की संभावना 20 फीसदी अधिक होती हैं.