Ram Navami : पाना चाहते हैं भगवान श्रीराम की कृपा, तो करें रामचरितमानस के इन चौपाइयों का पाठ

30 Mar, 2023 12:19 AM | Saroj Kumar 848

30 मार्च को राम नवमी है। सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार, चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का जन्म हुआ है। अतः इस दिन रामनवमी मनाई जाती है। भगवान श्रीराम का जनमोत्स्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान राम के दर्शन हेतु मंदिर जाते हैं। इस मौके पर मंदिरों में बहुत भीड़ रहती है। भक्तजन अपने घरों पर भी भगवान श्रीराम की पूजा उपासना करते हैं। वहीं, पूजा के समय रामचरितमानस का पाठ भी करते हैं। अगर आप भी भगवान श्रीराम की कृपा पाना चाहते हैं, तो रामनवमी के दिन रामचरितमानस के इन चौपाइयों का पाठ जरूर करें-
1. नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥


2. मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥


काम बात कफ लोभ अपारा।  क्रोध पित्त नित छाती जारा॥


3. जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना॥


4. जिमि सरिता सागर मंहु जाही! जद्यपि ताहि कामना नाहीं!!
तिमि सुख संपत्ति बिनहि बोलाएं! धर्मशील पहिं जहि सुभाएं!!


5. जेहि पर कृपा करहि जनु जा‍नी! कवि उर अजिर नचावहिं बानी!!
मोरि सुधारिहि सो सब भांती! जासु कृपा नहिं कृपा अघाती!!


6. तब जन पाई बसिष्ठ आयसु ब्याह! साज सँवारि कै! 
मांडवी, श्रुतकी, रति, उर्मिला कुँअरि लई हंकारि कै!!


7 .दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहिं ब्यापा।।


8. जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपत्ति नानाविधि पावहिं।।


मनोकामना पूर्ति एवं सर्वबाधा निवारण हेतु
'कवन सो काज कठिन जग माही।


जो नहीं होइ तात तुम पाहीं।।


आजीविका प्राप्ति या वृद्धि हेतु


बिस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत असहोई।।


9.


बयरू न कर काहू सन कोई। रामप्रताप विषमता खोई।।


भय व संशय निवृत्ति के लिए


रामकथा सुन्दर कर तारी।संशय बिहग उड़व निहारी।।


अनजान स्थान पर भय के लिए
मामभिरक्षय रघुकुल नायक।
धृतवर चाप रुचिर कर सायक।।


भगवान राम की शरण प्राप्ति हेतु


सुनि प्रभु वचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना।।



10. राजीव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।


रोग तथा उपद्रवों की शांति हेत दैहिक दैविक भौतिक तापा।


राम राज नहिं काहुहिं ब्यापा।।


नाथ दैव कर कवन भरोसा।


सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥


कादर मन कहुँ एक अधारा।


दैव दैव आलसी पुकारा।।


जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।


तिन्हहि बिलोकत पातक भारी॥


निज दुख गिरि सम रज करि जाना।


मित्रक दुख रज मेरु समाना॥


अपि च स्वर्णमयी लंका, लक्ष्मण मे न रोचते।


जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।


बोले बिहसि महेस तब ग्यानी मूढ़ न कोइ।


जेहि जस रघुपति करहिं जब सो तस तेहि छन होइ।


मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥


काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥


 

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