गुर्गे फेल, संबंध हुआ बेमेल
वर्दीधारी साहब को होली का रंग जमा नहीं कि स्वयं पर झल्लाहट होने लगी है। दरअसल, नया बंदा कोई सुनता नहीं और पुराने से मिलने में हिचकते हैं कि कहीं सोशल साइट्स पर वायरल न हो जाए। बीते दिनों की घटना में हुई लापरवाही से माथा पीट रहे हैं। अपने गुर्गे पर भी उनका मंतर फेल होने लगा है। बीते सप्ताह एक घटना को दरकिनार कर दिया था। पीड़िता के स्वजनों ने वरीय पदाधिकारी को दुखड़ा सुनाया। पदाधिकारी ने थाना बाबू को लताड़ा। बाबू ने साहब से कहा, केस ही नहीं आया है। डांट पर अपने गुर्गे को पीड़िता के घर पर भेजा। गुर्गे ने समझाया-बुझाया, धमकाया भी। भला, वह माने तब तो। थाना आकर आवेदन दिया, बेचारा अनमने ढंग से आवेदन लिया और उसे इंट्री किया। अब केस करके दफनाने की जुगाड़ लगा रहे हैं। गुर्गे का फेल होने पर थाना बाबू को हरेक संबंध बेमेल लगने लगा है।
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बंदी रस का बोलवाला
चुनावी दिन आने से पहले छुटभैये की कसरत तेज है। रोज नए कलेवर में दिख रहे हैं। झंडा थाम, हम हैं समाजसेवी का तमगा लगा बैठे हैं। छह माह पहले जन्म लेने वाले ने अपना नाम झंडाराम रख लिया। गठबंधन के बलबूते सिचित नेता जी का आगमन होने से पहले जगह-जगह बैनर-पोस्टर लग चुका है। दोनों हाथ जोड़े नेताजी मौसमी फसल की तरह लहलहा रहे हैं। उसमें फल-फूल होगा कि नहीं, सब कोई आंकने में लगा है। नाश्ता-पानी, चाय-पान के साथ दस-बारह लोग हिप-हिप हुर्रे करके हौसला अफजाई करने में आगे हैं। लक्ष्मी की सवारी उल्लू सब पर भारी पड़ रहा है। ये पाजामा-कुर्ताधारी सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र झूम रहे हैं। चुनावी आंधी में कहीं फूल आने से पहले जमीन न पकड़ ले घुटभैये, यही अंदेशा है। नेताजी ने जेब खोल रखा है। बंद मुंह विभिन्न प्रकार के बंदी रस से खुश है। चार चक्का पर आठ-दस की संख्या काफी है।
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जैसी करनी वैसी भरनी
प्रवृत्ति अपराधी सी ही रही है उनकी। बीच में निर्वाचित जनप्रतिनिधि बने और समाजसेवी भी कहलाने लगे। खुद को भोलेनाथ का बड़ा भक्त कहलाने में उन्हें असीम आनंद आता है। उन्हीं के धाम पर समय भी बिताते रहे हैं। रोजी-रोजगार से जुड़े रहकर अरबों की संपत्ति भी अर्जित की, पर भाग्य उस प्रवृत्ति के साथ ही चलता रहा। अपने चाहने वालों के संग मिलकर चाल तो अच्छी चली लेकिन कानून को गर्दन तक पहुंचने से रोक पाने में विफल दिख रहे। गुर्गो ने पोल खोलकर रख दी। सौदे की बात मुंह से उगल दी। अब वर्दी वाले दोस्त ही दुश्मन बन बैठे हैं। गांव, शहर और बम भोले की धरती से भूमिगत हैं। करनी का फल कई बेकसूर को भी भुगतना पड़ेगा। जिला कप्तान ने तो अल्टीमेटम दे रखा है, कानून के इस मजबूत फंदे से अब नहीं बचा पाएगा, भाग ले जितना है भागना। जय भोलेनाथ, जैसी करनी-वैसी भरनी।
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बंदी में मायूस हैं अध्यक्ष जी
वे किसी राजनीतिक दल के नहीं बल्कि अपनी संस्थाओं के अध्यक्ष हैं। आन-बान-शान भी इनकी कम नहीं है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए प्रशासन की सख्ती के बीच एक दिन अध्यक्ष जी की चालाकी पकड़ी गई। वे प्रशासनिक के आदेश का उल्लंघन कर रहे थे। इनके पहले वाले अध्यक्ष ने ही अपने मोबाइल का कमाल दिखाया। फोटो कैमरे में कैद किया और फिर अपने अध्यक्ष जी को टेंशन में डाल दिया। पूरे दिन अपनी करनी और कथनी की सफाई देते-देते अध्यक्ष जी परेशान रहे। आखिर में संस्थान बंद करके प्रशासनिक दंड से खुद का गर्दन बचाने में कामयाब रहे। लेकिन, अपने ही पूर्व अध्यक्ष को खरी-खोटी सुना रहे हैं। बंदी में उनका मन भी नहीं लग रहा है। बेहद मायूस हो गए हैं। जब अपने ही घर में छेद हो तो दूसरे को आइना क्या दिखाना। सच ही कहा गया है गुरु गुड़, चेला चीनी हो गया।
Posted By: Jagran
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