जासं, सहरसा: स्वास्थ्य सेवा में निरंतर सुधार हो रहा है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में मरीज अब भी इलाज के लिए तरस रहे हैं। सदर अस्पताल से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक इलाज के नाम पर महज खानापूरी हो रही है। अस्पतालों में 80 फीसद ऐसे मरीज भर्ती रहते हैं जिन्हें इंज्यूरी की जरूरत रहती है।
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शाम के ओपीडी में नहीं दिखते हैं डाक्टर
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सदर अस्पताल में हर दिन तीन सौ से पांच सौ तक मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। अस्पताल में सुबह आठ बजे से 12 बजे तक सुबह की ओपीडी व शाम चार से छह बजे तक शाम की ओपीडी चलता है। सुबह की ओपीडी में डाक्टर नौ बजे के बाद ही आते हैं जबकि शाम की ओपीडी में एक-दो डाक्टर ही नजर आते हैं। शाम के ओपीडी में मंगलवार को अपने पुत्र सूरज कुमार को दिखाने पहुंची ममता देवी ने बताया कि आंख में दर्द था लेकिन उस विभाग में डाक्टर ही नहीं थे। विकास यादव ने बताया कि शाम में एक डाक्टर मरीज को देखते हैं। दवा भी नहीं मिल पाती है।
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शल्य चिकित्सा के लिए भटकते हैं मरीज
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सदर अस्पताल में तीन शल्य चिकित्सक हैं। लेकिन शल्य चिकित्सा बस नाम की होती है। कई माह तो एक भी गंभीर शल्य चिकित्सा नहीं की जाती है। आयुष्मान भारत कार्ड का उपयोग सदर अस्पताल में भी किया जाता है बावजूद शल्य चिकित्सा के लिए लोगों को निजी क्लिनिक का सहारा लेना पड़ता है। शल्य चिकित्सा नहीं होने के कारण पिछले एक माह में दो बार हंगामा भी हो चुका है। यही नहीं प्रसव पीड़िता को भी शल्य चिकित्सा की जरूरत होती है तो डाक्टर नहीं मिलते हैं। जिस कारण स्वजनों को निजी क्लिनिक ले जाना पड़ता है।
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दलालों का रहता है जमावड़ा
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सदर अस्पताल में दलालों का जमावड़ा लगा रहता है। किसी मरीज को देखते ही दलाल लपक पड़ते हैं। उसे निजी क्लिनिक में भेजने के लिए हर तरकीब को अपनाते हैं। इनमें कुछ कर्मी के भी शामिल रहने की बात सामने आ चुकी है। लेकिन इन दलालों पर कार्रवाई नहीं हो पाती है।
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पीएचसी से सीधे किया जाता है रेफर
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पीएचसी व सीएचसी में डाक्टर व कर्मी की कमी है। जिस कारण गंभीर ही नहीं हल्के ढ़ंग के मरीजों को भी सीधे रेफर कर दिया जाता है। सदर अस्पताल में भी गंभीर मरीज को देखते ही रेफर करने की परिपाटी अब भी बनी हुई है। जिस कारण लोग सदर अस्पताल के बदले निजी अस्पताल जाना ही बेहतर समझते हैं।