कोरोना वायरस का संक्रमण दुनिया के कई देशों में हर दिन बढ़ता जा रहा है। इसकी दवा और वैक्सीन को लेकर रिसर्च चल रही है, तो वहीं दूसरी ओर इसकी रोकथाम के लिए लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग, होम क्वारंटीन, फेस मास्क का इस्तेमाल और साफ-सफाई का ध्यान रखने जैसे उपाय किए जा रहे हैं। विभिन्न देशों की सरकारें इसकी रोकथाम के लिए भरसक प्रयास कर रही हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, सरकारों द्वारा अपनाई गई इन्हीं रोग नियंत्रण रणनीतियों से कोरोना वायरस जैसे संक्रामक रोगों का विकास क्रम बदल सकता है। इस अध्ययन में किसी वायरस के लंबे समय तक बने रहने की स्थिति में लोगों में उसके गोपनीय प्रसार के अच्छे और बुरे पहलुओं का अध्ययन किया गया है।
अमेरिका के प्रिंसटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मुताबिक, दुनियाभर में सार्स-सीओवी-2 यानी नया कोरोना वायरस इतनी तेजी से इसलिए फैला क्योंकि इस वायरस में उन लोगों के माध्यम से भी अपना प्रसार करने की क्षमता थी, जिनमें संक्रमण के लक्षण नहीं देखे गए। मतलब यह कि असिम्प्टोमैटिक यानी बिना लक्षण वाले मरीजों के जरिए भी कोरोना वायरस तेजी से फैला। अमेरिकी शोधकर्ताओं का यह अध्ययन पीएनएएस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस शोध से यह पता चल सकता है कि जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ कैसे क्वारंटीन यानी पृथक रहने, जांच करने और संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने जैसे रोकथाम संबंधी कदमों की योजना बना सकते हैं। ऐसी रणनीतियां महामारी फैलाने वाले विषाणुओं के विकास क्रम को भी बदल सकती है।
प्रिंसटन विश्वविद्यालय के इस अध्ययन के सह-लेखक ब्रायन ग्रेनफेल के मुताबिक, वायरस के बिना लक्षण वाले स्तर से विभिन्न कारणों के चलते इसे फायदा मिल सकता है। कोविड-19 महामारी में मरीजों में लक्षण न दिखने वाले स्तर की महत्ता अत्यधिक प्रासंगिक हो गई है क्योंकि यह अत्यंत खतरनाक भी है। यानी एसिम्प्टोमैटिक मरीज इस महामारी से निपटने में बड़ी चुनौती हैं।
कोविड-19 वैश्विक महामारी का उदाहरण देते हुए शोधकर्ताओं ने कहा कि जिन संक्रमित लोगों में लक्षण नहीं दिखाई देते, वे सामान्य दिनचर्या अपनाते हैं और कई संवेदनशील लोगों के संपर्क में आते हैं। वहीं, जिस व्यक्ति को बुखार और खांसी जैसे लक्षण हैं वह अपने आपको घर में अलग रखता है। उन्होंने कहा कि प्रथम चरण में भले ही संक्रमण के लक्षण नजर न आएं लेकिन दूसरे चरण में लक्षण साफ उभर आते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि रोकथाम की इन रणनीतियों के नकारात्मक पहलू भी हैं। जबतक व्यक्ति को पता न चले कि वह संक्रमित है या नहीं, तबतक वह सेल्फ आइसोलेशन में भी कैसे जाए, यह चुनौती है।