कोसी के खेतों में उपजेगा रेड लेडी पपीता

कुंदन, सहरसा : अगवानपुर कृषि अनुसंधान केंद्र के स्थानीय किसानों को सभी पौधे में फल लगने वाला उन्नत किस्म के पपीता की खेती का गुर सिखा रहा है। देशभर में पपीता और उसके उत्पाद की बढ़ती मांग को देखते हुए यह प्रयास प्रारंभ किया गया है। अब कोसी क्षेत्र के कृषक न सिर्फ पपीता की खेती करेंगे बल्कि इसका पौधा भी कम खर्च पर खुद तैयार करेंगे। इसे राज्य के दूसरे बाजार में भी भेजा जा सकेगा। पपीता की खेती कर किसान परंपरागत कृषि से कई गुणा अधिक लाभ कमा सकेंगे।

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नर्सरी से समय पर हो सकेगी रोपाई

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कृषि विज्ञानियों का कहना है कि मार्च - अप्रैल पपीता लगाने का उपयुक्त समय है, परंतु उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में फरवरी के दूसरे हफ्ते तक मार्च अप्रैल में लगाए जाना वाला पपीता का पौधा नर्सरी में तैयार नहीं हो पाता है, क्योंकि इस समय तक रात का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है, जिससे बीज का अंकुरण नहीं होता। ऐसे में पपीता की नर्सरी को लो कास्ट पाली टनल ( छोटी नर्सरी बनाकर) में फरवरी माह में उगाने और मार्च में रोपाई की व्यवस्था की जा रही है। इस विधि से उगाए गए पौधा में रोग और किट लगने की संभावना भी कम हो जाती है।
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि जो लाभ बड़े किसान पाली हाउस से पौधा लेकर प्राप्त करते हैं, वही लाभ छोटे किसान इस विधि से कम लागत और कम भूमि पर प्राप्त कर सकते हैं।
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एक हेक्टेयर में लगेगा 96 सौ पौधा
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कोसी क्षेत्र में पपीता की खेती के लिए रेड लेडी प्रजाति का चयन इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि इसका पौधा उभयलिगी (नर मादा फूल एक ही पेड़ पर लगने वाला) होता है। एक जगह पर तीन पौधे लगाए जाते हैं, जो एक हेक्टेयर में 96 सौ लगता है। इसकी खेती से किसान परंपरागत खेती से कई गुणा अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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कोट
अगर किसान खुद लो कास्ट पाली टनल (मिनी नर्सरी) में पपीता का पौधा तैयार करेंगे तो समय पर पपीता उत्पादन कर कम खर्च में अत्यधिक लाभ कमा सकते हैं। इससे कोसी क्षेत्र के किसान इससे काफी लाभांवित हो सकते हैं।
नदीम अख्तर, कृषि विज्ञानी, कृषि अनुसंधान केंद्र, अगवानपुर, सहरसा

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