मधेपुरा। कोसी व मिथिलांचल का लोक पर्व सामा चकेवा नारी संघर्ष व उसके मुक्ति से जुड़े कई पौराणिक गाथा की याद ताजा कर जाता है। धार्मिक से अधिक समाजिक का पक्ष भारी रहने से यह पर्व काफी प्रचलित है।
सामा चकेवा धार्मिकता व सामाजिकता से जुड़ी नारी संघर्ष व उसकी मुक्ति की एक अजीबोगरीब गाथा है। महिलाएं इसकी महत्ता को उजागर कर इसे भैया दूज से शुरू कर कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि को समापन करती है। इस दौरान महिलाएं प्रत्येक रात्रि को समूह में इकट्ठा होकर नारी संघर्ष एवं मुक्ति से जुड़ी पौराणिक कथा पर आधारित लोकगीत गाकर भूली यादों को ताजा करती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पुत्री सामा हाजिर जबाबी के साथ-साथ काफी चंचल स्वभाव की थी। वह प्रत्येक दिन दर्जनों सहेलियों के साथ विभिन्न मुनी के आश्रम पहुंचकर काफी उधम मचाती थी। यह बात चूरक को पसंद नहीं था। धीरे-धीरे चूरक श्रीकृष्ण को यह समझाने में सफल रहे कि उसकी पुत्री सामा की चंचलता व हाजिर जबाबी से अन्य कन्याओं पर गैर परंपरागत असर पड़ रहा है। चूरक की बातों में आकर कृष्ण ने सामा को पंछी बन जाने का श्राप दे डाला। सामा को पंछी रूप में देख उसके पति ने भी घोर तपस्या कर पंछी बन गया। कृष्ण के पुत्र सांब अपनी बहन सामा से बेइंतहा प्यार करता था। उससे बहन व बहनोई की पंछी के रूप में दर-दर भटकने की दुर्दशा नही देखी गई। पिता कृष्ण को अपने फैसले पर अडिग देख वह अपनी बहन व बहनोई की मुक्ति के लिए विष्णु की तपस्या में जुट गया।काफी दिनों तक घोर तपस्या करने के उपरांत भगवान विष्णु प्रसन्न होकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन जहां उसकी बहन सामा को कृष्ण के शाप से मुक्त कर दिया। वहीं उसके बहनोई को फिर से मनुष्य योनि में लौटने का वरदान दिया। उसी दिन से उक्त कथा के आधार पर कोसी व मिथिलांचल सहित देश के अन्य हिस्सों में लोक पर्व सामा चकेवा श्रद्धापूर्वक मनाई जाती है। इसे भाई-बहन के अटूट प्रेम के अलावा पक्षियों का भी त्योहार माना जाता है।
डाउनलोड करें जागरण एप और न्यूज़ जगत की सभी खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस