Bois Locker Room में रेप की प्लानिंग एक लड़की के दिमाग की उपज थी!!!

आज एक ख़बर लगभग न्यूज़ पोर्टल पर दिख रही है, 'बड़ा ख़ुलासा - बॉयज़ लॉकर रूम (Bois Locker Room) में रेप (Rape) की बातें करने वाली एक लड़की निकली'. कई लोग इस पर हैरानी जता रहे हैं, जिनमें स्त्री-पुरुष दोनों हैं. कई ऐसे पुरुष भी हैं जिन्होंने दो-एक दिन पहले ही किसी महिला के इनबॉक्स में घुसकर ताड़ने की कोशिश की होगी. आज उन्हें यह ख़बर मसाले की तरह मिली और झट अपनी वॉल पर चिपकाकर पूछ रहे हैं 'अब कहां गईं फेमिनिस्ट'. लेकिन मैं हैरान नहीं इस ख़बर से. जानते हैं समस्या क्या है? हम दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी बातों को 'सॉलिड इग्नोर' मारते हैं और किसी दिन पलंग के कोने से जब छिंगली में चोट लगती है तो सोचते हैं आज तो इस पलंग को हटा ही देंगे यहां से. अगले दिन फिर वही दिनचर्या शुरू हो जाती है. पलंग वहीं रहता है. इस मामले में किसी लड़की की निर्लिप्तता से मैं हैरान नहीं हूं. क्योंकि मैं तब भी हैरान नहीं होती जब एक सास अपनी बहू को ज़िंदा जला देती है. जब एक 'पोती' की दादी बनने पर एक स्त्री उस हाल ही जनी बच्ची को कचरे के डब्बे में मरने फेंक देती है, या उसे गर्भ में ही मार डालती है. एक बेटे को जन्म देने पर मुझसे 'चलो बढ़िया हुआ पहला बेटा हो गया, अब टेंशन नहीं' कहने वाली कई स्त्रियां ही थीं, जिनमें कुछ पढ़ी-लिखी भी थीं.

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मुझे हैरानी नहीं होती जब समाज की औरतें किसी औरत को बांझ कहती हैं. जब समाज की औरतें किसी पुरुष से हंसकर बोल लेने से उस औरत को कुल्टा, डायन, छिनाल, वैश्या कहती हैं. जब देह व्यापार में नरक भोग चुकी औरतें ही मासूम लड़कियों को अपना शिकार बनाती हैं. जब घर की औरतों के सामने ही पुरुष अपनी पत्नी को घसीटते हुए कमरे में ले जाता है, कहते हुए 'आज तेरी सारी बोलती बंद करूं' और उसके बाद होता है उस औरत का मैरिटियल रेप.
मुझे तब भी हैरानी नहीं होती जब पढ़ी लिखी महिलाएँ रेप के लिए लड़कियों के कपड़ों को ज़िम्मेदार ठहराती हैं और तब भी नहीं जब ताउम्र किसी स्त्री को उसके रूप-रंग के लिए कोसा जाता है. तब भी नहीं जब सुंदरता के पैमाने गढ़ने वाली और उनके लिए बने प्रोडक्ट्स का प्रचार करने वाली भी स्त्रियां ही होती हैं और तब भी नहीं जब ख़ुद को 'लिट्रेट, फेमिनिस्ट' कहने वाली स्त्रियां दूसरी स्त्रियों के अन्य-अन्य पुरुषों से नाम जोड़कर उन्हें चटखारों के साथ चखना समझकर खाती हैं. और तब भी नहीं जब अपनी सुरक्षा के लिए बने कानून का प्रयोग स्त्रियां, झूठे आरोप लगाकर पुरुषों को फंसाने में, उन्हें सज़ा दिलाने में करती हैं.
मैं जब आजतक इतनी बातों पर हैरान नहीं हुई तो अब इस बात पर कैसे हैरान होऊं? यह सब तो दिनचर्या का हिस्सा बन गया है ना? आज बॉयज़ लॉकर रूम में लड़की का नाम देखकर आप आहत हुए हैं, चेते हैं तो यह सुंदर बात है. लेकिन इसके आगे क्या? कल भूल जाएंगे... फिर वही ढाक के तीन पात. हम फिर उसी ढर्रे पर आ जाएंगे, कितना बदलेंगे ख़ुद को पता नहीं.
आपको क्या लगता है यह ग़लत रवैया अचानक से एक दिन हमारे व्यवहार में आ जाता है? जैसे कोई पुरुष एक दिन में बलात्कारी नहीं बनता, वर्षों की कोई सोच, परवरिश का हिस्सा उसे बलात्कारी बनाती है वैसे ही कोई स्त्री एक दिन में अपराधी नहीं बनती. वर्षों तक पितृसत्ता का हिस्सा बनकर रहते हुए वह भी वही बन चुकी होती है जिससे असल में उसे लड़ना है.
बॉटनी में एक टर्म है, dichogamy जिसे Sequential hermaphroditism (सीक्वेंशियल हेर्मैप्रोडिटिज़्म) भी कहते हैं. रीफ़ मछलियों की कई प्रजातियां इसमें शामिल हैं. sequential hermaphrodites जिन्हें protogynous (प्रोटोगिनस) भी कहा जाता है, (ग्रीक भाषा में जिसका अर्थ है पहले मादा).
यह hermaphroditism का एक टाइप है जो कई fish, gastropods और plants में पाया जाता है. मैंने पहली बार इसके बारे में 'ब्लू प्लैनेट' सीरीज़ में देखा था. एक ख़ास किस्म की मछली जो जन्म तो लेती है 'मादा' रूप में लेकिन जीवन का कुछ हिस्सा जीने के बाद वह किसी अंधेरी सी गुफ़ा में छुप जाती है और जब बाहर निकलती है तो 'नर' के रूप में. फिर वही नर कई मादा मछलियों को खाता है.
यही हम स्त्रियों के साथ होता है. परवरिश में घुसी पितृसत्ता वही अंधेरी गुफ़ा है जिससे हम उसी के पोषक बनकर निकलते हैं. बचपन से पितृसत्ता की जो खाद हममें डाली जाती है उससे एक स्वतंत्र विचारों वाली, स्त्री को देह ना समझने वाली, उन्हीं पर अत्याचार ना करने वाली औरत कहां से निकलेगी? आज समय बदल रहा है. हम पढ़ने-लिखने लगे हैं तो हममें से कई इससे बच जाती हैं. जो नहीं बच पातीं वे उसी प्रजाति की मछली हैं जिनका ऊपर ज़िक्र किया.
समंदर में मछलियां तो अनेक हैं लेकिन कुछ ही होती हैं जो मादा से नर में बदलती हैं. सभी नहीं. ठीक उसी तरह हर स्त्री पितृसत्ता की पोषक नहीं होती. इसलिए सुनो प्यारे, इस एक ख़बर से ध्यान हटे तो देखना, आज की तारीख़ में कितने बलात्कार हुए. दो दिन पहले की ही ख़बर थी एक तीन साल की बच्ची का रेप हुआ था.
पिछले महीने की ख़बर थी एक दृष्टिबाधित बुजुर्ग महिला का रेप हुआ था. किसी पुरुष ने अपनी औरत को पीट-पीटकर मार डाला. किसी ने अपनी बेटी को मार डाला. ये तो वे ख़बरें हैं जो हाईलाइट हो गईं, जो गुमनाम रह जाती हैं उनकी गिनती नहीं हैं. इस एक ख़बर से पितृसत्ता को जीने वाले पुरुषों के गुनाह धोने की कोशिश मत कीजिए.
पितृसत्ता को पोषने के क्रम में पहले पुरुष ही खड़ा है, फिर स्त्री. और इनका अनुपात निकालेंगे तो पुरुषों की संख्या के आगे स्त्रियां आटे में नमक जितनी हैं. इसलिए हमें कोसना छोड़िए और अपने आसपास के पितृसत्ता पोषकों को सुधारने की पहल कीजिए.
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