पौधा सुखाड़ में न सूखेगा न अधिक पानी में गलेगा

संवाद सूत्र, हलसी (लखीसराय) : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर खेतीबाड़ी को लेकर रोज नया प्रयोग कर रहा है। अब सुखाड़ में न पौधा सूखेगा और अधिक पानी में पौधा न गलेगा। इस कार्यक्रम को धरातल पर उतारने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, हलसी के विज्ञानियों ने कार्य करना शुरू किया है। कृषि विज्ञान केंद्र, हलसी के वरीय विज्ञानी सह प्रभारी प्रधान डा. सुधीरचंद्र चौधरी ने बताया कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर ने लखीसराय में अब जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत जिले के पांच गांवों में खरीफ फसल के तहत धान, मक्का के साथ पशुओं के लिए हरा चारा तैयार किया जाएगा। वर्षो शुरू होते ही कृषि विज्ञानी चयनित गांवों में जाकर कार्य शुरू करेंगे। एक दशक से किसान नाटी मंसूरी (7029) लगाते थे। इसमें गलकी एवं भनभनिया बीमारी का प्रकोप होता था। इस धान को बदले दूसरे किस्म के धान की खेती होगी जो सुखाड़ में न सूखेगा और अधिक पानी में नहीं गलेगा। जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत लखीसराय प्रखंड के गढ़ी विशनपुर, सूर्यगढ़ा प्रखंड के रामपुर, चंदनपुरा, लय एवं बड़हिया प्रखंड के लाल दियारा गांव में जीरो टिलेज से 600 एकड़ में सबौर संपन्न धान के अलावा 200 एकड़ में मक्का एवं 50 एकड़ सौरघम चारा की खेती होगी। सबौर संपन्न धान को जीरो टिलेज से लगाए जाने के 30 दिन के बाद सुखाड़ की स्थिति में भी फसल नहीं सूखेगी। यह धान 15 दिन पानी में डूब जाने पर भी गलेगा नहीं। इस कार्यक्रम को धरातल पर उतारने के लिए कृषि विज्ञानी ने कार्य शुरू कर दिया है। इन गांवों में मक्का एवं जानवरों के हरा चारा के लिए सौरघम लगाने का कार्य किया जा रहा है।


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