मधेपुरा। कोरोना आपदा काल में विद्यालय व कोचिग संस्थान के बंद रहने से संचालक आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। पहले चरण में कोरोना के दौरान एक वर्ष बाद लगाम लगी थी तो मार्च 2021 में बंद पड़े निजी विद्यालयों को संचालकों ने महाजन से कर्ज लेकर खोला था। लेकिन एक महीना भी विद्यालय नहीं खुला कि कोरोना का दूसरा दौर की शुरू हो गया। लिहाजा सरकारी निर्देशालोक में संचालकों को फिर से विद्यालय को बंद करने को बाध्य होना पड़ा। मालूम हो कि वर्तमान समय में प्रखंड क्षेत्र के ग्रामीण इलाके में अधिकांश गरीब परिवार के बच्चे छोटे-मोटे कोचिग व निजी विद्यालय के सहारे अपना भविष्य संवारने में लगे हैं। किराया देने में आ रही दिक्कत अधिकांश निजी विद्यालय किराए के मकान में संचालित हो रहे हैं। विद्यालय बंद रहने के कारण विद्यालय संचालक मकान मालिक को किराया नहीं दे पा रहे हैं। मकान मालिकों ने कई स्कूलों में अपना ताला लगा दिया है। वहीं दूसरी ओर बिजली का बिल भी बकाया है। घर का चूल्हा जलना भी हुआ मुश्किल कोरोना आपदा काल में कोचिग संस्थान व निजी विद्यालयों को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया है। लिहाजा विद्यालय में कार्यरत शिक्षक सहित संचालकों की सभी आमदनी बंद हो गई है। जबकि पारिवारिक सदस्यों के पूर्णरूपेण कोचिग व विद्यालय से प्राप्त होने वाले आमदनी पर निर्भर रहने से वैश्विक महामारी के कारण बीते 18 माह से उसके भरण-पोषण करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस बाबत पुरैनी पब्लिक स्कूल के संचालक आर्यण रस्तोगी ने कहा कि कोरोना आपदा काल के लंबे समय से स्कूली वाहनों के खड़े रहने से जहां टायर खराब हो गए हैं। वहीं इंजन में भी खराबी आ चुकी है। ज्ञान संस्कार निकेतन नयाटोला के संचालक राजीव रंजन सिंह ने कहा कि कोरोना आपदा काल में जब संचालकों को अपना पेट भर पाना कठिन हो रहा है तो वे शिक्षक व अन्य कर्मी को क्या सहयोग करेंगे। वैदिक एकेडमी कड़ामा के संचालक मोहन प्यारे कहते हैं कि कोरोना ने जहां छात्र-छात्राओं के भविष्य को अंधकारमय कर दिया है।
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