सहरसा। मजबूत मनोबल और सकारात्मक सोच के साथ उचित चिकित्सकीय सलाह के साथ कोरोना को पराजित किया जा सकता है। यह कहना है प्रगति क्लासेस के कुमार नंदन और कुमार चंदन का। दोनों भाई कोरोना संक्रमित हुए थे और जिदगी और मौत से जूझते हुए आखिरकार जिदगी की जंग जीतकर घर लौटे।
नंदन ने बताया कि दो अप्रैल से बुखार आ रहा था। सात अप्रैल को टेस्ट कराने के बाद पता चला कि वो पॉजिटिव हैं। नौ अप्रैल को अस्पताल में भर्ती हुए और 15 अप्रैल को डिस्चार्ज हुए। अस्पताल से निकलने के दो दिन बाद ही पता चला कि परिवार के चार और लोग संक्रमण की चपेट में आ गए हैं। हालांकि चार-पांच दिन बुखार लगने के बाद ठीक हो गए लेकिन मेरा भाई चंदन कुमार धीरे-धीरे सीरियल होता चला गया। 25 अप्रैल को ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा तो पटना के एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए। जांच हुई तो पता चला अस्सी फीसद फेफड़ा संक्रमित हो चुका है। हालांकि परिवार के सभी सदस्य और मित्रों का सहारा बना रहा। चिकित्सक भी लगातार हिम्मत बंधाते रहे और 28 दिन संघर्ष करते हुए 23 मई को अस्पताल से डिस्चार्ज हुए। बताया कि गहन चिकित्सा और दवाइयों के अलावा सकारात्मक सोच बनाए रखना, इसके लिए जरूरी है। कहा कि स्वजनों को चाहिए कि हर वक्त अच्छी सूचनाएं ही मरीजों को दें। कहा कि अस्पताल संचालित करने वाले तथा उसमें काम करने वाले कर्मियों को भी चाहिए कि इलाज में लापरवाही नहीं करें। कहा कि जहां वो भर्ती थे, वहां ऑक्सीजन लगाने में गड़बड़ी के कारण एक व्यक्ति की मौत उनके सामने हो गई। कहा कि सभी चाहने वालों की दुआ एवं ऊपर वाले के आशीर्वाद से हमलोगों को दूसरी जिदगी मिली है इसलिए हमलोग परिवार के साथ साथ सामाजिक हित एवं उनके शैक्षणिक विकास के लिए पहले से भी अधिक ऊर्जा से हमेशा तत्पर रहेंगे।
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