यहां महाभारत काल में पांडवों ने की थी मां चंडिका की पूजा

सहरसा। विराटपुर गांव स्थित मां चंडिका मंदिर देश के 51 सिद्धपीठों में से एक है। मंदिर में स्थापित मां छिन्नमस्तिका की प्रतिमा पालयुग की मानी जाती है। इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल के राजा विराट द्वारा कराई गई थी। मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने मां की पूजा-अर्चना की थी।

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मंदिर से जुड़ी है मान्यताएं
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विराटपुर स्थित मां चंडी मंदिर से सटे तालाब को जीवछ कुंड कहा जाता है। मान्यता है कि जो भी नि:संतान स्त्री इस कुंड में स्नान कर मंदिर के पुजारी से आदेश पुष्प लेकर मां छिन्न मस्तिका की पूजा-अर्चना करती है उनके संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यहां कई बार किये गये उत्खनन से प्राप्त काले और चमकदार पत्थर की मूर्तियां पालयुग की है। अधिकांश पाल शासक बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। यही वजह है कि मंदिर में बचे इन मूर्तियां पर तिब्बत तथा चीनी कला देखने को मिलती है। लंबे समय में मंदिर के पृथ्वी के गर्भ में समा जाने के उपरांत जलसीमा गांव निवासी राजा प्राण सिंह की दूसरी पत्नी चमेली कुंवरी के अनुरोध पर लोक देवता लक्ष्मीनाथ गोसाईं ने तीन दिनों तक मां चंडी की प्रतिमा के समक्ष मंदिर निर्माण शुरू कराई थी जिसके बाद मंदिर का निर्माण नए ढंग से करवाया गया।

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मंदिर की विशेषता
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विशाल मंदिर की ऊंचाई 52 हाथ है। लगभग 20 हाथ की ऊंचाई पर मंदिर की चारों और आठ स्तूप बने हुए हैं जो नवदुर्गा का प्रतीक है। मंदिर स्थित मां चंडी की प्रतिमा के बगल में एक छोटा कुंड है जिसमें कितना भी जल चढ़ाया जाय उसका जलस्तर एक सामान बना रहता है। जलकुंड की यह विशेषता है कि मां छिन्नमस्तिका को चढ़ाया गया जल गुप्त मार्ग से महिषी की मां तारा तथा धमाहरा की मां कात्यायनी स्थान तक पहुंचती है। मंदिर के गर्भगृह में मां छिन्नमस्तिका की प्रतिमा के अतिरिक्त मां गहील, महिषासुर मर्दनी, तथा अश्टभुजी दुर्गा की खंडित प्रतिमा है। मंदिर के द्वार के सम्मुख मां छिन्नमस्तिका का चबूतरा नामक सिंहासन काले पत्थरों का बना हुआ है। जिसके उपर दिशा यंत्र अंकित है। मां छिन्नमस्तिका की पूजा के उपरांत काले पत्थर से बने इसी सिंहासन की पूजा की जाती है।
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