दवाओं की बढ़ती कीमत से महंगा हुआ इलाज

सहरसा। नयाबाजार के संतोष कुमार को पेट से संबंधित तकलीफ थी। उन्होंने सितंबर, 20 में एक डॉक्टर से परामर्श किया तो उन्हें डिजो-12 दवा खाने की सलाह दी। उन्होंने 195 रुपये में 10 टेबलेट खरीदा। यह पेट में मौजूद कीड़े को मारने की दवा थी।

सेवन करने के बाद फिर डॉक्टर ने अक्टूबर माह में यही दवा खाने की बातें कही, लेकिन जब वे दवा खरीदने गये तो यही दवा उन्हें 350 रुपये में दिया गया। इसी तरह आनंद कुमार अपने बच्चे को डॉक्टर से दिखाया तो उन्हें सिक्सलिक्स कफ सिरप और क्लैंप किट नामक एंटीबायोटिक दवा दी गई। लॉकडाउन से पहले इस दवा की कीमत कम थी, लेकिन लॉकडाउन के बाद 15 फीसद तक बढ़ गई।

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दवा की कीमतों में हुई वृद्धि
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खुदरा दवा विक्रेता और ड्रग एंड केमिस्ट एसोसिएशन के आशीष कुमार झा पिटू कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद दवा की कीमतों में 10 से 20 फीसद की वृद्धि हुई है। आमलोगों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। हालांकि, बिक्री में कोई खास कमी नहीं हुई है। लोग मजबूरी में ही दवा खरीद रहे हैं। दवा के थोक विक्रेता एवं केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के सचिव हरिनंदन यादव उर्फ हरि बाबू कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद महंगाई चरम पर पहुंच गई है। खाद्य पदार्थों से लेकर दवा की कीमतों में 10 फीसद तक की बढ़ोतरी हुई है। सरकार और दवा कंपनी मिलकर दाम निर्धारित करती है। दवा क्यों महंगी हुई, यह तो कंपनी या सरकार ही बता सकती है। वैसे यह जानकारी मिल रही है कि दवा कंपनी कई रॉ मैटेरियल विदेशों से मंगाती है। भारत में वह महंगी मिलती है, लेकिन विदेश से रॉ मैटेरियल कम आने की वजह से दाम में बढ़ोतरी हुई है।
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ऑनलाइन दवा की बिक्री से व्यवसाय हुआ है प्रभावित
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डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, कैंसर या जिस बीमारी में लंबे समय तक दवा चलती है, उसकी बिक्री ऑनलाइन होने से स्थानीय दवा दुकानदारों की बिक्री प्रभावित हुई है। ऑनलाइन में कुछ कम कीमत लगने की वजह से लोग इसे ही पसंद करने लगे हैं। दुकानदार खगेंद्र सिंह कहते हैं कि ऑनलाइन से व्यवसाय प्रभावित हुआ है।
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जेनरिक की है एकमात्र दुकान
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जेनरिक दवा की बिक्री हेतु जिला मुख्यालय में पंचवटी रोड में एकमात्र जन औषधि केंद्र है, लेकिन जन औषधि केंद्र पर दवा के खरीदार कम ही पहुंचते हैं। वैसे, सुपौल में सदर अस्पताल परिसर में जेनरिक दवा की दुकान है, लेकिन सहरसा में यह व्यवस्था नहीं है। हालांकि दो और केंद्र खोलने के लिए आवेदन दिया गया है। जानकार गौतम कुमार कहते है कि राजस्थान में तीन सौ जेनरिक दवा दुकानें खुली लेकिन एक साल के अंदर ही 298 दुकान बंद हो गई। यही हाल यहां भी होगा।
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टैक्स की वजह से अधिक हो जाता है दाम
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इनकम टैक्स के अधिवक्ता भवेश झा कहते हैं कि जेनरिक दवा तो कंपनी से सीधे दवा दुकानों तक पहुंच जाती हैं जिसके कारण उसकी कीमत कम रहती है, लेकिन अन्य दवाओं के लिए पांच जगहों पर टैक्स का भुगतान करना होता है। इसकी वजह से दवा की कीमत बढ़ जाती है।
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कोट
दवा की कीमतों का निर्धारण कंपनी और सरकार स्तर से होती है। जेनरिक दवा की एक दुकान खुली है। दो और दुकानें खुलने की उम्मीद है।
पंकज कुमार, औषधि निरीक्षक, सहरसा।
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