पीरियड्स शुरू होने के बाद कभी-कभी महिलाओं के हार्मोन्स में बैंलेस बिगड़ जाता है, जिसकी वजह से उन्हें पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की समस्या होती है। इससे महिलाओं की ओवरीज की फंक्शनिंग प्रभावित होती है।
पीसीओएस के लक्षण
आमतौर पर पीसीओएस की समस्या पहले पीरियड्स के बाद होती है। कुछ महिलाओं में पीसीओएस के लक्षण बाद में भी नजर आते हैं। कई बार वजन बढ़ने की वजह से भी यह समस्या हो जाती है। पीसीओएस के संकतों के बारे में आपको जरूर जानना चाहिए-
ऐसे होती है पीसीओएस की पहचान
अगर आपको मेंस्ट्रअल पीरियड्स, इन्फर्टिलिटी या एंड्रोजन हार्मोन की अधिकता के संकेत मिलते हैं, तो आपको इस बारे में डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। पीसीओएस diagnose करने के लिए कोई एक टेस्ट नहीं है। डॉक्टर इसकी जांच करते हुए मरीज की मेडिकल हिस्ट्री की जांच करते हैं, जिसमें उसकी पीरियड्स और वजन में आने वाले बदलावों को भी देखा जाता है। डॉक्टर इन चीजों पर भी ध्यान देते हैं-
Physical examination:इसमें डॉक्टर ब्लड प्रेशर, बॉडी मास इंडेक्स, कमर का आकार, चेहरे, सीने या पीठ पर अतिरिक्त हेयर ग्रोथ, मुंहासे या स्किन डिस्कलरेशन जैसे लक्षणों पर ध्यान देते हैं।
Pelvic exam:इसमें रीप्रोक्डिव ऑर्गन्स की जांच की जाती है, ताकि किसी हिस्से की ग्रोथ या किसी और एब्नॉर्मेलिटी का पता लगाया जा सके।
Pelvic ultrasound: इसमें ओवरी में सिस्ट और endometrium की जांच की जाती है।
Blood tests: इसके जरिए एंड्रोजन हार्मोन स्तर की जांच की जाती है। इसके अलावा डॉक्टर दूसरे हार्मोन्स जैसे कि थायरॉइड आदि की भी जांच करते हैं। डॉक्टर cholesterol levels और डायबिटीज की जांच भी कर सकते हैं।
इलाज के तरीके
पीसीओएस का ट्रीटमेंट आमतौर पर General Practitioner या फिर स्पेशलिस्ट देते हैं। इस बीमारी का पूरी तरह से इलाज संभव नहीं हो पाता, लेकिन इस कंडिशन को मैनेज जरूर किया जा सकता है। जरूरी दवाओं के साथ लाइफस्टाइल में बदलाव लाने की जरूरत होती है। पीसीओएस ट्रीटमेंट में महिलाओं को होने वाली हेल्थ प्रॉब्लम्स जैसे कि फर्टिलिटी, hirsutism, एक्ने, ओबिसिटी जैसी समस्याओं का निदान किया जाता है। इसमें ये चीजें भी शामिल हो सकती हैं-
हार्मोनल बर्थ कंट्रोल या कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स या फिर हार्मोन इंट्रायूट्रीन डिवाइस: जो महिलाएं गर्भवती नहीं होना चाहतीं, वे हार्मोनल बर्थ कंट्रोल के तरीके अपनाकर अपनी मेंस्ट्रुअल साइकिल को नियमित बना सकती हैं और एंडोमेट्रिकल कैंसर का जोखिम कम कर सकती हैं।
बर्थ कंट्रोल पिल्स का कॉम्बिनेशन: इसमें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन होते हैं, जो एंड्रोजन के प्रोडक्शन में कमी लाते हैं और एस्ट्रोजन के स्तर को रेगुलेट करते हैं। हार्मोन्स को रेगुलेट करने से एंडोमेट्रियल कैंसर का जोखिम कम हो जाता है। इससे अनियमित ब्लीडिंग, अत्यधिक हेयर ग्रोथ और मुंहासों की समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
दवाओं की जगह स्किन पैच या वैजाइनल रिंग का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
एंटी एंड्रोजन दवाएं: इन दवाओं से एंड्रोजन के असर को कम करने में मदद मिलती है। साथ ही इससे हेयर फॉल, चेहरे या शरीर के किसी और हिस्से में हेयर ग्रोथ और मुंहासों की समस्या पर भी काबू पाया जा सकता है।
कुछ लोगों को टाइप 2 डायबिटीज के लिए डॉक्टर की तरफ से मेटफॉर्मिन लेने की सलाह ली जाती है, यह पीसीओएस में भी मदद कर सकती है।
अगर फर्टिलिटी मेडिकेशन्स असरदार ना हों तो आसान से सर्जिकल मेथड को अपनाए जाने की सलाह दी जा सकती है, जिसे laparoscopic ovarian drilling कहा जाता है। इसमें हीट या लेजर के जरिए ओवरी में टिशु को नष्ट किया जाता है, जिसमें एंड्रोजन जैसे कि टेस्टोस्टेरॉन प्रोड्यूस होते हैं।
पीसीओएस एक सामान्य हार्मोनल स्थिति है, जिससे महिलाएं प्रभावित होती हैं। अगर इसके लक्षण पहचान लिए जाएं तो लाइफस्टाइल में बदलाव, दवाओं और सही इलाज के जरिए इसे प्रभावी तरीके से मैनेज किया जा सकता है।
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