कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है. ढाई लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुके इस वायरस से बचने का अब सबसे प्रभावी तरीका वैक्सीन ही होगा। कई अलग-अलग तरह की वैक्सीन के नाम भी सुनने में आए हैं। ये सब क्या हैं?
इस साल की शुरुआत से ही दवा कंपनियां और शोध संस्थान कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं। जर्मन एसोशिएसन ऑफ रिसर्च बेस्ड फार्मास्युटिकल कंपनीज के मुताबिक दुनियाभर में कम से कम ऐसे 115 प्रॉजेक्ट चल रहे हैं जिनमें वैक्सीन बनाने की कोशिश जारी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इनकी संख्या कम से कम 102 है। फिलहाल तीन तरह की वैक्सीन बनाने पर काम चल रहा है। इनमें लाइव वैक्सीन, इनएक्टिवेटेड वैक्सीन और डीएनए अथवा आरएनए वैक्सीन (जीन बेस्ड वैक्सीन) बनाने की कोशिश चल रही हैं। लेकिन इन सबमें अंतर क्या है?
इसे जानने से पहले कुछ जरूरी बातें जो इस पूरे आर्टिकल में ध्यान में रखनी होंगीी।
कोई भी वायरस जिंदा नहीं होता है. वो परजीवी होता है यानी दूसरे के ऊपर जिंदा रहने वाला। ऐसे में कोई वायरस जब इंसानी शरीर में प्रवेश कर जाता है तब जिंदा हो जाता है और अपनी संख्या तेजी से बढ़ाता है। ये नए वायरस इंसानी कोशिकाओं को खत्म करने लगते हैं जिससे शरीर को नुकसान पहुंचता है।
किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक तंत्र होता है। जब भी कोई बाह्य वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो ये तंत्र सक्रिय होकर उस वायरस का मुकाबला करने वाले एंटी बॉडी शरीर में पैदा करता है। ये एंटी बॉडी उस वायरस से मुकाबला कर उसके असर को खत्म कर देते हैं।
सारे वायरस बुरे नहीं होते हैंं। कुछ अच्छे भी होते हैं। अब जानते हैं आगे कि जिस तरह के वैक्सीन बनाने की इस समय कोशिश चल रही है, उनमें आखिर अंतर क्या है?
लाइव वैक्सीन की शुरुआत एक वायरस से होती है लेकिन ये वायरस हानिकारक नहीं होते हैं। इनसे बीमारियां नहीं होती हैं लेकिन शरीर की कोशिकाओं के साथ अपनी संख्या को बढ़ाते हैं। इससे शरीर का रोग प्रतिरोधक तंत्र सक्रिय हो जाता है।
इस तरह की वैक्सीन में बीमारी वाले वायरस से मिलते जुलते जेनिटिक कोड और उस तरह के सतह वाले प्रोटीन वाले वायरस होते हैं जो शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
जब किसी व्यक्ति को इस तरह की वैक्सीन दी जाती है तो इन 'अच्छे' वायरसों के चलते बुरे वायरसों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है।
ऐसे में जब बुरा वायरस शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर के प्रतिरोधक तंत्र के चलते वह कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। ऐसी वैक्सीन को वेक्टर वैक्सीन भी कहा जाता है। इस तरह की वैक्सीन स्मॉल पॉक्स में काम आती है. इबोला की सबसे पहले बनी वैक्सीन भी वेक्टर वैक्सीन
।
इस तरह की वैक्सीन में कई सारे वायरल प्रोटीन और इनएक्टिवेटेड वायरस होते हैं। बीमार करने वाले वायरसों को पैथोजन या रोगजनक कहा जाता है।
इनएक्टिवेटेड वैक्सीन में मृत रोगजनक होते हैं। ये मृत रोगजनक शरीर में जाकर अपनी संख्या नहीं बढ़ा सकते लेकिन शरीर इनको बाहरी आक्रमण ही मानता है और इसके विरुद्ध शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने लगते हैं।
इनएक्टिवेटेड वायरस से बीमारी का कोई खतरा नहीं होता। ऐसे में शरीर में विकसित हुए एंटीबॉडी में असल वायरस आने पर भी बीमारी नहीं फैलतीी।
ये एक बहुत ही भरोसेमंद तरीका है। बड़े पैमाने पर फैली कई बीमारियों को काबू करने के लिए इस तरीके को अपनाया गया है. इन्फ्लुएंजा, पोलियो, काली खांसी, हेपेटाइटिस बी और टिटनेस से बचने के लिए इस तरीके का उपयोग होता है।
साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी