मधेपुरा। कोसी क्षेत्र पानी के मामले में राजा है। क्षेत्र में पानी ही पानी है। इस क्षेत्र में पानी के लिए लोगों को तरसना नहीं पड़ता। बड़े शहरों और महानगरों की तरह यहां पानी के लिए लाइन नहीं लगती। वजह कि जमीन की कम खुदाई के बाद ही पानी निकल जाता है। क्षेत्र में चापाकल, कुआं और बोरिग की खुदाई में कम खर्च लगता है, लेकिन पानी की गुणवत्ता सही नहीं होने की वजह से परेशानी हो रही है। व्यवस्था के अभाव में लोग लौहयुक्त पानी पीने को विवश हैं। लौहयुक्त पानी पीने की वजह से लोगों में कई तरह की बीमारियां फैल रही हैं। इस वजह से लोग समय से पहले काल कवलित हो रहे हैं। सरकार ने हर प्रखंड मुख्यालय में जलमीनार बनवाई। इसके जरिए लोगों तक शुद्ध पेयजल पहुंचाने की बात कही गई, लेकिन प्रखंडों में खड़े की गई जलमीनार सफेद हाथी साबित हो रही है। अब हर घर नल जल योजना का शुभारंभ हुआ। राज्य सरकार वर्ष 2005 से इस योजना पर काम कर रही है, लेकिन योजना धरातल पर नहीं उतर पाई है। इसका बड़ा कारण लोग प्रशासन और संवेदक की उदासीन रवैया मान रहे हैं। योजना के प्रति लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग पूरी तरह लापरवाह बना हुआ है। हद इस बात का है कि उदाकिशुनगंज में लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के कोई अधिकारी रहते ही नहीं हैं, जबकि प्रखंड में विभाग का अपना कार्यालय है। बताया जाता है कि अनुमंडल क्षेत्र में पीने योग्य पानी नहीं है। भूगर्भ जल में खतरनाक रसायनों की अधिकता से पानी मीठा जहर हो गया है। यहां के पानी में आर्सेनिक, फ्लोराइड व आयरन की मात्रा खतरनाक स्तर को पार कर चुका है।
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20 फीट पर मिलता है पानी
मधेपुरा, पूर्णिया, भागलपुर, खगड़िया व सहरसा जिला के बीच सीमा पर अवस्थित उदाकिशुनगंज प्रखंड समेत सीमावर्ती इलाकों में अमूमन 20 से 25 फीट की गहराई से पानी निकलने लगता है। बकोल विशेषज्ञ भूमिगत जल स्रोत की अपेक्षा सतही जल में आयरन की मात्रा कम होती है। लेकिन सतही जल में वैक्टीरिया की मात्रा अत्यधिक होने के कारण यह स्वास्थ्य के लिए और भी घातक समझा जाता है। शुद्ध व कम मात्रा वाले आयरन युक्त जल की तलाश में जितनी गहराई तक खोदा जाता है,आयरन की मात्रा बढ़ती ही जाती है।
इन बीमारियों का है खतरा
आर्सेनिक से त्वचा रोग सहित कैंसर होने का खतरा रहता है। कमजोरी, उम्र से पहले बुढ़ापा, कब्ज, अतिसार, रक्तचाप जैसी बीमारियां शुरू हो जाता है। इसके बाद कब्ज, धड़कन व अन्य बीमारियां भी धीरे-धीरे घर करने लगती है।
कितनी होनी चाहिए मात्रा
पानी में फ्लोराइड की मात्रा 5.92 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई है। जबकि उपयोग के लिए अधिकतम सीमा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है। आर्सेनिक की मात्रा पांच मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई है। जबकि उपयोग के लिए 0.01 मिलीग्राम अधिकतम सीमा 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर निर्धारित है। इस तरह आयरन की मात्रा तीन मिलीग्राम प्रति लीटर निर्धारित है, लेकिन यहां इसकी मात्रा भी अधिक है। क्या कहते हैं चिकित्सक
प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. इंद्रभूषण कुमार कहते हैं कि अत्यधिक मात्रा वाले आयरन युक्त जल के उपयोग से हीमोग्लोबिन की संभावना भी बढ़ जाती है। निश्चित मात्रा में आयरन के जल में घुला रहना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। प्रत्येक वयस्क महिला व पुरूष को प्रतिदिन 10 मीलीग्राम आयरन की आवश्यकता होती है। जो भोजन के विभिन्न पोषक तत्वों से प्राप्त हो जाता है। शरीर को आवश्यक आयरन की मात्रा पांच प्रतिशत ही जल के माध्यम से होना चाहिए। बकौल चिकित्सक आयरन की मात्रा अधिक होने से भोजन के पाचन में दिक्कत होती है। शरीर द्वारा अवशोषित आयरन का 70 प्रतिशत खून बनाने में मदद करता है।
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