कोरोनोवायरस वायरस से तभी जीता जा सकता है जब हम सभी एक साथ कार्य करें व मिलकर साझे कोशिश को बढ़ावा दें. इसी विचारधारा से प्रेरित होकर स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक आभासी वर्चुअल सुपर कंप्यूटर बनाने के लिए
संसार भर से कम्प्यूटर वॉलंटीयर्स को जोड़ रहे हैं. ताकि वे सभी मिलकर कोविड-19 के लिए एक प्रभवी वैक्सीन की खोज को गति दे सकें. इसके लिए शोधकर्ताओं ने एक वितरित कंप्यूटिंग प्रोजेक्ट 'फोल्डिंगएट होम' (एफएएच) भी बनाया है जो पूरी संसार में कंप्यूटरों की अप्रयुक्त प्रोसेसिंग पॉवर का उपयोग कर खोज के दायरे को बढ़ा सकते हैं. आपका कंप्यूटर भी कोविड-19 के निवारण की खोज में मदद कर सकता है, तब भी जब आप इसका उपयोग नहीं कर रहे हों. एफएएच प्रोजेक्ट संसार भर में लैपटॉप, डेस्कटॉप कंप्यूटर व गेमिंग कंसोल की अप्रयुक्त प्रोसेसिंग पॉवर को जोड़कर कार्य करता है. एक-दूसरे से जुडऩे के बाद वे एक वर्चुअल सुपर कंप्यूटर बनाते हैं.
स्पाइक प्रोटीन पर कर रहे शोध इस परियोजना का उददेश्य स्पाइक प्रोटीन पर शोध करना है जो वायरस को शरीर की उन कोशिकाओं को निर्बल करने में सक्षम बनाता है जो हमारे शरीर में वायरस से लडऩे में सक्षम प्रोटीन को स्पाइक में बदलकर निष्क्रिय कर देता है व हम संक्रमण के शिकार हो जाते हैं. एफएएच शोधकर्ताओं का बोलना है कि कोरोनावायरस से लडऩे में यह बहुत ज्यादा प्रभावी उपचार होने कि सम्भावना है. एक ही लक्ष्य के लिए कार्य करने वाले कई कंप्यूटरों के साथ हम जल्द से जल्द एक चिकित्सीय तरीका विकसित करने में मदद कर सकते हैं.
20 वर्षों से कर रहे काम डिस्ट्रिब्यूटेड कम्प्यूटिंंग प्रोजेक्ट्स तकनीक बीते २० वर्ष से भिन्न-भिन्न शोधकार्यों में प्रयुक्त होती रही है. इससे पहले 1999 में परग्रहियों की खोज में इसे सेटी एट होम के रूप में भी उपयोग किया गया था. सेटी प्रोजेक्ट में 1000 वॉलंटीयर्स की टीम ने 1000 वर्ष पुराने डेटा को खंगालकर परग्रहियों के अस्तित्त्व का पता लगाने में मदद की थी. वैज्ञानिकों का मानना है कि एक बार फिर साझा कोशिश से वे कोविड १९ के उपचार में भी पास हो सकते हैं. दरअसल कम्प्यूटेशनल बायोफिजिसिस्ट ग्रेगोरी बोमैन का बोलना हैकि स्पाइक प्रोटीन कि इसे माइक्रोस्कोप से भी देख पाना कठिन है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि स्पाइक प्रोटीन में शोध वायरस से निपटने का एक प्रभावी उपाय बता सकता है. एक अकेला वायरस एक होस्ट सेल पर तब तक आक्रमण नहीं कर सकता जब तक कि उसने स्पाइक प्रोटीन का उपयोग कर उसे सक्षम न बनाया हो. अगर हम इसे रोकने में पास हो जाएं तो वायरस को एक स्वस्थ सेल में प्रवेश करने व उसे संक्रमित करने से रोक सकते हैं. स्पाइक प्रोटीन की संरचना व व्यवहार को समझना कोरोना वायसरस की वैक्सीन विकसित करने की दिशा में एक जरूरी कदम होने कि सम्भावना है.