कहते हैं भगवान हर जगह नहीं पहुंच सकते इसलिए उन्होंने मां को बनाया। मां की ममता दुनिया में किसी भी चीज से नहीं की जा सकती। वो एक मां का दिल ही होता है, जो ना सिर्फ अपने बच्चे बल्कि हर किसी के दर्द को देखकर पसीज जाता है।
इस बात का उदाहरण है राजस्थान की रहने वाली बिश्नोई समाज की महिलाएं, जो ना सिर्फ अपने बच्चों को बल्कि हिरण के बच्चों को भी अपना दूध पिलाती हैं। जी हां, राजस्थान के बिश्नोई समाज की महिलाएं हिरण के बच्चों को बिल्कुल मां की तरह पालती है और उन्हे अपना दूध भी पिलाती है। हिरण के बच्चे भी लोगों के साथ रहते हुए इंसानों की भाषा को समझने लग जाते हैं।
इस समाज की महिला पीढ़ियां लगभग 500 सालों से हिरण के बच्चों को अपना दूध पिलाती आ रही हैं। इस समाज की महिलाएं खुद को हिरण के इन बच्चों की मां कहती हैं। यही नहीं, महिलाओं के साथ इस समाज के पुरुष अनाथ हो चुके हिरण के बच्चों को अपने घरों में परिवार की तरह से पालते हैं।
विष्णु भगवान से मिला यह नाम
बता दें कि पर्यावरण की पूजा करने वाले बिश्नोई समाज को ये नाम भगवान विष्णु से मिला। यह लोग ज्यादातर जंगल और थार के रेगिस्तान के पास रहते हैं। यह लोग कई नियमों का पालन कड़ाई से किया करते है।
पेड़ों के लिए 363 लोगों ने दे दी थी जान
साल 1736 में खेजड़ली गांव व आसपास का इलाके में काफी पेड़ थे। जब लोग यहां पेड़ काटने पहुंचे तो गांव के लोग इसका विरोध किया और पेड़ों से चिपक गए। जब कई कोशिशों के बाद भीग्रामीण पेड़ से अलग नहीं हुए तो संघर्ष शुरू हो गया, जिसमें 363 लोग मारे गए।