मधेपुरा। आजादी के बाद पहले लोकसभा चुनाव में तत्कालीन भागलपुर सह पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए किराय मुसहर मजदूर वर्ग से आने व कम पढ़े लिखे होने के बाद भी उस दौर की राजनीतिक हलचलों की समझ रखते थे। उनपर गांधी और डॉ. लोहिया के विचारों का व्यापक प्रभाव था। सांसद बनने के बाद भी उनके जीवन शैली में कोई बदलाव नहीं आया था। जो किसी आश्चर्य से कम नहीं था। डॉ. लोहिया के शब्दों में वो जन्मजात समाजवादी थे। उनसे जुड़ी यादों को सहेजने की जरूरत है। उक्त बातें वाम छात्र संगठन एआइएसएफ के राज्य उपाध्यक्ष सह बीएनएमयू प्रभारी हर्ष वर्धन सिंह राठौर मधेपुरा के प्रथम सांसद किराय मुसहर की शताब्दी जयंती के अवसर पर उनके परिवार के सदस्यों से मुलाकात करते हुए कही। 17 नवम्बर 1920 को जन्मे किराय मुसहर की शताब्दी जयंती के अवसर पर संगठन के सदस्यों ने उनके परिवार के सदस्यों से मुलाकात कर उनसे जुड़ी अनेकों बिदुओं पर गंभीरता से चर्चा की। इस दौरान पता चला कि प्रथम सांसद के परिवार में अभी उनके पुत्र छटटू का परिवार है जो आज भी अपने परिवार के भरण पोषण को संघर्षरत है। संगठन के सदस्यों ने जब प्रथम सांसद से जुड़ी यादों के संबंध में चर्चा की तो पता चला कि उनके नाम पर प्रस्तावित समाधि स्थल का कार्य वर्षों गुजर जाने के बाद भी शुरू नहीं हो पाया है। समाधि स्थल के नाम पर वहां मात्र एक खंभा है। उनके नाम पर प्रशासनिक व सामाजिक स्तर पर कभी कारगर योजना नहीं बनी। इस दौरान छात्र नेता हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने कहा कि स्मृति शेष किराय मुसहर समाजवाद की किताब के एक वो खास पन्ना है। जिसको सहेजकर रखने की जरूरत है। उनकी शताब्दी जयंती जिला व समाज के लिए वो अवसर है जिसमें उनसे जुड़ी यादों को पुनर्जीवित कर भविष्य को लाभान्वित किया जा सके। उन्होंने कहा कि मधेपुरा को हमेशा इस बात पर गर्व रहेगा कि समाजवाद की इस धरती ने आजाद भारत के प्रथम लोकसभा चुनाव में एक मजदूर को सदन भेज समाजवाद की परिभाषा को सार्थक किया था। इस दौरान संगठन के राज्य परिषद सदस्य सह संयुक्त जिला सचिव सौरभ कुमार ने कहा कि किराय मुसहर जैसी हस्ती का सम्मान ही समाज का सम्मान है। गवईपन अंदाज में ही सांसद के रूप में उनके कई कार्य महत्वपूर्ण हैं। मधेपुरा के पहले सांसद ने अपनी सादगी से प्रथम प्रधानमत्री पंडित नेहरू का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि संगठन का प्रयास रहेगा कि प्रथम सांसद किराय मुसहर की शताब्दी जयंती खास तौर पर मनाया जाए। इससे समाज में एक संदेश जाए। उन्होंने कहा कि यह एक दुखद अध्याय भी है कि जिस किराय मुसहर को संसद में डॉ. लोहिया ने अपना साथी कह मान बढ़ाया था। उनकी मौत अभाव के कारण हुई। इस दौरान संगठन के सदस्यों ने उनके अधूरे समाधि स्थल पर पहुंच कर उनकी शताब्दी जयंती पर उन्हें नमन किया। इस दौरान उनके उनके पुत्र, पुत्रवधू व परिवार के अन्य सदस्य मौजूद थे।
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