संवाद सूत्र, सिंहेश्वर (मधेपुरा) : एड्स एक जानलेबा बीमारी है। यह बीमारी भारत में अपना प्रसार कर रही है। भारतीय युवाओं की यह जिम्मेदारी है कि वे एड्स की चुनौतियों का मुकाबला करें और अपने समाज व राष्ट्र को इसके खतरों से बचाए। उक्त बातें मनोविज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर व विश्वविद्यालय के अकादमिक निदेशक डा. एमआइ रहमान ने कही। वे गुरूवार को टीपी कालेज के राष्ट्रीय सेवा योजना की प्रथम इकाई के सात दिवसीय विशेष शिविर में एड्स: भारतीय युवाओं के लिए एक चुनौति विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने बताया कि एचआइवी एक वायरस है। यह वायरस मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी पावर) को कम कर देता है। इससे हमारा शरीर बीमारियों से लड़ने में सक्षम नहीं रह पाता है और विभिन्न बीमारिया हमें जकड़ लेती हैं। उन्होंने कहा कि एड्स बताया कि सामान्यत: एड्स संक्रमण का कोई विशेष लक्षण नहीं होता है। लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण कई प्रकार की बीमारियों के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें इग्नोर नहीं करें और तुरंत चिकित्सक से परामर्श लें। इस अवसर पर वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी शिव कुमार शैव ने संविधान की प्रस्तावना के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। इससे पहले कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डा.केपी यादव ने की। अतिथियों का स्वागत बीएड विभागाध्यक्ष डा. जावेद अहमद ने किया। संचालन कार्यक्रम पदाधिकारी डा. सुधांशु शेखर ने और धन्यवाद ज्ञापन सिडिकेट सदस्य डा. जवाहर पासवान ने किया। व्यवस्थापक की भूमिका एनसीसी आफिसर लेफ्टिनेंट गुड्डू कुमार ने निभाई।
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इस अवसर पर आइटी पदाधिकारी तरूण कुमार, परीक्षा नियंत्रक डा. एमके अरिमर्दन, डा. उपेंद्र प्रसाद यादव, डा. खुशबू शुक्ला, केके भारती, अमित कुमार, कुंदन कुमार सिंह, डा. आशुतोष झा, विकास आनंद, सुप्रिता, अमित आनंद अनीस कुमार सिंह, कुंदन कुमार सिंह, मिथिलेश कुमार, केवल पटेल गोविद कुमार, रानी, स्नेहा कुमारी, सुप्रिया, डा. अशोक कुमार अकेला, विवेकानंद, गौरव कुमार सिंह, डेविड यादव, पिटू यादव, लक्ष्मण कुमार, हिमांशु कुमार, समीर राज, राजा बाबू, राहुल कुमार, मनीष, केशव, सोनाली, गुंजन, अंजली, मुमताज, राहुल, सोनू, मधु आदि उपस्थित थे। छुआ-छूत की बीमारी नहीं है एड्स उन्होंने कहा कि एड्स छूत की बीमारी नहीं है। यह एक-दूसरे को छूने या चुमने से नहीं फैलता है। यह सार्वजनिक शौचालय व साझे स्नानागार या स्विमिग पूल के इस्तेमाल से भी नहीं फैलता है। एड्स पीड़ित व्यक्ति घृणा के पात्र नहीं हैं। उनको भी समाज में सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। कहा कि अक्सर एचआईवी के साथ जीने वाले लोग चिता एवं अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं। उनके अंदर आत्महत्या की प्रवृति भी आ जाती है। ऐसे में हमारी यह जिम्मेदारी है कि हम एड्स पीड़ितों का मनोबल बढ़ाए और उनके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करें।